शनिवार, 3 फ़रवरी 2018

WOMEN RIGHTS IN VEDAS

WOMEN RIGHTS IN VEDAS


WOMEN SHOULD--



1. BE VALIANT : YJ 10.03
2. EARN FAME : AV 14.1.20
3. SCHOLAR : AV 11.5.18
4. ILLUMINATING : AV 14.2.74
5. PROSPEROUS AND WEALTHY : AV 7.47.2
6. INTELLIGENT AND KNOWLEDIABLE : AV 7.47.1
7. TAKE PART IN LEGISLATIVE CHEMBERS : AV 7.38.4
8. LEAD STAGE FOR RULING NATION : RV 10.85.46
9. SOCIAL WORKS : RV 10.85.46
10. LEAD STAGE IN GOVENMENTAL ORGANIZATIONS : RV 10.85.46
11. SAME RIGHT AS SON OVER FATHER'S PROPERTY : RV 3.31.1
12. PROTECTOR OF FAMILY AND SOCIETY : AV 14.1.20
13. PROVIDER OF WEALTH, FOOD AV 11.1.17
14. PROVIDER OF PROSPERITY : AV 11.1.17
15. RIDE ON CHARIOTS : AV 9.9.2
16. PARTICIPATE IN WARS :  YV 16.44





1. अर्थेत स्थ राष्ट्रदा राष्ट्र मे दत्त स्वाहार्थेत स्थ राष्ट्रदा राष्ट्र्ममुष्मै दत्तौजस्वति स्थ राष्ट्रदा राष्ट्रं मे दत्त स्वाहौजस्वती स्थ राष्ट्रदा राष्ट्र्ममुष्मै दत्तापः परिवाहिणी स्थ राष्ट्रदा राष्ट्रं मे दत्त स्वहापः परिवाहिणी स्थ राष्ट्रदा राष्ट्र्ममुष्मै दत्तापां पतिरसि राष्ट्रदा राष्ट्रं मे देहि स्वाहापां पतिरसि राष्ट्रदा राष्ट्र्ममुष्मै देह्यपां गर्भोसि राष्ट्रदा राष्ट्रं मे देहि स्वाहापां गर्भोसि राष्ट्रदा राष्ट्र्ममुष्मै ।यजुर्वेद ।१०.०३

2, 12. भगस्त्वेतो नयतु हस्त गृह्यश्विना त्वा प्र वहतां रथेन 
गृहान्गच्छ गृहपत्नी यथासो वशिनी त्वं विदथमा वदासि ।अथर्ववेद ।१४.१.२०

3. ब्रह्मचर्येण कन्या३ युवानं विन्दते पतिम् । अनङ्वान्ब्रह्मचर्येणाश्वां घासं जिगीर्षति ।अथर्ववेद ।११.०५.१८

4. येदं पूर्वागन्न्रशनायमाना प्रजामस्यै द्रविणं चेह दत्त्वा 
तां वहन्त्वगतस्यानु पन्थौ विराडियंसुप्रजा अत्यजैषीत् ।अथर्ववेद ।१४.२.७४

5. कुहूर्देवानाममृतस्य पत्नी हव्या नो अस्य हविषो जुषेत
शृणोतु यज्ञमुशति नो अद्य रायस्पोषं चिकितुषी दधातु ।अथर्ववेद ।७.४७.२

6. कुहूं देवीं सुकृतं विद्मनापसमस्मिन्यज्ञे जोहवीमि 
सा नो रयिं विश्ववारं नि यच्छाद्ददातु वीरं शतदायमुक्थ्यम् ।अथर्ववेद। ७.४७.१

7. अहं वदामि नेत्त्वं सभायामह त्वं वद 
ममेदसस्त्वं केवलो नान्यासां कीर्त्याश्चन ।अथर्ववेद ।७.३८.४

8, 9, 10. सम्राज्ञी श्वशुरे भव सम्राज्ञी श्वश्वां भव
ननान्दरि सम्राज्ञी भव सम्राज्ञी अधि देवृषु।ऋग्वेद।१०.८५.४६

11. शास्द्वह्निर्दुहितुर्नप्त्यं गाद्विद्वां ऋतस्य दीधितिं सपर्यन् 
पिता यत्र दुहितुः सेकमृन्जन्त्सं शग्म्येन मनसा दधन्वे।ऋग्वेद ३.३१.१ 

13, 14. शुद्धाः पूता योषितो यज्ञिया इमा आपर्श्चरुमव सर्पन्तु शुभ्राः 
अदुः प्रजां बहुलान्पशून्नः पक्तौदनस्य सुकृतामेतु लोकम् ।अथर्ववेद ।११.१.१७

15.  सप्त युञ्जन्ति रथमेकचक्रमेको अश्वो वहति सप्तनामा 
त्रिनाभि चक्रमजरमनार्वं यत्रेमा विश्वा  भुवनाधि तस्थुः ।अथर्ववेद ।९.९.२

16. नमो व्रज्याय च गोष्ठ्याय च नमस्तल्प्याय च गेह्याय च नमो हृदय्याय च निवेष्प्याय च नमः काट्याय च गह्वरेष्ठाय च ।यजुर्वेद ।१६.४४


द्वारा 
ब्रह्मचारी अनुभव शर्मा 



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