सोमवार, 2 जनवरी 2017

महाभारत के बाद का आर्यावर्त भाग १

ॐ 
जय गुरुदेव

महाभारत काल के बाद का आर्यावर्त: भाग - १




जातिवाद का प्रारंभ:

जब महाभारत काल के पश्चात्  राजा परीक्षित के पुत्र जनमेजय राजा हुए और  उन्होंने एक सर्वस्व यज्ञ किया  तो जितनी उनके द्वारा सम्पत्ति थी सब यज्ञ में अर्पण कर दी। जब महाराजा जनमेजय ने यह निश्चय किया कि जितनी मेरी सम्पत्ति है वह सब यज्ञ में अर्पण हो तो वहाँ कुछ ऐसा पाया गया कि उस कार्य में आदि ब्राह्मणों को निमंत्रण न देकर यजन किया गया। महर्षि जैमिनी मुनि उस यज्ञ के ब्रह्मा बने और ब्रह्मा बन उस यज्ञ को पूर्ण कराया। महाराजा जनमेजय यजमानी सहित विराजमान थे। तभी कुछ ऐसा कार्य हुआ कि आचार्य जी ने भविष्य की वार्ता उच्चारण करते हुए कहा कि आपका यज्ञ सफल नहीं होगा। वहाँ जब एक ब्राह्मण ने मग्नता मनाई तो महाराजा जनमेजय के ह्रदय में यह भावना प्रकट हुई कि यह ब्राह्मण तेरी मग्नता मना रहा है तो जनमेजय ने उस ब्राह्मण के कंठ से ऊपर के भाग को अपने वज्र से अलग कर दिया।  जब उसने यज्ञशाला में यह कर्म कर दिया तो यज्ञ भ्रष्ट हो गया। जब यज्ञ भ्रष्ट हो गया तो वहाँ ब्राह्मणों ने यज्ञ का त्याग किया और कहा कि हम कदापि भी द्रव्य न लेंगे दान के पात्र नहीं बनेंगे। जब महाराजा जनमेजय ने यह वार्ता सुनी तो उन्हें ज्ञान हुआ कि तेरे गुरु ने तुझे संकेत किया था परन्तु तब भी तूने ब्राह्मण के शीश को समाप्त कर दिया अब तुझे क्या करना चाहिए? इस प्रकार ऐसा हुआ है कि ब्राह्मणों को द्रव्य न देकरके भूमि का दान दे करके वहाँ से पृथक कर दिया। वहाँ से ही जाति का प्रारंभ हो गया उसके पूर्व वर्ण व्यवस्था थी। जो ब्राह्मण कर्म करने वाले थे वह ब्राह्मण बने रहे और इसके पश्चात् जिन्होंने त्याग दिया उन्हें त्यागी रूपों से पुकारने लगे। अब यहाँ से जातिवाद का भेद बन गया।

इसके पश्चात् आगे काल चलता रहा। जब अज्ञानता आई तो ब्राह्मणों ने विद्या की सूक्ष्मता कर दी। सूक्ष्मता के कारण क्षत्रियों में जो वास्तविक शिक्षा थी वह समाप्त होने लगी वेद की विद्या लुप्त होने लगी। आगे काल आया कितने सन्यासी बने परन्तु कोई यथार्थ सन्यासी बना तो उसकी यथार्थ विद्या को न मानना और अपने स्वार्थ के वशीभूत हो मनमानी वार्ता चलने लगी। अब यहाँ नाना प्रकार का जातिवाद चलने लगा और एक दूसरे से घृणा होने लगी। मनु महाराज ने जो भी आदेश दिया उन पर न चलना। राजाओं में नाना प्रकार की त्रुटियां आ गईं। नाना देवियाँ उनके स्थान में रहा करतीं। यहाँ देवियों की विद्या और उनकी प्रतिभा थी वह समाप्त होने लगी। उसके पश्चात् यहाँ धर्म के विषय पर सम्प्रदाय चल गए। जिससे घृणा की उसी का सम्प्रदाय पृथक बन गया।

वाममार्गी सम्प्रदायः

जब यहाँ सम्प्रदाय बनने लगे तो यहाँ एक वाममार्गी सम्प्रदाय चला। इनका दुराचार जो साफ़ देखा गया था, उस दुराचार को यहाँ वर्णन नहीं करेंगे परन्तु वेद की विद्या उन्होंने नष्ट कर दी। वेदों का कुछ भाष्य किया परन्तु वह भाष्य भी अनुचित कर दिया, जिससे संसार में नास्तिकता दौड़ने लगी। कुछ व्यक्तियों ने तो ऐसा कहा है कि यह परमात्मा कोई पदार्थ नहीं और न परमात्मा की यह वेद विद्या है। यह तो धूर्त विद्या हैं, हम इस वेद की विद्या को कदापि स्वीकार नहीं करेंगे। तो जब वाममार्गियों ने ऐसा किया तो वेद की विद्या यहाँ से लुप्त होने लगी। यह सम्प्रदाय बड़ा दुराचारी था। दुराचारी सम्प्रदाय होने के कारण राष्ट्र में अज्ञानता आने लगी।

उस काल में क्या होता था? इन वाममार्गियों ने ऐसा किया कि जब अजामेध यज्ञ करते तो बकरी के अंगों की उसमें आहुति देते। अजा कहते हैं बकरी को, जैसा पूर्व कहा है- अजामेध यज्ञ को जब इन्होंने समझा नहीं तो क्या किया कि यज्ञ में अजा को लेकर वेद मंत्र का पाठ करते हुए 'चक्षुस्ते-शुन्धामि', जिस अंग का नाम आये उस अंग की आहुति देने लगे और उसे अजामेध यज्ञ वर्णन करने लगे। जब गौ मेध यज्ञ का वर्णन आता तो वहाँ गौ माता की आहुति देकर यज्ञशाला में अर्पण करने लगे। वह यहाँ ऐसा अधोगति का काल आया। जिसमें दार्शनिक समाज और वैज्ञानिक समाज सब तुच्छ होने लगे। वेद की विद्या लुप्त होने से संसार अधोगति को चला गया। गौ मेध यज्ञ को समझा नहीं कि गौ कहते हैं पृथ्वी को और पृथ्वी की विद्या को जानना ही गौ मेध यज्ञ है, उन्होंने इसको समझा नहीं। उन्होंने केवल यहीं समझा कि गौ मांस की आहुति दो तब ही तुम्हारा यज्ञ सफल होगा।

अज्ञानता आ जाने के कारण आगे चलकर अश्वमेध यज्ञ भी विकृत होने लगे।उन्होंने अश्वमेध का अभिप्राय जो वेद में वर्णन किया है कि जब राजा अश्वमेध यज्ञ करता था तो वह घोड़ा छोड़ता था और जो उस घोड़े को रोक लेता था राजा उसके साथ युद्ध करता था। उसके विजय होने के पश्चात् उसे अश्वमेध यज्ञ करने का अधिकार था उन्होंने इस कर्मकाण्ड को त्याग दिया और भगवन्! हमने उन वाममार्गियों को देखा जिन्होंने देखो, "प्राह गणे ते अचते!" देखो, "इनके लिङ्गम यज्ञते महान यज्ञ मानस्य"। वहाँ दुराचार, भ्रष्टाचार होने लगे समाज में नास्तिकता आने लगी, परमात्मा को शान्त कर दिया और कहा कि परमात्मा कोई पदार्थ नहीं।

महाभारत के पश्चात् के काल में वाजपेयी यागों में पशुओं की बलियों का वर्णन किया गया। एक कान्तकेतु वाममार्गी था, उन्होंने एक समय यह वाजपेयी याग किया और उसमें गऊ की बलि प्रदान की गयी परन्तु उसका परिणाम यह हुआ कि समाज में नास्तिकवाद आ गया, वेदों के प्रति, मन्त्रें के प्रति, आस्था न रही। इसलिए वैदिक साहित्य लुप्त हो गया।



(क्रमशः)


अगली कड़ी में - पांडव वंश के शासक एवं महात्मा महावीर


आपका  
ब्रह्मचारी अनुभव शर्मा

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