हमारे दैनिक जीवन में हम अपने भाई, बहन, माता, पिता, चाचा, मामा, चाची, मामी , पुत्रियों, पुत्रों, पत्नी आदि को प्रेम करते हैं। मैं आपको इस बात से अवगत कराना चाहता हूँ कि हम किस प्रकार अपना प्रेम खो देते हैं और अपने को दूसरों के हृदयों से दूर कर बैठते हैं। आजकल के भौतिक वादी युग में यंत्रों की उन्नति हो चुकी है। बहुत से वैज्ञानिकों ने वाहनों, मोबाइल , इंटरनेट , पेजर , टेलीफोन आदि की खोज की है। ये साधन कई प्रकार से हमारे सहायक हैं लेकिन यह मेरा विषय नहीं चल रहा कि ये माध्यम किस प्रकार से हमारे लिए सहायक हैं या किस किस ने क्या क्या खोजा।
यदि हम प्राचीन काल को विचारें तो हम आसानी से समझ सकते हैं कि किस प्रकार हृदयों से एक दूसरे के निकट थे जब भौतिक प्रगति इतनी अधिक नहीं थी। परन्तु इन युक्तियों ने हमें हृदयों से दूर कर दिया है, यह सत्य तथ्य है। हालांकि भौतिक प्रगति नज़र अंदाज़ नहीं की जा सकती लेकिन हमें भौतिक साधनों का प्रयोग अध्यात्मिक उन्नति के लिए करना चाहिए। यह राय मानव को हमारे ऋषि मुनियों की ओर से है। ब्रह्मचारी कृष्ण दत्त जी अपनी समाधिस्थ अवस्था में कहते हैं कि "हमें अध्यात्मिक और भौतिक दोनों प्रकार के विज्ञानों में विकास करना चाहिए। तब हमारी शीघ्र उन्नति होती है । अध्यात्मिक विज्ञान का पथ भौतिक विज्ञान से ही होकर गुज़रता है। हमें भौतिक विज्ञानं का दुरूपयोग नहीं करना चाहिए। "
अब मैं इस के बारे में एक तथ्य का उदघाटन कर रहा हूँ-
"जब हम भौतिक साधनों के द्वारा निकट आते हैं तो हम हृदयों से दूर हो जाते हैं। ."
"जब भौतिक साधनों के अभाव में हम दूर होते हैं तब हम हृदयों से पास रहा करते हैं। "
यह ऋषि मुनियों की खोज है अतः बिलकुल उपयुक्त तथ्य है।
इसलिए इन शब्दों के बारे में विचारो जो कि गूढ़ रहस्य मय तथ्य से युक्त हैं। और इस पोस्ट पर टिपण्णी करना मत भूल जाना कि तुम इस बारे में क्या विचारते हो?
अपने विचार न प्रस्तुत करते हुए मैं ये आप पर छोड़ता हूँ कि आप सोचो और आप अपने विचार बताओ जो आपने इससे सम्बंधित अपने जीवन में अनुभव किये हैं ।
आप लोग टिपण्णी करने के लिए आमंत्रित हो।
आपका
भवानंद आर्य 'अनुभव'
bahut badiya !!
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Thanx Aparna for the Comment.
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