बुधवार, 30 अगस्त 2017

पूजा का वास्तविक रुप

पूजा क्या है ?

भाइयों बहनों पूजा का ज़िक्र आया है तो यह विचारें कि पूजा चीज़ क्या है? यदि स्त्रीयों की पूजा को लेवें तो जैसा कि हमारे वैदिक साहित्य में भी कहा है कि - 
"यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः। " 

हमें नारियों की पूजा अवश्य करनी चाहिए , तो क्या उनकी आरती उतारी जावे? या हाथ जोड़ कर उनके सामने खड़ा होकर ही उनकी पूजा की जावे? 

नहीं नहीं उनका आदर सम्मान करना, समय समय पर वस्त्राभूषण आदि  द्वारा उनका स्वागत करना व उनको सदा प्रसन्न रखना ही उनकी पूजा है। जहाँ जिन घरों में ऐसा होता है, देवता साक्षात उन गृहों में वास करते हैं। 

अब राम नाम की पूजा कैसे करें? कहा है "रमेति रामः " जो परमात्मा कण कण में बस रहा है, रमा  है, उसे राम कहते हैं। उन परमात्मा को स्तुति, प्रार्थना व उपासना के द्वारा, जप, तप आदि के द्वारा प्रसन्न किया जाता है।  तो भाइयों बहनों आप के मन में प्रश्न होगा कि परमात्मा तो अब हैं ही नहीं वो तो आज से साढ़े आठ लाख वर्ष पूर्व पैदा हुए थे भगवान राम, दशरथ नंदन के रूप में, सियापति श्री राम।  और पुनः आज से साढ़े पांच हज़ार वर्ष पूर्व श्री कृष्ण देवकी नंदन के रूप में।  

देखो राम नाम के वे दूत जो कि मुक्ति के निकट की परम पुनीत आत्मा थे, उन्हें परमात्मा ने पृथ्वी पर सत्य न्याय, धर्म स्थापना आदि व मर्यादाएं बांधने के लिए परमात्मा ने ही प्रेरित कर जन्म दिलाया था, वो दिव्य आत्मा थीं, परन्तु उनका शरीर हम, तुम जैसा ही था। और परमात्मा तो अब भी हैं।  उनका रूप जैसा मेरी बुद्धि में, आत्मा में आया  जो मैंने जाना है बताता हूँ।  देखो हरेक कार्य का एक कारण होता है - जैसे एक छपी पुस्तक के कारण - १. कागज़, २. कंप्यूटर व ३. मनुष्य हैं।  वैसे ही हरेक पदार्थ के तीन कारण होते हैं।  इसी प्रकार इस सूर्य का क्या कारण है, क्यूंकि बिना बनाये कोई चीज़ बन नहीं सकती, सूर्य को किसने बनाया-  उत्तर है जिसने भी बनाया है उसी को परमात्मा नाम से पुकारता हूँ मैं. ईश्वर एक अदृश्य, वायु के समान सर्वत्र फैली, एक चेतना हैं, अनंत गुणवान व अनंत बलवान हैं. उसी परमात्मा की पूजा हमें करनी चाहिए।  परमात्मा के स्थान पर परमात्मा के सिवा मत किसी को जानो, मत मानो, मत पूजो ।  यह वेद का ही एक वचन है। 

और रहा जड़ अग्नि, जल, वायु, पृथ्वी, आकाश, सूर्य, चन्द्रमा, नक्षत्रादि की पूजा का विषय, तो इन पदार्थों का सदुपयोग करना ही इनकी पूजा है।  पूजा अर्थात सदुपयोग. इनके गुणों को जानकर  सदुपयोग करना ही इनकी पूजा है।  यहाँ हाथ जोड़ने मात्र से काम न चलेगा, पुरुषार्थ करना होगा। 

रहा अन्य पूजा के विषय - हम अपने माता, पिता, सदगुरु , ऋषि मुनि, सत सन्यासियों का आदर, सत्कार व उनको नाना सुविधाएँ उपलब्ध करवा कर उनकी पूजा ही करते  हैं, गुरु की पूजा है, उनके आदेशानुसार अपने जीवन को बनाना। 

आपका 
अनुभव शर्मा 


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