सोमवार, 18 दिसंबर 2017

मूर्ख कौन

विदुर नीति।।१।३५-४४


जो व्यक्ति विद्वान् न होते हुए भी सब काम अभिमान से करने में तत्पर रहता है, निर्धन होने पर भी बहुत उदार है, बिना कर्म किये फल की अर्थात अर्थ प्राप्ति की इच्छा करता है उसे पंडित लोग मूर्ख कहते हैं। 

जो अपने काम अर्थात कर्त्तव्य छोड़ कर दूसरों के काम करने और पूरा करने में लगा रहता है, जो दोस्तों-मित्रों से झूठा आचरण करता है, वही मूर्ख कहलाता है। 

जो बुरे लोगों और बुरी वस्तुओं को चाहता है तथा अच्छी चीज़ों और अच्छे लोगों को छोड़ता और त्यागता है, शक्तिशाली लोगों से दुश्मनी करता है उसे मुर्ख कहते हैं। 

जो शत्रु को मित्र और मित्र को शत्रु बना लेता है, मित्रों को कष्ट पहुंचता है और ग़लत कार्य करता है, उसे ही मूर्ख कहते हैं। 

हे भरत श्रेष्ठ! जो व्यक्ति अपना काम अपनी हैसियत से ज़्यादा फैलाता है, सब जगह संदेह करता है, संशयवान रहता है, जल्दी होने वाले कामों को लटकाये रखता है और देरी करता है उसे मूर्ख कहते हैं। 

जो माता-पिता अथवा पितरों का सम्मान नहीं करता, उनका श्राद्ध नहीं करता, जो देवताओ की पूजा नहीं करता , जिसे अच्छे  मित्र नहीं मिलते अर्थात सहायता करने वाले अच्छे मित्र नहीं बना पाता , वही मुर्ख है। 

जो कहीं बिना बुलाये पहुँच जाता है, बिना पूछे बहुत बोलता है, जिस पर विश्वास नहीं करना चाहिए उस पर विश्वास कर लेता है, वही दुष्ट व्यक्ति मुर्ख कहलाता है। 

जो अपनी बुराइयां दूसरों में भी फैला देता है और कमजोर होकर ताकतवर से दुश्मनी अर्थात असमर्थ होने पर भी समर्थ व्यक्ति पर क्रोध करता है, वही अत्यंत मुर्ख कहलाता है। 

बहुत से ऐसे काम हैं जिन्हें धार्मिक व आर्थिक दृष्टि से करने की मनाही होती है, या जिन्हें कर पाना असंभव होता है।  जो व्यक्ति शक्ति का अनुमान लगाए बिना इस प्रकार के काम पूरा करना चाहते हैं, वहीँ मुर्ख कहलाते हैं।  पंडितों ने इन्हें मुर्ख कहा है। 

राजन! अपात्र को शिक्षा देता है और ऐसा कार्य करता है जिसका कोई लाभ या उपयोग नहीं होता, जो कंजूस व्यक्ति का आश्रय लेता है, उसे मूढ़ चित्त वाला कहते हैं। 


आपका 
ब्रह्मचारी अनुभव शर्मा 


रविवार, 17 दिसंबर 2017

प्रैस विज्ञप्ति , १७-१२-२०१७, चांदपुर

देव व्रत जी वेद मंदिर चांदपुर में योग के महत्त्व, नशा मुक्ति, समाज सुधार के विचार रखे 

१७-१२-२०१७, चांदपुर

भारत स्वाभिमान के तत्वाधान में आज दिन रविवार को वेद मंदिर, रामलीला मैदान चांदपुर के प्रांगण में पाँचों समितियों की कार्यकारिणी की एक मीटिंग हुयी। कार्यकारिणी मीटिंग के संयोजक अमित कुमार आर्य (त० प्र०, युवाभारत) ने कहा कि जब सभी लोगों को सही सही सुविधाएँ प्राप्त होंगी तभी वे पूर्ण रूप से कार्य करने में समर्थ हैं।  रणधीर सिंह आर्य (त०प्र०, भारत स्वाभिमान) ने सञ्चालन किया और सभी समिति के लिए कठिन मेहनत व ईमानदारी व सच्चाई से कार्य करने वाले सदस्यों को साधुवाद दिया।  श्री कृष्ण कुमार ने किस प्रकार से सभी लोगों के मिल कर चलने से हमारा उत्थान होगा इस विषय में बताया। अनुभव शर्मा (जिला मीडिया प्रभारी, बिजनौर) ने नियमित योग के महत्त्व को बताते हुए कहा के अपूर्व शक्तियों के स्वामी बनने के लिए, ऐश्वर्यवान बनने के लिए योग नियमित रूप से करें। जिला योग प्रचारिका शिवानी शर्मा ने स्कूल व कॉलेजों में योग शिविर लगवाने के लिए, नशा मुक्ति के लिए, जन जागरण आदि के लिए पूर्व नियोजित योजनाए बतायीं। श्री राजीव रुहेला(जिला युवा प्रभारी)  ने समिति की  सम्पूर्ण कार्य योजना का ब्यौरा प्रस्तुत किया। 

श्री महर्षि जी, जिला अध्यक्ष, भारत स्वाभिमान ने सभी पदाधिकारियों को सम्बोधित किया और कहा कि हम लोगों को किस प्रकार योग, नशा मुक्ति, देश जागृति  आदि कार्यक्रमों को सुचारु रूप से चलाना है।  मुख्य अतिथि श्री देव व्रत जी, स्वतंत्र प्रभार, सेवाव्रती, पतंजलि योगपीठ, हरिद्वार ने योग के ऊपर विशेष बल  अपने ओजस्वी प्रवचन के द्वारा सभी भाइयों और बहनों को समिति के कार्य अपने जिले में सुचारु व सक्रिय रूप से चलाने व योग के कार्यक्रमों को गाँव गाँव में नियमित रूप से चलाने के लिए सुझाव व आशीष प्रदान किया।   

सभा अध्यक्ष श्री प्रणव मुनि जी ने कहा कि योग अपनाना ज़रूरी है और बताया कि मोबाइल आदि के सदुपयोग करने से किस प्रकार मानव का उत्थान हो सकता है परन्तु छोटे बच्चों से इस मोबाइल को दूर रखने की सलाह दी।  माननीय अतिथि महोदय ने भी इस बात  समर्थन किया और कहा कि इस से उत्पन्न विकिरण के द्वाराबच्चों शरीर पर बहुत बुरा असर भी पड़ता है। 

बहन पीयूष राजपूत (जि ० मंत्री भारत स्वाभिमान), शोभा शर्मा, अर्चना शर्मा, माया देवी, किंशुक प्रताप (नव निर्वाचित तहसील महा मंत्री, युवा भारत) ने अपनी समस्याएं व सुझाव रखे। 

नन्हे सिंह, चंद्रपाल  सिंह, प्रकाश वीर जी(त० प्र० नूरपुर ब्लॉक ), दिनेश कुमार, प्रेमराज जी आदि आदि लगभग सभी समितियों के पदाधिकारी मीटिंग में उपस्थित थे। 



अनुभव शर्मा 
जिला मीडिया प्रभारी, जिला बिजनौर (भारत स्वाभिमान)

शुक्रवार, 15 दिसंबर 2017

पंडित कौन?

विदुर नीति।।१।।२०-३४।।



जिन्हें अपने वास्तविक स्वरुप का ज्ञान है, जो धर्मात्मा हैं, जो दुःख सहन कर लेते हैं, जो धर्म पालन करते हैं तथा जो लालच में सही रास्ते से नहीं भटकते, वे ही पंडित अर्थात विद्वान् कहलाते हैं।


जो अच्छे कर्मों को करता है तथा निन्दित बुरे कर्मों से बचता है, जो आस्तिक  श्रद्वालु है, वही पंडित है।  पंडित के यही सदगुण उसकी पहचान हैं।  यही उसके लक्षण हैं।

जो पुरुष क्रोध, प्रसन्नता, लज्जा, उद्दंडता तथा अपने आप को पूज्य समझने के अभिमान के वश में होकर अपने मार्ग से विचलित नहीं होता, वही पंडित कहलाता है।

जिसकी कार्य-तथा विचार-विमर्श की भनक किसी दूसरे को नहीं  होती, वरन कार्य पूरा हो जाने पर ही लोगों को उसकी कार्य योजना का पता लगता है, वही पंडित है।

जिस व्यक्ति के कार्य में सर्दी, गर्मी, भय, मैथुन, अमीरी-गरीबी आदि बातें कोई बाधा नहीं पहुंचा सकतीं, अर्थात इनके कारण वह व्यक्ति अपना काम नहीं रोकता, वही पंडित कहलाता है।

जो व्यक्ति सांसारिक होते हुए भी धर्म और अर्थ का पालन करता है तथा काम और अर्थ में से अर्थ को ही चुनता है, पंडित कहलाता है।

जो व्यक्ति अपनी शक्ति के अनुसार काम करना चाहता है और शक्ति के अनुसार ही काम करता है तथा किसी का भी अपमान नहीं करता, वही पंडित है।

जो बात को जल्दी समझ जाता है फिर भी ध्यान से देर तक बात सुनता है।  बात सुनकर उस पर आचरण करता है।  जब तक उससे कोई न पूछे तब तक वह दूसरे के विषय में व्यर्थ कुछ बात नहीं बोलता।  वही पंडित है।

जो व्यक्ति अप्राप्य वस्तु के लिए बेचैन नहीं होता, नष्ट हुई वस्तु के लिए शोक नहीं करता तथा विपत्ति में भी घबराता नहीं, वही पंडित है।

जो सोच विचार कर निश्चय के बाद काम करता है और आरम्भ करने के बाद काम को अधूरा नहीं छोड़ता, समय व्यर्थ नहीं बिताता , जिसने अपनी इन्द्रियों को वश में कर लिया है, वहीँ पंडित कहलाता है।

हे भारत श्रेष्ठ! जो व्यक्ति अच्छे और शिष्ट जनों के योग्य और भलाई के काम करने में लगे रहते हैं, अपनी भलाई अथवा हित करने वाले की निंदा नहीं करते, वे ही पंडित कहलाते हैं।

जो सम्मान मिलने पर बहुत खुश नहीं होता तथा अपमान होने पर दुखी नहीं होता, वरन गंगाजल के कुंड ले समान सुख-दुःख और मान-अपमान में समान रहता है। वही पंडित है।

जो व्यक्ति प्राणियों के तत्व के बारे में जानकारी रखता है, सभी कामों के करने के ढंग को जानता है , सभी मनुष्यों की परेशानियों को दूर करने के मार्ग जानता है, सभी प्राणियों को समझता है, वही पंडित है।

जो व्यक्ति विषय को अच्छी तरह समझ लेता हो, उसके सम्बन्ध में धाराप्रवाह बोलता हो, अपनी बात को अच्छी तरह समझा पाता हो, विद्वान् और तर्कशील तथा प्रतिभाशाली हो वही पंडित है।

जिसका शास्त्र (विषय) बुद्धि के अनुकूल हो अर्थात तर्कसंगत हो तथा उसका ज्ञान व प्रवृत्तियाँ शास्त्र के अनुसार हों, अर्थात वह शास्त्र के अनुकूल काम करता हो, जो कभी ग़लत रास्ते पर न जाता हो, अर्थात मर्यादा में रहता हो, वही पंडित कहलाता है।



आपका
ब्रह्मचारी अनुभव शर्मा 

गुरुवार, 14 दिसंबर 2017

ब्राह्मणों की उत्पति


प्रश्न : नमस्कार भ्राता श्री, एक सज्जन ब्राह्मणों की उत्पति और प्रथम पूर्वज के विषय में जानना चाहते हैं। उचित जानकारी इसी इनबॉक्स में भेंजे


उत्तर : आज से १,९७,२९,४९,११८ वर्ष पहले जिस समय संसार की उत्पत्ति हुई तो आज से १,९६,०८,५३,११८ वर्ष पहले परमात्मा ने एक साथ अनेक मानव व दानवों को जन्म दिलाया।  पहले मानव ऋषि थे अतः वर्ण व्यवस्था न थी। पश्चात दानव लोग मानवों से अधिक होने लगे तो तथा वे अहिंसक मानवों को हिंसा के द्वारा बहुत परेशान करने लगे तो राक्षसों से रक्षा के लिए राष्ट्र का निर्माण किया गया और इस कार्य को महर्षि मनु महाराज ने किया और वर्ण व्यवस्था की गई, राष्ट्र की रक्षा हेतु। अतः मनु महाराज ही ब्राह्मण व्यवस्था के जनक माने जाते हैं। आर्यावर्त राष्ट्र का पुनर्निर्माण किया गया व प्रथम अनेक ऋषि मुनि ब्राह्मण रूप में राष्ट्र में सम्मिलित किए गए। वर्ण व्यवस्था के आधार पर वेदानुकूल मनु जी ने वर्ण निर्धारित करने की परिपाटी नियुक्त की और वर्ण निर्धारित करने का कार्य, गुरुकुल चला रहे गुरुजनों को सौंपा। अयोध्या नगरी का निर्माण महात्मा मनु जी ने वेदानुकूल किया - अष्ट चक्र नव द्वारा पुर अयोध्या।  आठ चक्र व नौ द्वार शरीर रूपी मंदिर में भी होते हैं। 

(आठ चक्र : मूलाधार चक्र, नाभि चक्र, ह्रदय चक्र, कंठ चक्र, नासिका चक्र, आज्ञा चक्र, सहस्रार चक्र, पुष्प चक्र )
(नव द्वार : दो आँख, दो कान , दो नासिकारंध्र, मुख, पाणी , पायु)

जिस प्रकार से शरीर में व्यवस्था होती है उसी प्रकार की व्यवस्था अयोध्या पूरी में भी की गयी। 

ब्राह्मणो मुखमासीद बाहु राजन्यकृतः उरु तदस्य तद् वैश्य पद्भ्यां शूद्रोSजायत। 

जिस प्रकार शरीर में मुख का स्थान होता है उसी प्रकार समाज में ब्राह्मणों के कर्म निर्धारित किये - यज्ञ करना, कराना, वेद पढ़ना, पढ़ाना, दान लेना व देना।  जिस प्रकार शरीर में हाथ रक्षा के हेतु होते हैं, उसी प्रकार  कार्य समाज में सौंपा - वेद पढ़ना, रक्षा करना, दान लेना दान देना, यज्ञ करना।  जिस प्रकार उदर का स्थान होता है उसी प्रकार वैश्यों को समाज में कार्य सौंपा - व्यापार करना, दान देना, खेती करना, पशुपालन, वेद पढ़ना। जिस प्रकार पैरों का स्थान शरीर में होता है उसी प्रकार शूदों को कार्य सौंपा - इन सभी कार्यों में इन की सेवा भाव से आज्ञा पालन अर्थात सेवा करना।  

आजकल तो सभी सेवक ही बन गए हैं और अपने अपने बॉसेस की सेवा मात्र कर रहे हैं।  परन्तु अध्यापक ब्राह्मण कर्म अपनाये हैं, फौजी व पुलिस क्षत्रिय कर्म, व्यापारी वैश्य कर्म व सरकारी पियोन शूद्र कर्म।  ये चार भाग आज भी हैं।  इन से मुक्त समाज नहीं।  परन्तु धार्मिक होना आवश्यक है। 


आपका अपना 
ब्रह्मचारी अनुभव शर्मा 

रविवार, 3 दिसंबर 2017

गायत्री मंत्र

🌺
🌼🌼🌼🌼🌼 

🙏 गायत्री मंत्र 🙏 
🔥🔥🔥🔥🔥 



यजुर्वेद ३६।३॥

🌸🌸🌸🌸🌸 




भावार्थ:
जो मनुष्य कर्म उपासना और ज्ञान सम्बन्धिनी विद्याओं का सम्यक् ग्रहण कर सम्पूर्ण ऐश्वर्य से युक्त परमात्मा के साथ अपने आत्मा को युक्त करते हैं तथा अधर्म अनैश्वर्य और दुख रूप मलों को छुड़ा के धर्म ऐश्वर्य और सुखों को प्राप्त होते हैं उन को अन्तर्यामी जगदीश्वर आप ही धर्म के अनुष्ठान और अधर्म का त्याग कराने को सदैव चाहता है।



🌺🌺🌺🌺🌺 
😊
🙏🙏🙏🙏🙏 




ब्रह्मचारी अनुभव शर्मा
free counters

फ़ॉलोअर