शुक्रवार, 14 मार्च 2014

फिर मत कहना कुछ कर न सके

फिर मत कहना कुछ कर न सके।
नहीं जीवन अब तक संवर सके।
फिर मत कहना कुछ कर न सके।

जब नर तन तुम्हें निरोग मिला।
सत्संगत का भी योग मिला।
फिर भी प्रभु कृपा अनुभव करके।
यदि भव सागर तुम तर न सके।
फिर मत कहना कुछ कर न सके।

तुम सत्य तत्व ज्ञानी होकर।
तुम सत्धर्मी मानी होकर।
यदि सरल निरभिमानी होकर।
कामना विमुक्त विचर न सके।
फिर मत कहना कुछ कर न सके।

जग में जो कुछ भी पाओगे।
सब यहीं छोड़ कर जाओगे।
पछताओगे यदि तुम अपना।
पुण्यों से जीवन भर न सके।
फिर मत कहना कुछ कर न सके।


जब अंत समय आ जायेगा।
तब क्या तुम से बन पायेगा।
यदि शक्ति समय के रहते ही।
आचार विचार सुधर न सके।
फिर मत कहना कुछ कर न सके।   

होता तब तक न सफल जीवन।
है भार ऱुप सब तन मन धन।
यदि पथिक प्रेम पथ पर चलकर।
अपना या पर दुःख हर न सके।
फिर मत कहना कुछ कर न सके।

फिर मत कहना कुछ कर न सके।
यदि भव सागर तुम तर न सके।
फिर मत कहना कुछ कर न सके। 
कामना विमुक्त विचर न सके।
फिर मत कहना कुछ कर न सके।  
पुण्यों से जीवन भर न सके।
फिर मत कहना कुछ कर न सके।
आचार विचार सुधर न सके। 
फिर मत कहना कुछ कर न सके।
अपना या पर दुःख हर न सके। 
फिर मत कहना कुछ कर न सके।   

(बाबा रामदेव जी द्वारा गए भजनों से साभार )
आपका
भवानंद आर्य

3 टिप्‍पणियां:

  1. यह भजन पुरुषार्थ की प्रेरणा देता है।

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  2. जग में जो कुछ भी पाओगे।
    सब यहीं छोड़ कर जाओगे।
    पछताओगे यदि तुम अपना।
    पुण्यों से जीवन भर न सके।

    जवाब देंहटाएं

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