मंगलवार, 3 जनवरी 2017

महाभारत काल के बाद का आर्यावर्त भाग - २

महाभारत काल के बाद का आर्यावर्त: भाग - २




पांडव वंश के शासक

यहाँ महाराजा युधिष्ठिर के पश्चात् अभिमन्यु के पुत्र परीक्षित का राष्ट्र हुआ। परीक्षित के पुत्र जनमेजय हुए उसके पश्चात् ममानुक नाम के राजा हुए, आगे आमन्तरी हुए। आमन्तरी राजा के पश्चात् विक्रम हुए उनके पश्चात् शमिणम और उनके पश्चात् यहाँ सत्कामातुर नाम के राजा का साम्राज्य आ गया। उसके पश्चात् यह प्रणाली समाप्त हो गई। और यहाँ जैनियों का साम्राज्य आ गया, जैन मत की उत्पत्ति हो गई।
महात्मा महावीर

जब यहाँ नाना सम्प्रदाय चलने लगे तो यहाँ एक महावीर नाम के व्यक्ति आ पहुंचे। उन्होंने अपनी दार्शनिक बुद्धि से कुछ विचारा कि यह तो बड़ा अनर्थ होने लगा है समाज में। महावीर नाम के दार्शनिक ने धर्म को दार्शनिकता से विचारा और उन्होंने कहा कि अहिंसा परमोधर्मः वह दार्शनिक तो बने, वेद के कुछ अंग को तो जाना, परन्तु वेद की विद्या को नहीं जाना। और न जान करके उन्होंने कहा कि वेद की विद्या सब निरर्थक है। यह कहा कि वेद की विद्या का वाक्य सत्य नहीं और न वेद कोई पदार्थ है। अहिंसा परमो धर्मः का तो कुछ पाठ करके, वेद के कुछ अंग का प्रचार किया, परन्तु उन्होंने कहा कि आत्मा-परमात्मा एक ही हैं। न कोई इस संसार को बनाने वाला है और न संसार किसी स्थान में बनता है। यह तो ऐसे ही अनादि चला आ रहा है। यह आत्मा ही परमात्मा बन जाता है।

यहां महावीर नाम के स्वामी ने अपने मत का प्रसार किया परंतु वह प्रचार घृणात्मक था। उस महावीर से इस भारत भूमि में घृणा की उत्पत्ति हुई। इस भारत भूमि में उससे पूर्व घृणा की उत्पत्ति नहीं थी वैसे तो घृणा की उत्पत्ति महाराजा दुर्योधन के समय से ही हो गयी थी परंतु मानव के द्वारा अत्यन्त पक्षपात महात्मा महावीर के समय में आया। वास्तव में वह महात्मा थे, मैं (एक जीवन मुक्त आत्मा, महानन्द मुनि जी) उनका आदर करता हूँ परंतु उनके शब्दों में घृणा थी। आगे उनके मानने वालों ने और भी अधिक घृणा उत्पन्न कर दी और उसका परिणाम यह हुआ कि यहाँ अराजकता का प्रसार होने लगा। उनके सिद्धांत के विपरीत जो यहाँ पुस्तकें थीं, जो वैज्ञानिक थे, जो उनके आंग में नहीं आते थे, वे अग्नि के मुख में अर्पित होने लगे। उन्होंने वैदिक साहित्य को, वेद की पोथी को अपने नेत्रेां के समक्ष नहीं आने दिया। आगे यहाँ जैनियों का साम्राज्य चलता रहा। यहाँ की सब पुस्तकें अग्नि के मुख में चली गयीं। किसी महापुरुष ने कोई संहिता स्मरण की तो आगे उसकी परम्परा चलती रही और वेद की रक्षा होती रही। वेद को परमात्मा का ज्ञान कहा है। इसलिए प्रायः उसकी रक्षा होती रही।

हमारे यहाँ जैन मत आया और नाना प्रकार की अज्ञानता फैली तो भगवन्! यहाँ जो सतयुग, त्रेता और द्वापर काल के जो महान हमारे दार्शनिकों के वाक्य थे, ग्रंथ थे, जैनियों ने अग्नि में भस्म कर दिये। जब यह पुस्तकालय भस्म हो गये तो अब क्या करें। अज्ञानता तो आनी थी। वेद किसी प्रकार बच गए? वेद किसी के गृह में रह गये। आह! वह विद्या कहाँ से लाएँ जैसा हम आपसे प्रश्न करते हैं कि वह प्रमाण अब क्यों नहीं मिलते, वह इसलिए नहीं मिलते क्योंकि वह पुस्तकालय ही अब समाप्त हो चुके हैं जिसमें हमारे पूर्व दार्शनिकों के वाक्य थे।

महात्मा बुद्ध्

आगे काल ऐसा ही चलता रहा, नाना प्रकार की त्राुटियाँ समाज में आने लगीं। उसके पश्चात् परमात्मा ने कुछ विभूतियों को भेजा। आज से लगभग 2500 वर्ष का समय हो गया जब यहाँ महात्मा बुद्ध् का आगमन हुआ। उन्होंने इस संसार का कुछ निर्माण किया,  द्वितीय राष्ट्रों में भ्रमण करके उन्होंने कहा कि "अहिंसा परमोधर्म:"। जब उनके समक्ष नाना वाममार्गी शास्त्रार्थ करने के लिए आए तो उन्होंने कहा कि भाई! तुम हमें वेद का प्रमाण देते हो, जिस वेद में ऐसा प्रकरण हो, पापाचार हो, हिंसा हो, हम उस वेद को कदापि भी स्वीकार नहीं करेंगे। उनके वेद पर गहराई से विचारा नहीं। उन्होंने वेद का स्वाध्याय करना समाप्त कर दिया। वास्तव में महात्मा बुद्ध बड़े ऊँचे थे, बड़े दार्शनिक थे, राजा थे। राजा से उन्होंने सन्यास धारण  किया, सर्वस्व सांसारिक ऐश्वर्य को त्याग करके ऐसे अगाध अन्धधकार में जा कूदे। उन्होंने क्या किया? बहुत से राष्ट्रों का निर्माण किया। वेद के कुछ अंगों का पालन किया। जब महात्मा बुद्ध समाप्त हो गए तो उनके जो अनुयायी थे, उन्होंने महात्मा बुद्ध के विचारों को न मान करके नाना प्रकार का दुराचार करना प्रारंभ कर दिया। इन सभी पुरुषों का आदर करना चाहिए परंतु आदर इसलिए नहीं करना चाहिए क्योंकि उन्होंने वैदिक साहित्य को, वेद की पोथी को अपने नेत्रों के समक्ष नहीं आने दिया। परंतु आदर इसलिए करना चाहिए क्योंकि वह महान थे, विचित्र थे। उनके शब्दों में पश्चात् में आकर घृणा की दृष्टि आ गई थी।

महाभारत के पश्चात् कलियुग आया। यहाँ एक महाराजा बुद्ध नाम के आये और उनको भी यहाँ अवतार मान बैठे जिन्हें वेद का पूरा ज्ञान न था। परंतु उन्हें ज्ञान था "अहिंसा परमोधर्म:" का। जिसको लेकर वह चले और संसार का पुनः उत्थान कर दिया, आज हम उन महान आत्मा ने तो यह भी कहा कि परमात्मा ने यह संसार रचा ही नहीं, यह अनादि काल से चला आ रहा है। जो क्या हम उनको अवतार मान बैठे? अपना भगवान मान बैठे। जिन्होंने परमात्मा के ऊँचे स्वरूप को, उस महान विश्वकर्मा को अच्छी प्रकार जाना ही नहीं। हम यह नहीं कहते कि कुछ नहीं जाना, बहुत कुछ जाना। हम यह अवश्य कहेंगे इस अन्ध्कार के संसार को प्रकाश देकर चले गये। परंतु यह नहीं कह सकते कि वह परमात्मा का अवतार बनकर आ गये, इसको कोई भी महान् आत्मा, कोई भी योगी कदापि भी स्वीकार नहीं करेगा।

अगली कड़ी में - महात्मा शंकराचार्य

अगली कड़ी में - महात्मा  शंकराचार्य 
महात्मा महावीर के विषय में अंग्रेजी में पढ़ें 
महात्मा बुद्ध के बारे में अंग्रेजी में पढ़ें


आपका
ब्रह्मचारी अनुभव शर्मा

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