गुरुवार, 15 फ़रवरी 2018

परमात्मा का अस्तित्व

ॐ 


सभी भाई बहन जानते हैं कि परमात्मा होता है परन्तु भौतिक विज्ञान से युक्त बुद्धि वाले हमारे भाई बहन यह नहीं मानते और कहते हैं कि परमात्मा होता ही नहीं और वे आत्मा के अस्तित्व को भी नकारते हैं और न ही उनका लोक, परलोक, कर्म, भाग्य, पूर्व व पर जन्म में ही विश्वास होता है।  वे मानते हैं कि यह संसार आदि काल से ऐसे ही चला आ रहा है और इसका कोई नियामक या शासक नहीं होता।  समय समय पर नयी नयी व्यवस्थाएं बनती हैं और कभी लोकतंत्र तो कभी राज तंत्र तो कभी आततायियों का प्रभुत्व तो कभी अच्छे लोगों का शासन बिना किसी प्रभु की इच्छा के आता रहा है। मेरी यह पोस्ट उन ही भाई बहनों के लिए समर्पित है। 

भाइयों बहनों! आप अपने सामने देखो यह कप्यूटर या मोबाइल का स्क्रीन भी किसी ने बनाया है खुद ब खुद नहीं बन गया।  जिस में आप चाय पीते हो वह कप भी किसी ने बनाया है।  चाय जो पीते हो वह भी कोई स्त्री या पुरुष या आप खुद बनाते हो खुद ही नहीं बनती।  जिन किताबों को आप पढ़ते हो वह भी किसी ने बनायी हैं और कंप्यूटर से छापते हुए भी कोई मानव ही था जिस के कारण छपीं।  जिस पैन को आप प्रयोग करते हो वह भी किसी मानव ने ही बनाया।  इसी प्रकार जिस पलंग पर आप सोते हो वह भी किसी बढ़ई ने बनाया। जिस कॉपी पर आप लिखते हो वह भी मानवों के द्वारा निर्मित हैं।  किसी या किन्हीं मानव/मानवों ही ने इनकी खोज की और फिर मानवों के द्वारा ही मशीन्स की सहायता से व बुद्धि और ज्ञान के प्रयोग साथ साथ पदार्थों के संयोग के द्वारा ही ये सभी चीज़ें बनायी गई हैं खुद ही नहीं बनी हैं।  है न? अर्थात कोई भी पदार्थ या वस्तु खुद ही नहीं बन सकती उसका कोई न कोई बनाने वाला होता है।  

अब विचारो कि इतने बड़े सूर्य को किसने बनाया होगा। हम यदि विचारें कि पूर्व समय में बहुत बड़े बड़े मानव रहे होंगे उन ही ने बनाया होगा तो इतना बड़ा मानव तो हो नहीं सकता जो पृथ्वी से लाखों गुना बड़े सूर्य का निर्माण कर सके।  और पुराने समय में अधिक से अधिक आज से दुगने मानव होते होंगे उससे बड़े तो संभव ही नहीं।  अर्थात सूर्य को किसी और ने बनाया है क्यूंकि यह पदार्थ बिना बनाये तो बन नहीं सकता।  तो भाई जिसने भी बनाया वह ही परमात्मा है। देखो मानव के नेत्र को विचारो कोई वैज्ञानिक ऐसा नहीं हुआ जो ऐसे नेत्र बना सके, केवल ट्रान्सप्लांट ही किया करते हैं डॉक्टर मानव नेत्र के ऑपरेशन्स के समय।  इसी प्रकार हृदय आदि को भी विचारें।  ये अंग मानव नहीं बना सकता।  अर्थात माता के गर्भ में जिसने भी बनाया वह ही परमात्मा है भाइयों! 

अब विचारें फूल, कितनी सुन्दर नक्काशी, और सभी पंखुड़ियों की व्यवस्था और डिज़ाइन एक जैसे, तो भाई फूल को भी निश्चित रूप से परमात्मा ही बनाता है।  और यह पृथ्वी भी एक समान गति से अरबों वर्षों से घूम रही है तो उस को प्रारंभिक गति देने वाला कौन जो गति पाकर पृथ्वी अभी तक नहीं रुकी? तो भाई पृथ्वी के निर्माण के पश्चात उस गति को देने वाला भी परमात्मा ही है?

अतः सिद्ध हुआ कि परमात्मा है। 


परमात्मा वायु के सामान अदृश्य चेतना के रूप में सारे ब्रह्माण्ड में फैला है और पार निकला हुआ है। उपनिषदों के अनुसार परमात्मा इतना सूक्ष्म भी है कि मानव के ह्रदय की गुफा में समा जाता है।  हमारे सिर के बाल की अनुप्रस्थ काट के ९९ भाग करें उस एक भाग के ६० भाग करें फिर उससे प्राप्त  एक भाग के ९९ भाग फिर करें और प्राप्त एक भाग के फिर ६० भाग करें - भाइयों बहनो इतना सूक्ष्म परमात्मा है।  और इतना विस्तृत है कि हम असंख्य जीव उस पिता परमात्मा के भीतर समाये हुए हैं अर्थात उस माता के गर्भ में समाये हुए हैं। वह परमात्मा हमारी माता भी है और पिता भी।  परमात्मा क्यूंकि एक चेतना है और हर समय हर स्थान पर पहले से ही मौजूद है अतः उसकी मूर्ति नहीं बन सकती।  परन्तु वह नहीं है ऐसा कभी नहीं विचारना चाहिए।  क्यूंकि वह हर वक़्त हमें देखता है और हमारे मन की बातें भी सुनता है। 

आपका अपना 
ब्रह्मचारी अनुभव शर्मा

1 टिप्पणी:

  1. आप क्या आत्मा को परमात्मा मानते है जो बाल का उदाहरण दे रहे है कि परमात्मा इतना शूक्षम है

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