मंगलवार, 26 अगस्त 2014

सगुण व निर्गुण उपासना

उपासना दो प्रकार की होती है - एक सगुण व दूसरी निर्गुण। उनमें से शुक्र अर्थात जगत का रचने वाला, वीर्यवान तथा शुद्ध, कवि, मनीषी, परिभू और स्वयंभू इत्यादि गुणों के सहित होने से परमेश्वर सगुन है और अकाय, अव्रण, अस्नाविर इत्यादि गुणों के निषेध होने से वह निर्गुण कहाता है।

तथा एक देव इत्यादि गुणों के सहित होने से परमेश्वर सगुन और निर्गुणश्च कहने से निर्गुण समझा जाता है।

तथा ईश्वर के सर्वज्ञ, सर्वशक्तिमान, शुद्ध, सनातन, न्यायकारी, दयालु, सब में व्यापक, सब का आधार, मंगलमय, सब की उत्पत्ति करनेवाला और सब का स्वामी इत्यादि सत्यगुणों के ज्ञानपूर्वक उपासना करने को सगुणोपासना कहते हैं।  और वह परमेश्वर कभी जन्म नहीं लेता, निराकार अर्थात आकारवाले कभी नहीं होता, अकाय अर्थात शरीर कभी नहीं धारता, अव्रण अर्थात जिसमें छिद्र कभी नहीं होता, जो शब्द, स्पर्श, रूप, रस और गन्धवाला कभी नहीं होता, जिसमें दो, तीन आदि संख्याओं की गणना कभी नहीं बन सकती, जो लम्बा, चोडा, हल्का, भारी आदि कभी नहीं होता, इत्यादि गुणों के निवारणपूर्वक उसका स्मरण करने को  निर्गुण उपासना कहते हैं। 



ऋग्वेदादि भाष्य भूमिका 
(उपासना विषय १४ )

मंगलवार, 12 अगस्त 2014

अध्यात्म द्वारा वार्तालाप

जैसा कि मैं पहले भी कह चुका हूँ कि अध्यात्म पांच कर्मेन्द्रियों, पांच ज्ञानेन्द्रियों, मन, बुद्धि , चित्त, अहंकार, आत्मा और परमात्मा का विज्ञान है।

यदि हम भौतिक विज्ञान में ५० वर्ष अभ्यास करें तो जो हम उपलब्धिप्राप्त करते हैं वह उपलब्धि अध्यात्म में सिर्फ २ वर्ष में ही हो जाती है।  इसलिए अध्यात्म विज्ञान भौतिक विज्ञान से श्रेष्ठ व बड़ा है। 

एक तथ्य मेरे मन में है जो मैं बिलकुल अभी आपके सामने खोल रहा हूँ। 

माना अध्यात्म के द्वारा हम अपने प्रिय से वार्तालाप करना चाहते हैं तो हमें वायुदेव से इस प्रकार प्रार्थना करनी चाहिए , " ओ वायुदेव! मेरी मेरे प्रिया से वार्तालाप करने में सहायता करो।  जो मैं उसको कहूँ   वह बात वहां तक पहुंचा दो और उसका उत्तर मुझे सुना दो  या मैं सुन पाऊँ।"  वार्तालाप पूर्ण कराने के लिए हमें नम्रता पूर्वक उससे प्रार्थना करनी चाहिए और हमें उसे नमस्कार करना चाहिए। 

तब हम स्पष्ट रूप से देखते हैं कि हमारा अबाधित व स्पष्ट वार्तालाप हो जाता है।  यह वार्तालाप मध्यमा वाणी में होता है। 

समझे? यह अध्यात्म का लाभ है।  हमें योग, उपनिषद, वेद व ऋषि प्रणीत पुस्तकों की सहायता से अध्यात्म में प्रवेश करना चाहिए। 

नोट : चार प्रकार की वाणी होती हैं - परा, पश्यन्ति, मध्यमा और बैखरी। बैखरी वाणी में ही सामान्यतया हम आपस में बातचीत करते हैं।

अगली पोस्ट में शीघ्र ही मिलते हैं।


इस पोस्ट को अंग्रेजी में पढ़ें



आपका 
भवानन्द आर्य 'अनुभव'

शुक्रवार, 8 अगस्त 2014

निष्काम कर्म

निष्काम कर्म 
 
महाराजा कृष्ण ने अर्जुन से कहा था "हे अर्जुन! तू आज मुझे प्राप्त हो।  जो भी कार्य करना है वह निष्काम कर। " इसकी व्याख्या यह है कि जिज्ञासु जब गुरु के पास जाता है तो गुरु कहता है कि हे बालक! यदि तुझे जिज्ञासु बनना है तो जो तेरे पास है वह मुझे दे।  मेरे समीप होकर और अर्पण कार्य कर।  इस प्रकार गुरु-शिष्य के सम्बन्ध के नाते कृष्ण ने यहीं कहा था कि तुझे महान कार्य करना है, महान बनना है तो अपने जीवन की सभी शाकल्य योजनाएं और संकल्प विकल्प मेरे अर्पण कर और निष्काम कार्य कर।  आज जिनका तू मोह कर रहा है वे तो पूर्व ही नष्ट हो चुके हैं।  ये आज नहीं तो कल अवश्य ही नष्ट हो जायेंगे।  इन आदेशों को मान कर अर्जुन ने युद्ध किया। 

सर्वज्ञता 

भगवान कृष्ण ने बार बार कहा है कि "मैं सर्वज्ञ हूँ, सर्वशक्तिमान हूँ। " इसका अभिप्राय यह है कि जिन गुरुओं से उस विद्या को जाना है, जिससे आत्म तत्व को जाना जाता है वह गुरु कहा करता है कि मैंने सब कुछ जाना है।  परमात्मा ने मुझे वह शक्ति प्रदान की है कि तेरे पापों को अवश्य ही नष्ट कर दूंगा। 

कृष्ण ने अर्जुन से कहा था कि मैं सर्व प्रकृति को जानता हूँ । परन्तु मुझे तो वह कर्म करना है जिससे यह संसार ऊँचा बने।

(ब्र ० कृष्ण दत्त जी के प्रवचनों से)


आपका अपना 
अनुभव शर्मा 'भवानन्द'
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