बुधवार, 28 फ़रवरी 2018

द्रौपदी माता की यज्ञ शाला

आज से लगभग ५००० वर्ष पूर्व का खंडहर जो कि द्रौपदी माता की यज्ञ शाला है - 







 यह यज्ञशाला बरनावा जिला बागपत में स्थित है।  यह वहीँ जगह है जहाँ पाण्डवों के लिए दुर्योधन ने लाक्षागृह का निर्माण करवाया था।

ज्ञातव्य हो कि यहाँ पर इस समय इतिहासकार वैज्ञानिकों की टीम खुदाई कर रही है और पाए अवशेषों से इतिहास का अनुमान व महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त करने का प्रयास कर रही है।

माता द्रौपदी एक विदुषी, वेद की विद्वान् व महान चरित्रवान महिला थीं परन्तु खेद है कि उनके चरित्र को भ्रष्ट कर के जैनी काल में उन लोगों ने कुछ न छोड़ा।  माता द्रौपदी इतनी महान थीं कि उन्हें अपने पुराने सात जन्मों की स्मृति थी और योगिराज श्री कृष्ण जी महाराज उनसे जब भी मिलने आते थे तो उनके चरण स्पर्श करते थे और वह इसलिए क्योंकि उनका जीवन एक तपस्विनी की भांति था।  और वे विदुषी भी थीं।  वे कृष्ण जी की बहन कहलाती थीं। जैनी काल में यह कैसे हुआ कि उनको पांच पतियों वाली कहा जाने लगा इसके लिए अवश्य पढ़ें - महाभारत काल के बाद का आर्यावर्त भाग - 10


आपका
ब्रह्मचारी अनुभव शर्मा

मंगलवार, 27 फ़रवरी 2018

अथर्ववेद पारायण आंशिक महायज्ञ

।।ओ३म्।।

पूज्यपाद ब्रह्मऋषि कृष्ण दत्त जी महाराज 



पूज्यपाद महर्षि स्वामी दयानन्द सरस्वती जी महाराज 

यज्ञो वै श्रेष्ठतमम् कर्मः

ओ३म् प्रति मे स्तोममदितिर्जगृभ्यात्सूनुं न माता हृद्यं सुशेवम्। 
ब्रह्मप्रियं देवहितम् यदस्त्यहं मित्रे वरुणे यन्मयोभुः।।

आर्य समाज यज्ञ समिति इस्माईलपुर
निकट चाँदपुर स्याऊ (बिजनौर)


अथर्ववेद पारायण आंशिक महायज्ञ 
व ७९ वाँ वार्षिकोत्सव


(६ अप्रैल  शुक्रवार से ८ अप्रैल २०१८ दिन रविवार तक)


सम्पर्क सूत्रः ९६३९२७७२२९, ९४१२८५४२९७, ९४५८२७२०९२(यज्ञ संयोजक गण) 


सभी यज्ञ प्रेमी सज्जनों को यह जानकर हर्ष होगा कि महर्षि स्वामी दयानंद सरस्वती जी महाराज तथा ब्रह्मर्षि ब्रह्मचारी कृष्णदत्त जी महाराज (पूर्व श्रृंगि ऋषि) की पावनी प्रेरणा से आत्मोन्नति एवं पर्यावरण शुद्धि हेतु गुरुकुल आर्ष कन्या विद्यापीठ, श्रवणपुर नजीबाबाद की आर्ष विदुषी आदरणीया बहन सुलभा शास्त्री जी के ब्रह्मत्व में व गुरुकुल की तेजस्विनी ब्रह्मचारिणियों के वेद मंत्रों के पाठ के द्वारा अथर्ववेद पारायण महायाग का आयोजन किया जा रहा है। यज्ञ में आहुतियां देकर पुण्य के भागी बनें तथा ७९वें स्थापना वर्ष व वार्षिकोत्सव जो कि बड़ी धूमधाम से मनाया जा रहा है, में, अपनी भागीदारी अवश्य ही सुनिश्चित कर लेवें।

जो शुभेच्छु आर्य ग्रामवासी सपत्नीक इस यज्ञ में यजमान बनना चाहते हैं वे यज्ञ संयोजक अनुभव शर्मा, अमित कुमार ‘सोनू’ व अरविंद कुमार ‘मोंटी’ से सम्पर्क कर लेवें।

आर्ष भजनोपदेशक :  श्रीमान् राकेश आर्य जी
विशेष अतिथि गण :  आचार्य देवव्रत जी, बहन श्रीमति कमलेश सैनी जी(विधायक चाँदपुर), माननीय श्री वीर सिंह जी(जिला पंचायत सदस्य)

कार्यक्रमः...........................................................................................

६ अप्रैल व ७ अप्रैल (दिन शुक्रवार व शनिवार) को

प्रातः ७ः३० बजे से १०ः३० बजे तक यज्ञ
सांय ३ः०० बजे से ५ः३० बजे तक यज्ञ
रात्रि ८ बजे से १०ः०० बजे तक भजनोपदेश  व आर्ष  उपदेश तथा

रविवार, ८ अप्रैल  को
प्रातः ७ः३० से यज्ञ प्रारंभ व ११ बजे पूर्णाहुति, आशीर्वाद तत्पश्चात प्रसाद वितरण होगा।
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निवेदक - (गत वर्ष के यजमान) श्रीमति मुन्नी देवी, डा० श्री सहदेव सिंह, सपत्नीक श्रीमान् नैपाल सिंह आर्य, विजयवीर सिंह, उदयवीर सिंह, राजीव कुमार, संजीव कुमार, अमित कुमार, दीपक कुमार, रणधीर सिंह आर्य, अशोककुमार(पू०प्र०) व सभी आर्य कार्यकर्त्ता तथा यज्ञ समिति व महिला यज्ञ साधिका समिति, इस्माईलपुर (बिजनौर)

मंत्री(डा० सहदेव सिंह आर्य)                            प्रधान (नैपाल सिंह आर्य)

स्वागताकांक्षी- समस्त ग्रामवासी, इस्माईलपुर (बिजनौर)

गुरुवार, 15 फ़रवरी 2018

परमात्मा का अस्तित्व

ॐ 


सभी भाई बहन जानते हैं कि परमात्मा होता है परन्तु भौतिक विज्ञान से युक्त बुद्धि वाले हमारे भाई बहन यह नहीं मानते और कहते हैं कि परमात्मा होता ही नहीं और वे आत्मा के अस्तित्व को भी नकारते हैं और न ही उनका लोक, परलोक, कर्म, भाग्य, पूर्व व पर जन्म में ही विश्वास होता है।  वे मानते हैं कि यह संसार आदि काल से ऐसे ही चला आ रहा है और इसका कोई नियामक या शासक नहीं होता।  समय समय पर नयी नयी व्यवस्थाएं बनती हैं और कभी लोकतंत्र तो कभी राज तंत्र तो कभी आततायियों का प्रभुत्व तो कभी अच्छे लोगों का शासन बिना किसी प्रभु की इच्छा के आता रहा है। मेरी यह पोस्ट उन ही भाई बहनों के लिए समर्पित है। 

भाइयों बहनों! आप अपने सामने देखो यह कप्यूटर या मोबाइल का स्क्रीन भी किसी ने बनाया है खुद ब खुद नहीं बन गया।  जिस में आप चाय पीते हो वह कप भी किसी ने बनाया है।  चाय जो पीते हो वह भी कोई स्त्री या पुरुष या आप खुद बनाते हो खुद ही नहीं बनती।  जिन किताबों को आप पढ़ते हो वह भी किसी ने बनायी हैं और कंप्यूटर से छापते हुए भी कोई मानव ही था जिस के कारण छपीं।  जिस पैन को आप प्रयोग करते हो वह भी किसी मानव ने ही बनाया।  इसी प्रकार जिस पलंग पर आप सोते हो वह भी किसी बढ़ई ने बनाया। जिस कॉपी पर आप लिखते हो वह भी मानवों के द्वारा निर्मित हैं।  किसी या किन्हीं मानव/मानवों ही ने इनकी खोज की और फिर मानवों के द्वारा ही मशीन्स की सहायता से व बुद्धि और ज्ञान के प्रयोग साथ साथ पदार्थों के संयोग के द्वारा ही ये सभी चीज़ें बनायी गई हैं खुद ही नहीं बनी हैं।  है न? अर्थात कोई भी पदार्थ या वस्तु खुद ही नहीं बन सकती उसका कोई न कोई बनाने वाला होता है।  

अब विचारो कि इतने बड़े सूर्य को किसने बनाया होगा। हम यदि विचारें कि पूर्व समय में बहुत बड़े बड़े मानव रहे होंगे उन ही ने बनाया होगा तो इतना बड़ा मानव तो हो नहीं सकता जो पृथ्वी से लाखों गुना बड़े सूर्य का निर्माण कर सके।  और पुराने समय में अधिक से अधिक आज से दुगने मानव होते होंगे उससे बड़े तो संभव ही नहीं।  अर्थात सूर्य को किसी और ने बनाया है क्यूंकि यह पदार्थ बिना बनाये तो बन नहीं सकता।  तो भाई जिसने भी बनाया वह ही परमात्मा है। देखो मानव के नेत्र को विचारो कोई वैज्ञानिक ऐसा नहीं हुआ जो ऐसे नेत्र बना सके, केवल ट्रान्सप्लांट ही किया करते हैं डॉक्टर मानव नेत्र के ऑपरेशन्स के समय।  इसी प्रकार हृदय आदि को भी विचारें।  ये अंग मानव नहीं बना सकता।  अर्थात माता के गर्भ में जिसने भी बनाया वह ही परमात्मा है भाइयों! 

अब विचारें फूल, कितनी सुन्दर नक्काशी, और सभी पंखुड़ियों की व्यवस्था और डिज़ाइन एक जैसे, तो भाई फूल को भी निश्चित रूप से परमात्मा ही बनाता है।  और यह पृथ्वी भी एक समान गति से अरबों वर्षों से घूम रही है तो उस को प्रारंभिक गति देने वाला कौन जो गति पाकर पृथ्वी अभी तक नहीं रुकी? तो भाई पृथ्वी के निर्माण के पश्चात उस गति को देने वाला भी परमात्मा ही है?

अतः सिद्ध हुआ कि परमात्मा है। 


परमात्मा वायु के सामान अदृश्य चेतना के रूप में सारे ब्रह्माण्ड में फैला है और पार निकला हुआ है। उपनिषदों के अनुसार परमात्मा इतना सूक्ष्म भी है कि मानव के ह्रदय की गुफा में समा जाता है।  हमारे सिर के बाल की अनुप्रस्थ काट के ९९ भाग करें उस एक भाग के ६० भाग करें फिर उससे प्राप्त  एक भाग के ९९ भाग फिर करें और प्राप्त एक भाग के फिर ६० भाग करें - भाइयों बहनो इतना सूक्ष्म परमात्मा है।  और इतना विस्तृत है कि हम असंख्य जीव उस पिता परमात्मा के भीतर समाये हुए हैं अर्थात उस माता के गर्भ में समाये हुए हैं। वह परमात्मा हमारी माता भी है और पिता भी।  परमात्मा क्यूंकि एक चेतना है और हर समय हर स्थान पर पहले से ही मौजूद है अतः उसकी मूर्ति नहीं बन सकती।  परन्तु वह नहीं है ऐसा कभी नहीं विचारना चाहिए।  क्यूंकि वह हर वक़्त हमें देखता है और हमारे मन की बातें भी सुनता है। 

आपका अपना 
ब्रह्मचारी अनुभव शर्मा

मंगलवार, 13 फ़रवरी 2018

त्रेता काल का दंड विधान (प्राइम मिनिस्टर जी को सन्देश)

ओ३म् 


भगवान राम चंद्र जी द्वारा दिया एक दण्ड 


हमारे कानून दा व प्राइम मिनिस्टर जी के लिए यह एक उदाहरण प्रस्तुत किया जा रहा है कि कोई भी अपराधी बिना दंड के दिए, मात्र क्षमा न किया जाए।  अपराधी को दंड दिया ही जाना चाहिए। 


तमोगुणी तप 

तो भगवान् राम का जीवन बड़ा प्रिय और भव्यता में रमण करता रहता था।  परन्तु जब मैं आधुनिक काल के राष्ट्र या माता पिता को दृष्टिपात करता हूँ तो मेरा अंतरात्मा बड़ा आश्चर्य युक्त होता है।  मुझे ऐसा स्मरण आ रहा है मानो भगवान् राम के काल में एक तपस्वी तप करने लगा और वह मानो तमोगुणी तप था।  किसी का अनिष्ट करने के लिए वह कुछ तप कर रहे थे।  राम ने अपने तीखे बाणों से उसे नष्ट कर दिया।  तीखे शस्त्रों से उस पर प्रहार कर दिया।  देखो, ब्रह्मवेत्ताओं में एक बड़ा त्राहि-त्राहि हो गई , कि मानो ऐसा कैसे हुआ? राम के समीप पहुंचे, उन्होंने कहा कि जिस राजा के राष्ट्र में दूसरों का अनिष्ट करने वाले अथवा तपस्वी व तपस्या का ह्रास होता हो उस राजा के राष्ट्र में, तो भगवान् राम ने मानो देखो, उसको त्रास, उसको मृत्यु दंड दिया। 

तो परिणाम यह है कि आज हमारे विचारों का, आज मैं विशेष चर्चा न देता हुआ पूज्यपाद गुरुदेव तो सर्वत्र जानते हैं आधुनिक काल के राष्ट्र की चर्चाएं कि राजा ही मानो देखो, दूसरों का अनिष्ट करने वाले हों तो यह राष्ट्र कैसे स्थिर रह सकेगा देखो, राजा के राष्ट्र में हिंसा होती हो, ईश्वर वाद के ऊपर हिंसा होती हो प्रायः मानो देखो, यह कर्त्तव्य माना गया है।  हमारे यहां यह सिद्धांत है कि राजा को प्रजा की रक्षा करने के लिए आततायी को दंड देना चाहिए और मानो देखो, महापुरुषों की शुद्धता की रक्षा करनी चाहिए। 



ब्रह्मचारी कृष्णदत्त जी महाराज (पूर्व श्रृंगी ऋषि)  के प्रवचन से 
पुस्तक : त्रेता कालीन विज्ञान 
पेज ५३ 
वैदिक अनुसंधान समिति(रजि 0), दिल्ली 




आपका 
ब्रह्मचारी अनुभव शर्मा 

सोमवार, 12 फ़रवरी 2018

कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजीविषेच्छथ

परम पिता परमात्मा ने वेद के द्वारा पुरुषार्थ की आज्ञा सभी मनुष्यों को दी है चाहे वो स्त्री हों या पुरुष।  कर्म के कारण ये संसार भी नष्ट नहीं होता निरंतर चलता ही जा रहा है।  जिस दिन कर्म इस संसार से समाप्त हो गया समझो उसी दिन इस संसार का अंत निकट है।  यजुर्वेद के ४० वे अध्याय के २ वे मन्त्र में कहा है कि कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजीविषेच्छथ अर्थात कर्मों को करता ही करता सौ वर्ष तक जीने की इच्छा करें, कभी निठल्ला रहने की इच्छा भी न करें। 

भगवान श्री कृष्ण ने भगवत् गीता में कहा है कि कर्म निम्नलिखित प्रकार के होते हैं -

कर्म, अकर्म व विकर्म तथा सतोगुणी, रजोगुणी व तमोगुणी कर्म। 

कर्म - फल की इच्छा के सहित किया जाने वाला कर्म, कर्म कहलाता है। 

अकर्म - फल की इच्छा को त्याग कर किया जाने वाला  कर्म, निष्काम कर्म, अकर्म की संज्ञा में आता है। 

विकर्म - पाप रूप उलट कर्म विकर्म कहलाते हैं। 

सतोगुणी कर्म - परोपकार के कर्म, जो शुरू में विष के तुल्य हों व फल में अमृत तुल्य होते हैं, सतोगुणी कहलाते हैं। 

रजोगुणी कर्म - इन्द्रियों के द्वारा किये वे कर्म जो प्रारम्भ में सुखदायक होते हैं परन्तु फल उनका दुःखप्रद होता है, रजोगुणी कर्म कहलाते हैं। 

तमोगुणी कर्म - दूसरों को कष्ट देने वाले, हिंसा से भरे आदि कर्म जिनका फल विष तुल्य होता है तमोगुणी कर्म कहलाते हैं। 

थोड़ा सा अकर्म  (निष्काम कर्म) भी बहुत बड़े दुःख व भय से मुक्ति दिलाने वाला होता है अतः गीता में समझाया हुआ निष्काम कर्म महान है। 

अतः अकर्म व सतोगुणी कर्म सर्वश्रेष्ठ व महान हैं। वास्तव में सतोगुणी कर्म ही धर्म कहलाता है।




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आपका अपना 
ब्रह्मचारी अनुभव शर्मा 

शनिवार, 3 फ़रवरी 2018

WOMEN RIGHTS IN VEDAS

WOMEN RIGHTS IN VEDAS


WOMEN SHOULD--



1. BE VALIANT : YJ 10.03
2. EARN FAME : AV 14.1.20
3. SCHOLAR : AV 11.5.18
4. ILLUMINATING : AV 14.2.74
5. PROSPEROUS AND WEALTHY : AV 7.47.2
6. INTELLIGENT AND KNOWLEDIABLE : AV 7.47.1
7. TAKE PART IN LEGISLATIVE CHEMBERS : AV 7.38.4
8. LEAD STAGE FOR RULING NATION : RV 10.85.46
9. SOCIAL WORKS : RV 10.85.46
10. LEAD STAGE IN GOVENMENTAL ORGANIZATIONS : RV 10.85.46
11. SAME RIGHT AS SON OVER FATHER'S PROPERTY : RV 3.31.1
12. PROTECTOR OF FAMILY AND SOCIETY : AV 14.1.20
13. PROVIDER OF WEALTH, FOOD AV 11.1.17
14. PROVIDER OF PROSPERITY : AV 11.1.17
15. RIDE ON CHARIOTS : AV 9.9.2
16. PARTICIPATE IN WARS :  YV 16.44





1. अर्थेत स्थ राष्ट्रदा राष्ट्र मे दत्त स्वाहार्थेत स्थ राष्ट्रदा राष्ट्र्ममुष्मै दत्तौजस्वति स्थ राष्ट्रदा राष्ट्रं मे दत्त स्वाहौजस्वती स्थ राष्ट्रदा राष्ट्र्ममुष्मै दत्तापः परिवाहिणी स्थ राष्ट्रदा राष्ट्रं मे दत्त स्वहापः परिवाहिणी स्थ राष्ट्रदा राष्ट्र्ममुष्मै दत्तापां पतिरसि राष्ट्रदा राष्ट्रं मे देहि स्वाहापां पतिरसि राष्ट्रदा राष्ट्र्ममुष्मै देह्यपां गर्भोसि राष्ट्रदा राष्ट्रं मे देहि स्वाहापां गर्भोसि राष्ट्रदा राष्ट्र्ममुष्मै ।यजुर्वेद ।१०.०३

2, 12. भगस्त्वेतो नयतु हस्त गृह्यश्विना त्वा प्र वहतां रथेन 
गृहान्गच्छ गृहपत्नी यथासो वशिनी त्वं विदथमा वदासि ।अथर्ववेद ।१४.१.२०

3. ब्रह्मचर्येण कन्या३ युवानं विन्दते पतिम् । अनङ्वान्ब्रह्मचर्येणाश्वां घासं जिगीर्षति ।अथर्ववेद ।११.०५.१८

4. येदं पूर्वागन्न्रशनायमाना प्रजामस्यै द्रविणं चेह दत्त्वा 
तां वहन्त्वगतस्यानु पन्थौ विराडियंसुप्रजा अत्यजैषीत् ।अथर्ववेद ।१४.२.७४

5. कुहूर्देवानाममृतस्य पत्नी हव्या नो अस्य हविषो जुषेत
शृणोतु यज्ञमुशति नो अद्य रायस्पोषं चिकितुषी दधातु ।अथर्ववेद ।७.४७.२

6. कुहूं देवीं सुकृतं विद्मनापसमस्मिन्यज्ञे जोहवीमि 
सा नो रयिं विश्ववारं नि यच्छाद्ददातु वीरं शतदायमुक्थ्यम् ।अथर्ववेद। ७.४७.१

7. अहं वदामि नेत्त्वं सभायामह त्वं वद 
ममेदसस्त्वं केवलो नान्यासां कीर्त्याश्चन ।अथर्ववेद ।७.३८.४

8, 9, 10. सम्राज्ञी श्वशुरे भव सम्राज्ञी श्वश्वां भव
ननान्दरि सम्राज्ञी भव सम्राज्ञी अधि देवृषु।ऋग्वेद।१०.८५.४६

11. शास्द्वह्निर्दुहितुर्नप्त्यं गाद्विद्वां ऋतस्य दीधितिं सपर्यन् 
पिता यत्र दुहितुः सेकमृन्जन्त्सं शग्म्येन मनसा दधन्वे।ऋग्वेद ३.३१.१ 

13, 14. शुद्धाः पूता योषितो यज्ञिया इमा आपर्श्चरुमव सर्पन्तु शुभ्राः 
अदुः प्रजां बहुलान्पशून्नः पक्तौदनस्य सुकृतामेतु लोकम् ।अथर्ववेद ।११.१.१७

15.  सप्त युञ्जन्ति रथमेकचक्रमेको अश्वो वहति सप्तनामा 
त्रिनाभि चक्रमजरमनार्वं यत्रेमा विश्वा  भुवनाधि तस्थुः ।अथर्ववेद ।९.९.२

16. नमो व्रज्याय च गोष्ठ्याय च नमस्तल्प्याय च गेह्याय च नमो हृदय्याय च निवेष्प्याय च नमः काट्याय च गह्वरेष्ठाय च ।यजुर्वेद ।१६.४४


द्वारा 
ब्रह्मचारी अनुभव शर्मा 



गुरुवार, 1 फ़रवरी 2018

अतिमहत्वपूर्ण जानकारी : सरपंचो की कमाई

सरपंचो   की कमाई



अपने अपने गांव पंचायत और जिले के सभी पंचायत में कितना पैसा सरकार का आया है और क्या काम किया और किस काम का कितना पैसा आप के गांव के सरपंच ने खाया उस का पता इस लिंक से लगाओ ओर सरकार के अपने पैसो का सही उपयोग  करे


# अतिमहत्वपूर्ण_जानकारी



इस लिंक पे आप अपने गांव मे हुए सभी कार्यो की जानकारी देख सकते है।  किस काम मे कितना पैसा खर्च हुआ। 

यह देखकर हैरान हो गया कि एक छोटे से भी काम के लिए सरकार कितना पैसा देती है।  अब हमको जागरूक होने की जरूरत है।  सभी जानकारियां सरकार ने ऑनलाइन वेबसाइट पर उपलब्ध करा दी है बस हमें उन्हें जानने की जरूरत है।  यदि हर गांव के सिर्फ 2-3 युवा ही इस जानकारी को अपने गांव के लोगों को बताने लगें, समझ लो आधा भ्रष्टाचार ऐसे ही कम हो जाएगा। 

इसलिए आपसे गुजारिश है कि आप अपने गांव में वर्ष 2016-17 मे हुए कार्यो को जरूर देखें और इस लिंक को देश के हर गांव तक भेजने की कोशिश करे ताकि गांव के लोग अपना अधिकार पा सके।  एक बार अवश्य देखे व जाने कितनी मद आपके ग्राम सभा में प्रधानों ने खर्च की है। 


आपका 
ब्रह्मचारी अनुभव शर्मा 

संत शिरोमणि सतगुरु रविदास महाराज की जयंती

महान युग द्रष्ठा सामाजिक समरसता के प्रणेता संत रविदास की जयंती माघ पूर्णिमा २०७४ विक्रमी तदनुसार 31 जनवरी 2018 पर हार्दिक बधाई।



प्रभु जी तुम चन्दन हम पानी
जाकी अंग अंग बास समानी।

प्रभु जी तुम घन बन हम मोरा
जैसे चितवन चंद चकोरा।

प्रभु जी तुम दीपक हम बाती
जा की जोत बरै दिन राति।

प्रभु जी तुम मोती हम धागा
जैसे सोनहि मिलत सोहागा।

प्रभु जी तुम स्वामी हम दासा
ऐसी भक्ति करै रैदासा


काशी मे चवरबंश के पीपल गोत्र मे जन्म लिया । रामानंद जी को गुरु बनाया। 

काशी नरेश एवं चित्तोड के महाराणा परिवार की मीरा को शिष्या बनाया । सदना कसाई को शास्त्रार्थ कर हिन्दू बनाया । सिकन्दर लोधी ने इस्लाम स्वीकार करने को जेल मे डाला पर उन्होंने किसी भी हालत मे हिन्दू धर्म छोडने से मना कर दिया।

वेद धर्म सबसे बड़ा, अनुपम सच्चा ज्ञान। 
फिर मैं क्यों छोड़ूँ इसे पढ़ लूँ झूट क़ुरान। 
वेद धर्म छोड़ूँ नहीं कोसिस करो हजार। 
तिल-तिल काटो चाही गोदो अंग कटार। 

संत शिरोमणि सतगुरु रविदास महाराज की जयंती पर आपको हार्दिक बधाई ।

आडम्बर को त्यागने की प्रेरणा - जब मन चंगा तो कठोती मे गंगा  का उदाहरण प्रस्तुत किया ।


ऐसे महान संत का सर्व हिन्दूसमाज सदैव ऋणी रहेगा। 

संत रविदास जी के जन्मोत्सव की कोटि मंगलकामनाएं।




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