रविवार, 15 जनवरी 2017

महाभारत काल के बाद का आर्यावर्त भाग - 8

ओ3म्
जय गुरूदेव

महाभारत काल के बाद का आर्यावर्त भाग - 8

\महर्षि दयानन्द भाग-2

भाइयों बहनों! आधुनिक काल मंे तो उन्हें महर्षि नाम की उपाधि प्राप्त हो गयी है क्योंकि आधुनिक काल में ऐसा महान् व्यक्ति जब आ जाता है तो संसार को कुछ देकर चला जाता है। आचार्य दयानन्द के सिद्धांत में एक बड़ी ऊँची वार्ता है , जिसको हर व्यक्ति को मानना चाहिए। देखो, इस वेद की विद्या में कुछ लुप्तता हो गयी है। इसकी कुछ संहिताएँ नहीं मिली हैं, जिनका अभी तक प्रसार नहीं हुआ है। कुछ ऐसा तो माना है कि आचार्य दयानन्द ने चारों वेदों की संहिताओं को तो नियुक्त कर दिया है परंतु जब पूर्ण संहिताएं न मिलीं तो बिचारे कहाँ से लाते? उनका तो जितनाा ज्ञान था, उसका प्रसार कर गये। जैसे गुरुजी के द्वारा ज्ञान का समुद्र है, ऐसे ही उनकी विद्या भी समुद्र थी क्योंकि वे पूर्व काल के अटूटी नाम के ऋषि थे, उन्हीं की आत्मा ने आ करके इस संसार का कल्याण करने के लिए जन्म लिया।

भाइयों बहनों! कलियुग का तो काल था ही। ईसा को मानने वाले व्यक्ति, जिनका यहाँ राज्य था, उनसे और यवनों इत्यादियों से उन्होंने शास्त्रार्थ किया। उनकी विद्या अब तक चल रही है परंतु उनके अनुयायी उनके वाक्यों को ठीक से न समझ कर उनको अन्धकार में मिला रहे हैं। तो यह है आज संसार का वर्णन जिसमें अंधकार छाता चला जा रहा है।

जब पश्चिम से प्राणी यहाँ आकर राज्य करने लगे तो इसी मध्य में एक आचार्य दयानंद नाम के महात्मा आ गये। महात्मा दयानंद ने एक ही वाक्य कहा कि आदि ब्रह्मा से लेकर के जैमिनी पर्यन्त जो भी तुम्हारी संस्कृति है, परंपरा है जो तुम्हारे सिद्धांत कहलाते हैं, यदि उसी पर तुम आ जाओगे तो तुम्हारे राष्ट्र में शान्ति उत्पन्न होगी, तुम महान् सम्राज्यवादी बनोगे अन्यथा तुम्हारा जीवन यों ही नष्ट भ्रष्ट होता रहेगा। महात्मा दयानंद ने अपने जीवन में कितना प्रयत्न किया परंतु धर्म के ठेकेदारों ने उनको विष दे करके नष्ट करने का प्रयत्न किया, परंतु वह तो विभूति थी, परम आत्मा थी, महान आत्मा थी उसको संसार का लेपन नहीं आया, द्रव्य का लेपन नहीं आया। जिस प्रकार भगवान कृष्ण के जीवन में द्रव्य का लेपन नहीं आया। उसी प्रकार महात्मा दयानंद के जीवन में किसी प्रकार की कुरीतियों का लेपन नहीं आया, अच्छाइयों की परंपरा बनी रही। क्योंकि ऋषित्व और पाण्डित्य उनके जीवन का स्वतः अधिकार रहा है। जिनका ऋषित्व और पाण्डित्व जन्मसिद्ध अधिकार होता है वही यहाँ संसार में कुछ उत्थान कर सकते हैं। महात्मा दयानंद की आत्मा में पांडित्य से गुथे हुए उद्गम विचार कई जन्मों से चले आ रहे थे। यहाँ आ करके उन्होंने यवनों को दीर्घ वाणी से उच्चारण किया और जो यहाँ पश्चिम के राष्ट्र नेता थे उनको दीर्घ वाणी से कहा, अपने राष्ट्र में रहने वाले प्राणियों से कहा कि कहाँ जा रहे हो? आज तुम अपना समाज बनाओ, ब्राह्मणवाद चल रहा है, इस जातिवाद को नष्ट कर दो। यह जातिवाद की परंपरा है यह महाभारत के पश्चात् की है, इसे नष्ट करो। उनके द्वारा यौगिकता हाने के नाते जैसे सूर्य प्रकाशवान रहता है ऐसे ही उनका जीवन मानव के हृदयों में प्रदीप्त रहता आया है और रहता रहेगा। हम उनका जितना आदर करते चले आये हैं, वह हमारा हृदय जानता है। उनका महान् आत्मा कितना सुंदर, कितना पवित्र कितना मानवता से ऋषित्व से, पांडित्व से गुथा था, उन्होंने आदि ब्रह्मा से जैमिनी मुनि तक के सिद्धांतों को प्रकट किया। उनके हृदयों में उन सिद्धांतों की कुंजी थी। उनका हृदय पुकार कर कहता था कि वेद को अपनाऔ, समाज ने उनको अपनाने का प्रयास किया, क्रान्ति भी आई, उनके कारनामों का महान् परिणाम भी हुआ किन्तु आधुनिक काल में उनके मानने वाले तर्कवाद पर आने के लिए तत्पर हो गये, जहाँ विचार विनिमय करना था वहाँ तर्कवाद आ गया। जहाँ जातिवाद को नष्ट करना था वहाँ स्वयं भी जातिवाद में पारंगत हो गये हैं।



शेष भाग अगली कड़ी में

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आपका अपना
ब्रह्मचारी अनुभव शर्मा

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