शुक्रवार, 28 मार्च 2014

एक मन्त्र

ॐ वायुरनिल  ममृत मथेदम्   भस्मान्तं शरीरं ।
ओम् कृतो स्मर क्लिबे स्मर कृतं स्मर||यजुर्वेद। ४०।

परमात्मा द्वारा रचित ये शरीर अन्त काल मे भस्म होकर पञ्च तत्वों में  विलीन हो जाने के लिए ही मिला है  ए प्राणी इसलिए तूने जो कर्म कर लिए हैं उन को याद कर। जो कर्म तू अब कर रहा है उन का भी स्मरण कर और भविष्य में तेरे द्वारा किये जाने वाले कर्मों का भी अभी से ही स्मरण कर।

परम पिता परमात्मा द्वारा वेद के रूप में दिए गए इस उपदेश का साफ़ अर्थ ये है कि हमें अपने को इस प्रकार का बना लेना चाहिए कि हमको पुरानी बातें भी याद रहें और अपने वर्त्तमान कर्म को करते हुए हमें बहुत ही सावधानी से कार्य करना चाहिए और उसे याद भी रखना चाहिए के हम क्या कर रहे हैं और उसका क्या प्रभाव पड़ने वाला है।  तथा भविष्य का ज्ञान भी कर्म करने के लिए आवश्यक है।  हालांकि भविष्य का ज्ञान योग के द्वारा ही सम्भव होता है लेकिन साधारण सामाजिक पद्यतियों से भी ये ज्ञान हो जाता है और प्लान बना कर काम करने से भी भविष्य का ज्ञान पहले ही हो जाता है। 

आपका 
भवानंद आर्य 'अनुभव'

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