महाभारत के बाद का आर्यावर्त: भाग - ५
आगे चल करके मुहम्मद नाम के एक यवन हुए। वास्तव में देखा जाए तो वह यवन ही थे, जैसा कि वेद की विद्या में कहा है। एक छोटे से घर में जन्म ले करके एक राजा बनने की अपेक्षा की और राजा बने। अबुबक्र उनके एक मित्र थे परंतु उनके अन्तुत बनाया और मन्त्रियों में अपने नाना शिष्य बनाये, शिष्य बना करके संग्राम किया और अन्त में राष्ट्र पर उनका अधिकार हो गया। अज्ञानी काल था, विद्या थी नहीं, भाइयों बहनों! जब वह राजा बने तो उन्होंने आसवाती नाम के वृक्ष में एक पुस्तक बना करके अर्पण की और उसके पश्चात् राष्ट्र के महान चुने हुए व्यक्तियों का समाज एकत्रित किया और कहा कि भाई! मुझे परमात्मा के दर्शन हुए हैं और परमात्मा ने मुझे एक पुस्तकालय दिया है जिसको मैं महान बनाना चाहता हूँ आज मेरे इस वाक्य को स्वीकार करो। उन्होंने इस वृक्ष का वर्णन किया। उन व्यक्तियों ने उस वृक्ष को समाप्त कराया तो उन्होंने देखा कि उसमें वह पुस्तक वैसे ही थी। उन्हें विश्वास हो गया। भाइयों बहनों! पाहि पनः वाचे, उनकी विचारधारा जो पुस्तक में थी, वह प्रजा के समक्ष आ गई। उन्होंने सोचा कि भाई! यह तो बड़ा सुन्दर है और उन्होंने मुहम्मद की वार्ता को स्वीकार कर लिया। इस प्रकार देखो, यवन मत बन गया।
उन्होंने द्वितीय राष्ट्रों पर आक्रमण करना प्रारंभ कर दिया। कितना बड़ा संसार में अन्धकार आया। एक माह के संग्राम के पश्चात् मुहम्मद ने यूनान पर विजय प्राप्त की। उस संग्राम में वे दिवस में युद्ध करते और सांयकाल युद्ध करने वालों से कहा करते कि अरे भाई! तुम रात्रि को भोजन किया करो और दिवस में युद्ध किया करो। वह दो समय रात्रि को भोजन किया करते थे। उन्होंने उका एक सम्प्रदाय बना लिया। बड़ा अच्छा वाक्य है, क्या उच्चारण करें उसे वह रोजे कहा करते थे। युद्ध का काल था वह रोजे प्रारंभ हो गये। कैसा काल आ गया। आपको तो बड़ा कष्ट हो रहा होगा क्योंकि आपने तो दार्शनिक समाज को देखा है जिस दार्शनिक समाज में मानव का बहुत बड़ा विकास होता है।
जिन्हें महात्मा मुहम्मद कहा जाता है, उनका जीवन राष्ट्रीयता में रहा। यहूदियों को नष्ट करने के लिए जिस राष्ट्र में मुख्य कार्य होते थे वहाँ, मुहम्मद का जन्म हुआ। वहाँ मानव प्रीति से दूर रहता था और नाना घृणित कार्य करता था। जहाँ मानव में दूसरे को अपने अधीन बनाने की प्रवृत्तियाँ आ जाती हैं वहाँ, कोई न कोई सुन्दर पुरुष आ ही जाता है। किन्तु महात्मा मुहम्मद राष्ट्र को अपनाने के पश्चात् स्वयं पाखंडता में परिणत हो गये। उन्होंने पाखंड का प्रसार करना आरंभ किया। उन्होंने एक पुस्तक को बनाया और किसी वृक्ष के आंगन में स्थिर कर दिया और राष्ट्र के पुरुषों को किसी भी प्रकार भी वशीभूत करके उस पुस्तक का प्रभुत्व उनके उपर आ पहुँचा। राष्ट्र में आने के पश्चात् मानव का साधारण प्रजा पर प्रभुत्व आ ही जाता है। मैं (एक जीवन मुक्त आत्मा, महानन्द मुनि जी- ये आत्माएँ स्वभाव से ही पूर्ण सत्यवादी हुआ करती हैं) महात्मा मुहम्मद को महात्मा की दृष्टि से दृष्टिपात नहीं करता हूँ। मैं यह कहा करता हँू कि मुहम्मद ऐसा पुरुष था जो राष्ट्र कुछ सुधारक था परंतु जहाँ चरित्र और मानवता का प्रश्न है, महात्मा का प्रश्न है, वह मेरी दृष्टि से उसमें सुंदर प्रतीत नहीं होता। मैं प्रायः परम्परा से यथार्थ वक्ता रहा हूँं। मुहम्मद ने तरह संस्कार किये। तेरह पत्नियां उनकी रही। एक स्त्री नष्ट होती रही तो दूसरी आती रही। उन्होंने देखो! कुरिस परिवार से अपने दूर के पुत्र की स्त्री को भी अपने गृह को चलाने के लिए अपनाया, पत्नी होने के पश्चात् भी उससे संस्कार कर लिया। मैं इस दृष्टि से उन्हें स्वीकार नहीं करता हूँ, आगे इन्हीं के मानने वालों ने क्या क्या कुरीतियों का आक्रमण किया? जिससे संस्कृति का विनाश हो गया।
उन्होंने द्वितीय राष्ट्रों पर आक्रमण करना प्रारंभ कर दिया। कितना बड़ा संसार में अन्धकार आया। एक माह के संग्राम के पश्चात् मुहम्मद ने यूनान पर विजय प्राप्त की। उस संग्राम में वे दिवस में युद्ध करते और सांयकाल युद्ध करने वालों से कहा करते कि अरे भाई! तुम रात्रि को भोजन किया करो और दिवस में युद्ध किया करो। वह दो समय रात्रि को भोजन किया करते थे। उन्होंने उका एक सम्प्रदाय बना लिया। बड़ा अच्छा वाक्य है, क्या उच्चारण करें उसे वह रोजे कहा करते थे। युद्ध का काल था वह रोजे प्रारंभ हो गये। कैसा काल आ गया। आपको तो बड़ा कष्ट हो रहा होगा क्योंकि आपने तो दार्शनिक समाज को देखा है जिस दार्शनिक समाज में मानव का बहुत बड़ा विकास होता है।
जिन्हें महात्मा मुहम्मद कहा जाता है, उनका जीवन राष्ट्रीयता में रहा। यहूदियों को नष्ट करने के लिए जिस राष्ट्र में मुख्य कार्य होते थे वहाँ, मुहम्मद का जन्म हुआ। वहाँ मानव प्रीति से दूर रहता था और नाना घृणित कार्य करता था। जहाँ मानव में दूसरे को अपने अधीन बनाने की प्रवृत्तियाँ आ जाती हैं वहाँ, कोई न कोई सुन्दर पुरुष आ ही जाता है। किन्तु महात्मा मुहम्मद राष्ट्र को अपनाने के पश्चात् स्वयं पाखंडता में परिणत हो गये। उन्होंने पाखंड का प्रसार करना आरंभ किया। उन्होंने एक पुस्तक को बनाया और किसी वृक्ष के आंगन में स्थिर कर दिया और राष्ट्र के पुरुषों को किसी भी प्रकार भी वशीभूत करके उस पुस्तक का प्रभुत्व उनके उपर आ पहुँचा। राष्ट्र में आने के पश्चात् मानव का साधारण प्रजा पर प्रभुत्व आ ही जाता है। मैं (एक जीवन मुक्त आत्मा, महानन्द मुनि जी- ये आत्माएँ स्वभाव से ही पूर्ण सत्यवादी हुआ करती हैं) महात्मा मुहम्मद को महात्मा की दृष्टि से दृष्टिपात नहीं करता हूँ। मैं यह कहा करता हँू कि मुहम्मद ऐसा पुरुष था जो राष्ट्र कुछ सुधारक था परंतु जहाँ चरित्र और मानवता का प्रश्न है, महात्मा का प्रश्न है, वह मेरी दृष्टि से उसमें सुंदर प्रतीत नहीं होता। मैं प्रायः परम्परा से यथार्थ वक्ता रहा हूँं। मुहम्मद ने तरह संस्कार किये। तेरह पत्नियां उनकी रही। एक स्त्री नष्ट होती रही तो दूसरी आती रही। उन्होंने देखो! कुरिस परिवार से अपने दूर के पुत्र की स्त्री को भी अपने गृह को चलाने के लिए अपनाया, पत्नी होने के पश्चात् भी उससे संस्कार कर लिया। मैं इस दृष्टि से उन्हें स्वीकार नहीं करता हूँ, आगे इन्हीं के मानने वालों ने क्या क्या कुरीतियों का आक्रमण किया? जिससे संस्कृति का विनाश हो गया।
शेष भाग अगले अंक में
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें