शत्रु से बचने के लिये एवम् विपत्ति को टालने के लिये मन्त्र (वेद से)
ओ३म् पाहि नो अग्ने रक्षसः पाहि धूर्तेरराव्णः ।
पाहि रीषत उत वा जिघांसतो बृहद्भानो यविष्ठ्य।। 1 ।36 ।15 । । वेद ।ज्ञान काण्ड ।
(गुरुकुल बरनावा लाक्षागृह, बागपत, के ब्रह्मचारी अंकुर भारद्धाज जी से साभार )
आपका
ओ३म् पाहि नो अग्ने रक्षसः पाहि धूर्तेरराव्णः ।
पाहि रीषत उत वा जिघांसतो बृहद्भानो यविष्ठ्य।। 1 ।36 ।15 । । वेद ।ज्ञान काण्ड ।
सब
मनुष्यों को चाहिए कि सब प्रकार रक्षा के लिए सर्व रक्षक धार्मोन्नति की
इच्छा की सर्वदा प्रार्थना करें और अपनेआप भी दुष्ट स्वभाव वाले मनुष्य आदि
प्राणियों और सब पापों से मन वाणी और शरीर से दूर रहें क्योंकि इस प्रकार
रहने के बिना कोई मनुष्य सर्वदा सुखी नहीं रह सकता।
ओ३म् अग्निर्वृत्राणि जङ्घनद्द्रविणस्युर्विपन्यया। समिद्धः शुक्र आहुतः।। 6 ।16 ।34 । । वेद ।ज्ञान काण्ड ।
सत्प्रयासों
से प्रसन्न होकर याजकों को प्रसन्नता प्रदान करने वाले हे प्रदीप्त अग्नि
देव! हमें बंधन में रखने वाली दुष्ट वृत्तियों का विनाश कीजिये ।
(गुरुकुल बरनावा लाक्षागृह, बागपत, के ब्रह्मचारी अंकुर भारद्धाज जी से साभार )
आपका
ब्रह्मचारी अनुभव शर्मा
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