शनिवार, 15 मार्च 2014

जीवन निरर्थक जाने न पाये

हे नाथ अब तो ऐसी कृपा हो जीवन निरर्थक जाने न पाये।
यह मन न जाने क्या क्या दिखाए कुछ बन न पाया मेरे बनाये।

संसार में ही आसक्त रहकर दिन रात अपने मतलब की कह कर।
सुख के लिए लाखों दुःख सहकर ये दिन अभी तक यूँ ही बिताये।

ऐसा जगा दो फिर सो न जाऊं अपने को निष्काम प्रेमी बनाऊं।
मैं आप को चाहूँ और पाऊँ संसार का कुछ भय रह न जाये।

वह योग्यता दो सत्कर्म कर लूं अपने हृदय मैं सदभाव भर लूँ ।
नरतन है साधन भव सिन्धु तर लूँ ऐसा समय फिर आये न आये।

हे दाता हमें निरभिमानी बना दो दारिद्र हर लो दानी बना दो। 
आनंद मय विज्ञानी बना दो मैं हूँ पथिक यह आशा लगाये।




(पूज्यपाद स्वामी रामदेव जी के गाये भजनों से साभार )

आपका
भवानंद आर्य

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