रविवार, 25 मई 2014

विज्ञान का पंडित

एक समय राजा रावण अश्विनी कुमारों से औषधियों के सम्बन्ध में कुछ विचार विनिमय कर रहे थे।  वार्ता करते करते रावण का ह्रदय अशांत हो गया।  रावण ने कहा कि हे मंत्रियों! मैं भयंकर वन में किसी महापुरूष के दर्शन के लिए जा रहा हूँ। उन्होंने कहा कि प्रभु! जैसी आप की इच्छा, क्योंकि आप स्वतन्त्र हैं।  आप जाइये भ्रमण कीजिये।

राजा रावण मंत्रियों के परामर्श से भ्रमण करते हुए महर्षि शांडिल्य के आश्रम में प्रविष्ट हो गए।  ऋषि ने पूछा कि कहो, तुम्हारा राष्ट्र कुशल है।  रावण ने कहा कि प्रभो! आप की महिमा है। ऋषि ने कहा कि बहुत सुन्दर, हमने श्रवण किया है कि तुम्हारे राष्ट्र में नाना प्रकार की अनुसन्धान शालाएं हैं।  रावण ने कहा कि प्रभु! यह सब तो ईश्वर की अनुकम्पा है।  राष्ट्र को ऊँचा बनाना महान पुरुषों व बुद्धिमानो का कार्य होता है, मेरे द्वारा क्या है? वहां से भ्रमण करते हुए कुक्कुट मुनि के आश्रम में राजा रावण प्रविष्ट हो गये।  दोनों का आचार-विचार के ऊपर विचार-विनिमय होने लगा।  आत्मा के सम्बन्ध में नाना प्रकार की वार्ताएं प्रारम्भ हुईं तो रावण का ह्रदय और मतिष्क दोनों ही सांत्वना को प्राप्त हो गए।  राजा रावण ने निवेदन किया कि प्रभु! मेरी इच्छा है कि आप मेरी लंका का भ्रमण करें।  उन्होंने कहा कि हे रावण मुझे समय आज्ञा नहीं दे रहा है जो आज मैं तुम्हारी लंका का भ्रमण करूँ।  मुझे तो परमात्मा के चिंतन से ही समय नहीं होता।  राजा रावण ने नम्र निवेदन किया, चरणों को स्पर्श किया।  ऋषि का ह्रदय तो प्रायः उदार होता है।  उन्होंने कहा कि बहुत सुन्दर, मैं तुम्हारे यहाँ अवश्य भ्रमण करूँगा।  दोनों महापुरुषों ने वहां से प्रस्थान किया।

राजा रावण नाना प्रकार की शालाओं का दर्शन कराते हुए अंत में अपने पुत्र नारायंतक के द्वार पर जा पहुंचे जो नित्यप्रति चन्द्रमा की यात्रा करते थे और ऋषि से बोले कि भगवन! मेरे पुत्र नारायंतक चंद्रयान बनाते हैं।  महर्षि ने कहा कि कहो आप कितने समय में चन्द्रमा की यात्रा कर लेते हैं।  उन्होंने कहा कि भगवन! एक रात्रि और एक दिवस में मेरा यान चन्द्रमा तक चला जाता है और इतने ही समय में पृथ्वी पर वापस आ जाता है।  इसको चंद्रयान कहते हैं , कृतक यान भी कहा जाता है।  मेरे यहाँ भगवन ! ऐसा भी यंत्र है जो यान जब पृथ्वी की परिक्रमा करता है तो स्वतः ही उसका चित्रण आ जाता है।  मेरे यहाँ 'सोमभावकीव किरकिट' नाम के यंत्र हैं।

वहां से प्रस्थान करके राजा रावण चिकित्सालय में जा पहुंचे जहाँ अश्विनीकुमार जैसे वैद्यराज रहते थे।  ऐसे ऐसे वैद्यराज थे जो माता के गर्भ में जो जरायुज है और माता के रक्त न होने पर, बल न होने पर छः -छः माह तक जरायुज को स्थिर कर देते थे।  किरकिटाअनाद, सेलखंडा, प्राणनी  व अमेतकेतु आदि नाना औषधिओं का पात बनाया जाता था।  तो ऐसी चिकित्सा रावण के राष्ट्र में होती थी।


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आपका
भवानन्द आर्य 'अनुभव'
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