शनिवार, 28 जनवरी 2017

महाभारत काल के बाद का आर्यावर्त भाग - 10

ओ3म्
जय गुरूदेव
महाभारत काल के बाद का आर्यावर्त भाग - 10


साहित्य और चरित्र को शुद्ध बनाओ

हे ब्राह्मणों! आओ तुम पुनः से अपने पात्रों को शुद्ध बना लो। यदि आधुनिक काल का ब्राह्मण पात्रों को शुद्ध बना लेगा तो साहित्य जीवित रह सकेगा, अन्यथा समाज का, आर्यत्व का साहित्य पतित हो गया है तो उनके द्वार रह क्या गया है? महाभारत के काल में परीक्षित काल के पश्चात् यह अज्ञानता आई। जो वाममार्ग आया, इसमें धर्म और वैदिकता को नष्ट करने के लिए वह तत्पर रहे। यहाँ तक कि वेदों के भाष्यकारों में भी मांस भक्षण की त्रुटि आई। जहाँ वेद में कोई भी मंत्र, कोई भी शब्द उस प्रकार का नहीं है, जिसमें मांस भक्षण करने की वृत्ति मानव की बनाई जाये। आयुर्वेद का जहाँ प्रसंग है वह द्वितीय प्रसंग है। विचारना यह है कि उन कारणों को विचारे जिन परंपराओं में हमारे साहित्य के जो पात्र हैं उनको अशुद्ध किया गया। उन्हीं पात्रों को लेकर आधुनिक काल में तार्किक पुरुषों ने इन साहित्यों को नष्ट करके अपने आप में उपाधियुक्त बनते चले जा रहे है। क्योंकि जब साहित्य के पात्र अशुद्ध हो जाते हैं तो अज्ञानी पुरुष, तार्किक पुरुष बन जाते हैं, वे नास्तिकवाद में परिणत होते हुए पात्रों को भ्रष्ट रूप में दृष्टिपात करके अपनी उपाधियों को प्राप्त किया करते हैं। आज हमंे पुनः इनके शुद्ध रूप को लाने के लिए सदैव प्रयास करना है।

रामायण और महाभारत के पात्र

आधुनिक काल में जिस साहित्य को दृष्टिपात किया जाता है उनमें रामायण के पात्रों को भी बौद्ध काल और जैन काल में भ्रष्ट किया गया। मुहम्म के मानने वाले मुस्लिम काल में भी उनको ह्रासता में परिणत कराया गया उनके ऊपर नाना प्रकार की टिप्पणियाँ कीं। महात्मा बुद्ध और जैन समाज से पूर्व वाममार्ग समाज का एक वृत्त था और राष्ट्र में उनकी पताका थी। उन्होंने जो अट्ठारह पुराण कहलाए जाते हैं उनकी रचना कराई।  जो हमारा पुरातन साहित्य है, हमारी जो पुरातन ऋषि मुनियों की सूक्ष्म प्रणालियाँ हैं, राजाओं की परंपरा है वह त्याग कर वह वाममार्गियों ने मांस भक्षण करने की यागों में मांस की आहुति देने की परंपरा प्रारंभ की। जैसे गौमेध याग में गौ के मांस की आहुति देना। अजामेध याग में बकरी के मांस की आहुति देना और अश्वमेध याग मे घोड़े की आहुति देना, देव याग में मानव के मांस की आहुति देना, इस प्रकार की जो परंपरा चली जिसमें उन्होंने मांस भक्षण के लिए, अपनी रसना के आनंद के लिए धर्म और मानव को भ्रष्ट करने के लिए मिश्रण किया। आज जब मैं वाममार्ग के क्षेत्र में जाता हूँ तो मुझे भ्रांति उत्पन्न होने लगती है। परंतु द्रव्य की लोलुपता के कारण वे रूढ़िवाद में परिणत हो गये। उन्होंने राम के साहित्य को नष्ट किया तथा महाभारत के पात्रों को भी विकृत किया। महाभारत के काल में द्रौपदी, पितामह भीष्म, गांधारी, पांडव पुत्रों तथा धृतराष्ट्र के पुत्रों के संदर्भ में बड़ी विचित्र गाथाएँ चलित की गई हैं और उन पात्रों में अशुद्धियों का समावेश किया गया है। आज से लगभग चार हजार वर्ष पूर्व एक चेतांग नाम का ब्राह्मण हुआ और एक रमाशंकर नाम का ब्राह्मण हुआ जैन समाज और बौद्ध समाज ने दोनों को द्रव्य देकर महाभारत के पात्रों को विकृत बनवा दिया । महाभारत के जो पात्र हैं उनको अशुद्ध बनाया (अर्थात् मूल महाभारत ग्रंथ में परिवर्तन करवा दिया)। उसी काल में रेनकेतु नाम के ब्राह्मण थे और एक स्वाति नाम के ब्राह्मण थे इन्होंने रामायण के पात्रों को विकृत किया (अर्थात् मूल रामायण के ग्रंथ में परिवर्तन करवा दिया)। इसी प्रकार हमारे साहित्य में समय-समय पर अनेक प्रक्षेप करके साहित्य को ही नष्ट करने का प्रयास किया जाता रहा है।

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अगले पोस्ट में - रूढ़िवादी काल व संस्कृति पर आघात

आपका अपना
ब्रह्मचारी अनुभव आर्यन्

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