शुक्रवार, 19 जनवरी 2018

Excellent Message

EXCELLENT MESSAGE
*|||||||| "ये ही सत्य हैं" |||||*

 *Qus→   जीवन का उद्देश्य क्या है ?*
Ans→  जीवन का उद्देश्य उसी चेतना को जानना है - जो जन्म और मरण के बन्धन से मुक्त है। उसे जानना ही मोक्ष है..!!
*Qus→  जन्म और मरण के बन्धन से मुक्त कौन है ?*
Ans→  जिसने स्वयं को, उस आत्मा को जान लिया - वह जन्म और मरण के बन्धन से मुक्त है..!!
*Qus→  संसार में दुःख क्यों है ?*
Ans→  लालच, स्वार्थ और भय ही संसार के दुःख का मुख्य कारण हैं..!!
*Qus→  ईश्वर ने दुःख की रचना क्यों की ?*
Ans→  ईश्वर ने संसारकी रचना की और मनुष्य ने अपने विचार और कर्मों से दुःख और सुख की रचना की..!!
*Qus→  क्या ईश्वर है ? कौन है वे ? क्या रुप है उनका ? क्या वह स्त्री है या पुरुष ?*
 Ans→   कारण के बिना कार्य नहीं। यह संसार उस कारण के अस्तित्व का प्रमाण है। तुम हो, इसलिए वे भी है - उस महान कारण को ही आध्यात्म में 'ईश्वर' कहा गया है। वह न स्त्री है और ना ही पुरुष..!!
*Qus→   भाग्य क्या है ?*
Ans→  हर क्रिया, हर कार्य का एक परिणाम है। परिणाम अच्छा भी हो सकता है, बुरा भी हो सकता है। यह परिणाम ही भाग्य है तथा आज का प्रयत्न ही कल का भाग्य है..!!
*Qus→   इस जगत में सबसे बड़ा आश्चर्य क्या है ?*
Ans→   रोज़ हजारों-लाखों लोग मरते हैं और उसे सभी देखते भी हैं, फिर भी सभी को अनंत-काल तक जीते रहने की इच्छा होती है..इससे बड़ा आश्चर्य ओर क्या हो सकता है..!!
*Qus→   किस चीज को गंवाकर मनुष्यधनी बनता है ?*
Ans→   लोभ..!!
*Qus→   कौन सा एकमात्र उपाय है जिससे जीवन सुखी हो जाता है?*
Ans →   अच्छा स्वभाव ही सुखी होने का उपाय है..!!
*Qus →   किस चीज़ के खो जानेपर दुःख नहीं होता ?*
Ans →   क्रोध..!!
*Qus→   धर्म से बढ़कर संसार में और क्या है ?*
Ans →   दया..!!
*Qus→   क्या चीज़ दुसरो को नहीं देनी चाहिए ?*
Ans→   तकलीफें, धोखा..!!
*Qus→   क्या चीज़ है, जो दूसरों से कभी भी नहीं लेनी चाहिए ?*
Ans→   इज़्ज़त, किसी की हाय..!!
*Qus→   ऐसी चीज़ जो जीवों से सब कुछ करवा सकती है?*
Ans→   मज़बूरी..!!🌸
*Qus→   दुनियां की अपराजित चीज़ ?*
Ans→  सत्य..!!
*Qus→ दुनियां में सबसे ज़्यादा बिकने वाली चीज़ ?*
 Ans→   झूठ..!!💜
*Qus→   करने लायक सुकून काकार्य ?*
Ans→ परोपकार..!!🌸
*Qus→   दुनियां की सबसे बुरी लत ?*
Ans→ मोह..!!💝
*Qus→   दुनियां का स्वर्णिम स्वप्न ?*
Ans→   जिंदगी..!!🍀
*Qus→   दुनियां की अपरिवर्तनशील चीज़ ?*
Ans→   मौत..!!💜
*Qus→   ऐसी चीज़ जो स्वयं के भी समझ ना आये ?*
Ans→   अपनी मूर्खता..!!🌸
*Qus→   दुनियां में कभी भी नष्ट/ नश्वर न होने वाली चीज़ ?*
Ans→   आत्मा और ज्ञान..!!💝
*Qus→   कभी न थमने वाली चीज़ ?*
Ans→   समय..

रविवार, 14 जनवरी 2018

यजुर्वेद में योग संबंधी मंत्र

यजुर्वेद में योग संबंधी मंत्र


¬ अन्तस्ते द्यावापृथिवी दधाम्यन्तर्दधाभ्युर्वन्तरिक्षम्। सजूर्देवेभिदवरैः परैश्चान्तर्य्यामे मघवन् मादयस्व। यजु0।।7।5।।

भावार्थः ईश्वर का यह उपदेश है कि ब्रह्माण्ड में जिस प्रकार के जितने पदार्थ हैं उसी प्रकार के उतने ही मेरे ज्ञान में वर्तमान हैं। योगविद्या को नहीं जाननेवाला उनको नहीं देख सकता और मेरी उपासना के बिना कोई योगी नहीं हो सकता।

¬ इन्द्रवायूSइमे सुताSउप प्रयोभिरागतम्। इन्दवो वामुशंसि हि। उपयामगृहीतोSसि वायवSइन्द्रवायुभ्यां त्वैष ते योनिः सजोषोभ्यां त्वा। यजु0।।7।8।।

भावार्थः वे ही लोग पूर्ण योगी और सिद्ध हो सकते हैं जो कि योगविद्याभ्यास करके ईश्वर से लेके पृथिवी प्र्य्यन्त पदार्थों को साक्षात् करने का यत्न किया करते और यम नियम आदि साधनों से युक्त योग में रम रहे हैं और जो इन सिद्धों का सेवन करते हैं वे भी इस योगसिद्धि को प्राप्त होते हैं अन्य नहीं।

¬ या वां कशा मधुमत्यश्विना सूनृतावती। तया यज्ञं मिमिक्षतम्। उपयामगृहीताSस्यश्विभ्यां तवैष ते योनिर्माध्वीभ्यां त्वा। यजु0।।7।11।।
भावार्थः योगी लोग मधुर प्यारी वाणी से योग सीखनेवालों को उपदेश करें और अपना सर्वस्व योग ही को जानें तथा अन्य मनुष्य वैसे योगी का सदा आश्रय किया करें।

¬ तं प्रत्नथा पूर्वथा विश्वथेमथा ज्येष्ठतातिं बर्हिष्द ँ् स्वर्विदम्। प्रतीचीनं वृजनं दोहसे ध्रुनिमाशुं जयन्तमनु यासु वर्द्धसे। उपयामगृहीतोSसि शण्डाय तवैष ते योतिर्वीरतां पाह्यपमृष्टः शण्डो देवास्त्वा शुक्रपाः प्रणयन्त्वनाधृष्टासि। यजु0।।7।12।।
भावार्थः हे योग की इच्छा करने वाले! जैसे शमदमादि गुणयुक्त पुरुष योगबल से विद्याबल की उन्नति कर सकता है, वही अविद्यारूपी अंधकार का विध्वंस करनेवाली योगविद्या सज्जनों को प्राप्त होकर जैसे यथोचित सुख देती है वैसे आपको दे।

¬ सुवीरो वीरान् प्रजनयन् परीह्यभि रायस्पोषेण यजमानम्। संजग्मानो दिवा पृथिव्या शुक्रः शुक्रशोचिषा निरस्तः शण्डः शुक्रस्याधिष्ठानमसि। यजु0।।7।13।।
भावार्थः शमदमादि गुणों का आधार योगाभ्यास में तत्पर योगी-जन अपनी योगविद्या के प्रचार से योगविद्या चाहनेवालों का आत्मबल बढ़ाता हुआ सब जगह सूर्य के समान प्रकाशित होता है।

¬ अच्छिन्नस्य ते देव सोम सुवीर्य्यस्य रायस्पोषस्य ददितारः स्याम। सा प्रथमा संस्कृतिर्विश्ववारा स प्रथमो वरुणो मित्रेSअग्निः। यजु0।।7।14।।
भावार्थः योगविद्या में सम्पन्न शुद्धचित्त युक्त योगियों को योग्य है कि जिज्ञासुओं के लिए नित्य योग और विद्यादान देकर उन्हें शारिरिक और आत्मबल से युक्त किया करें।

¬ उपयामगृहीतोSसि ध्रुवोSसि ध्रुवक्षितिर्ध्रुवाणां ध्रुवतमोSच्युतानामच्युतक्षित्तमSएष ते योनिर्वैश्वानराय त्वा। ध्रुवं ध्रुवेण मनसा वाचा सोममवनयामि। अथा नSइन्द्रSइद्विशोSसपत्नाः समनसस्करत्। यजु0।।7।25।।
भावार्थः जो नित्य पदार्थों में नित्य और स्थिरों में भी स्थिर परमेश्वर है, उस समस्त जगत् के उत्पन्न करनेवाले परमेश्वर की प्राप्ति और योगाभ्यास के अनुष्ठान से ही ठीक ठीक ज्ञान हो सकता है, अन्यथा नहीं।

¬ आत्मने मे वर्चोदा वर्चसे पवस्वौजसे में वर्चोदा वर्चसे पवस्वायुषे में वर्चोदा वर्चसे पवस्व विश्वाभ्यो मे प्रजाभ्यो वर्चोदसौ वर्चसे पवेथाम्। यजु0।।7।28।।
भावार्थः योगविद्या के बिना कोई भी मनुष्य पूर्ण विद्यावान् नहीं हो सकता और न पूर्ण विद्या के बिना अपने स्वरूप का ज्ञान कभी होता है। और न इसके बिना कोई न्यायधीश सत्पुरुषों के समान प्रजा की रक्षा कर सकता है। इसलिए सब मनुष्यों को योग्य है किइस योगविद्या का सेवन निरन्तर करें।


आपका
ब्रह्मचारी अनुभव शर्मा
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