शनिवार, 29 मार्च 2014

योगी , वैज्ञानिक व वीर : हनुमान


महाराजा हनुमान आकुंचन के ऊपर अध्ययन करते थे तो उनकी आकुंचन शक्ति बहुत बलवान हो गयी थी।  मुझे स्मरण आता रहता है कि  त्रेता के काल से महाराजा हनुमान आकुंचन शक्ति के अनुसार अपने शरीर को सूक्ष्म बनाने व विशाल बनाने का अनुसन्धान करते रहते थे।  आकुंचन की ये गतियाँ योगाभ्यास के द्वारा ही आती हैं।  आकुंचन क्रिया को जानकर मानव को आश्चर्य होता है। 

हनुमान महान योगी, महान ब्रह्मचारी, तार्किक व महाराजा राम के मंत्री थे।  उन्होंने सूर्य के महान विज्ञानं को जाना था। उसके एक एक कण को जाना था।  वह विज्ञान उनके कंठ था।  इसलिए यह कहना यथार्थ है कि हनुमान ने सूर्य को नहीं, उसके महान गुणों और विज्ञान को अपने मुखारविन्द में अर्पण  कर लिया था। हनुमान ने यौगिक क्रियाओं से समुद्र को पार किया था। 

महाराजा हनुमान उदान - प्राण से कूर्म और कृकल प्राण का मिलान करना जानते थे, जिस विधि से इस शरीर को स्थूल और सूक्ष्म किया जाता है।  प्रकृति की पांच प्रकार की गतियाँ मानी जाती हैं - आकुंचन , प्रसारण , ऊर्ध्वा , ध्रुव और गमन।  इन पांचों प्रकार की गतियों को जानने वाला योगेश्वर अपने को स्थूल रूपों में ला सकता है एवं आकुंचन द्वारा सूक्ष्म बना सकता है।  हनुमान आकुंचन द्वारा सुरसा के मुख में परिणित हो गए थे। 

हनुमान सूर्य विद्या के प्रकांड पंडित थे।  एक बार राम ने हनुमान से पूछा कि मैं जानना चाहता हूँ कि सूर्य की किरणों से रोगों का विनाश कैसे होता है ? हनुमान ने कहा कि सूर्य की सहस्रों प्रकार की किरणे होती हैं किन्तु मुख्य किरणें सात होती हैं।  इन किरणों में विभिन्न प्रकार के रंग जैसे श्वेत , हरित , रक्त आदि होते हैं।  मानव के शरीर में यह पांच महाभूत ही कार्य कर रहे हैं।  जब मानव रुग्ण हो जाता है तो उसके शरीर  में  इन्ही महाभूतों में से किसी का प्रभाव सूक्ष्म हो जाता है।  जो तत्व मानव के शरीर में सूक्ष्म हो जाता है उसी प्रकार की किरणों को लाया जाता है।  वह किरण मानव के शरीर में रुग्ण स्थान पर प्रभाव डालती है तथा रोग शांत हो जाता है।

सीता को खोजने के लिए महाराज हनुमान अपने यान 'पदकेतु' में विद्यमान होकर लंका में पहुंचे।  वे कितने विज्ञानमय थे ।  'सूर्यकेत' नाम की पोथी का का निर्माण महाराजा हनुमान ने किया था।  सूर्य विज्ञान के ऊपर नाना रूपों में उन्होंने उस पोथी का निर्माण किया  महाभारत के पश्चात् जैन काल में वह अग्नि के मुखारविंद में परिणित कर दी गयी।

कूटनीतिज्ञ
 लंका को विजय करने के पश्चात् विभीषण राम के समीप आये और राम से यह कहा कि हे भगवन! आप यहाँ से अब प्रस्थान करेंगे , आपने बड़ा अनुग्रह किया है, अब मेरे यहाँ अन्न ग्रहण करो।  आपको निमंत्रण देने आया हूँ।  राम की इच्छा बन गयी थी कि हम अन्न ग्रहण कर सकेंगे।  परन्तु देखो , जब हनुमान जी उनके मध्य में गए तो हनुमान जी ने कहा कि इस पर हम विचार करेंगे।  उन्होंने जब ऐसा कहा तो राम ने अपने वाक्यों को आगे उच्चारण नहीं किया।  राम ने एकांत स्थली में कहा कि तुमने ऐसा क्यों कहा हनुमान जी ? उन्होंने कहा कि भगवन! यह राष्ट्रीयता है . इसे आप स्वीकार न करें, विभीषण हमारा मित्र ही बना रहेगा।  इनका लंकापति स्वामी समाप्त हो गया, कुटुंब समाप्त हो गया है, इसलिए भगवन! आप इस निमंत्रण को आप स्वीकार न करो।  राम ने इस वाक्य को स्वीकार कर लिया।  राम ने कहा कि हे लक्ष्मण ! हनुमान जी तो बड़े बुद्धिमान हैं, बड़े कुशल हैं।  तो लंका में चले आये विभीषण जी और राम अपनी अयोध्या को चले गए।  उसी साल में ऐसा मुझे स्मरण है कि हनुमान जी को उन्होंने अपना सर्वोपरि मंत्री, उनको सब प्रकार की उपाधियां राम ने प्रदान कीं।
विचार विनिमय क्या? आधुनिक काल का जगत ऐसा विचित्र है कि हनुमान जैसे महा बुद्धिमानों को, जो समुद्र के तटों पर यंत्र से भ्रमण कर सकता हो, जो सूर्य की किरणों के साथ सूर्य में गमन कर सकता हो, उससे ऊर्जा को पाने वाला हो, ऐसे प्रभु के सेवक को आज पशु की संज्ञा प्रदान की जाती है।  यह महापुरुषों के साथ कैसा खिलवाड़ हो रहा है?
लोक लोकान्तरों की उड़ान
महाराजा हनुमान और गणेश जी दोनों जब ऋषि के द्वार पर पहुंचे तो ऋषि से उन्होंने ये ही कहा कि महाराज! हम वैज्ञानिक बनना चाहते हैं।  महाराजा गणेश जी ने और हनुमान जी ने पादुका नामक यंत्र का निर्माण किया था।  उस पादुका यंत्र में ये यह विशेषता थी कि प्राण शक्ति का उनमें उन्होंने सृजन किया।  पादुका पर विराजमान हो कर के इस पृथ्वी से उड़ान उड़ने लगे और पृथ्वी से उड़ान उड़ते हुए वह मंगल में आये तो मंगल के वैज्ञानिकों ने यंत्र को कटिबद्ध करना चाहा।  उस समय मंगल मंडल में स्वेतताम् वृहिणीक नाम के एक वैज्ञानिक रहते थे।  उन्होंने उस यंत्र को अपने राष्ट्र मंगल में रहने के लिए प्रतीति की और अपने यंत्रों के एक रूपांतर द्वारा उसके ऊपर आक्रमण किया तो हनुमान और गणेश जी दोनों उस यंत्र को लेकर अंतर्ध्यान हो गए और यंत्र को लेकर के वह पृथ्वीमंडल पर आ गए।
वे उस यंत्र में विद्यमान हो कर के बहत्तर मंडलों का भ्रमण किया करते थे।  आज मैं उन महापुरुषों का क्या वर्णन कर सकता हूँ? जिन्होंने अपने जीवन के ऊपर बहुत अनुसन्धान किया।  मैंने तुम्हें कई काल में वर्णन करते हुए कहा है, हनुमान जी की मृत्यु नहीं होती थी।  हनुमान जी के  शरीर की आभा इतनी विचित्र बनी रहती थी।  महाराजा गणेश जी ने एक चुगेत नाम के यंत्र का निर्माण किया था।  उसमे वह विद्यमान होते तो यंत्र इस पृथ्वी की परिक्रमा करता हुआ, मंगल की परिक्रमा करता हुआ सूर्य की किरणों के साथ सूर्य में प्रवेश कर जाता था।

इस प्रवचन को अंग्रेजी में पढ़ें

(पूज्यपाद गुरुदेव कृष्णदत्त जी के प्रवचनों से )


आपका
भवानंद आर्य 'अनुभव'

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