महाभारत काल के बाद का आर्यावर्त : भाग - १२
बेटा! एक समय इस कलियुग की वार्ता प्रकट करते हुए तुमने कहा था कि महात्मा नानक नाम के महात्मा इस संसार में हुए। उन्होंने यह परिपाटी चलाई कि तुम्हें अपने इन केशों को स्थापित करना है और जो मुखारविन्द पर केश होते हैं इन सबको स्थापित करना है तुमने कहा था कि महात्मा नानक ने मर्यादा स्थापित करने के लिए, यवन से संग्राम करने के लिए, अपने धर्म की मर्यादा को ऊँचा बनाने के लिए ऐसा कहा। क्षत्रिय रूप हो करके उन्होंने अपने केशों को स्थापित करते हुए आर्यत्व का उत्थान किया। अपने धर्म की रक्षा की। परंतु यह परम्परा महात्मा नानक ने नहीं यह परम्परा क्षत्रिय रूप में रही थी, पर परंपरा हमारे आर्य रूप में भी थी। वह हमारे धर्म की रक्षा करने के लिए नहीं परंतु परमात्मा के ज्ञान विज्ञान के ऊपर निर्भर थी। (महानंद जी) गुरुदेव! यह कहते हैं कि यह इस प्रकार का हमारा धर्म है और पाँच चिन्ह हमारे द्वारा अनिवार्य हैं। महानंद जी! इसका उत्तर यह है कि क्षत्रियों के द्वारा पाँच चिन्ह अनिवार्य है परंतु केवल हम केशों के लिए पाँच चिन्ह माने तो यह तो केवल हमारा रूढ़िवाद है। हमें तो इसके विज्ञाान को देखना चाहिए, इसमें मानवता क्या कह रही है। इसमें मानवता तो यह कह रही है कि हमने राष्ट्र की रक्षा के लिए, धर्म की रक्षा हमने कोइ विधान बनाया और वह रक्षा हमारी पूरी हो गई। इसे आज भी अपनाते रहे तो उसका कोई महत्व नहीं वह तो रूढ़िवाद है। महात्मा नानक वह महान आत्मा थी जिन्होंने संसार का उत्थान किया, धर्म की रक्षा की परंतु आज उनके अनुयायी उनके मार्ग से बहुत दूर चले गये हैं। आज उनके अनुयायी दूसरों को अपना करना जानते हैं परंतु अपने को ऊँचा बनाना नहीं जानते। आज उन्हें ऊँचा बनना है। अपनी रसना के आनंद में नहीं जाना है परंतु अपने बल की रक्षा करनी है।
संस्कृति पर आघात
यवनों ने यहाँ आकर मनुष्यों के विचारों पर आक्रमण किया। क्यों हुआ? इसका कारण है कि यह रूढ़िवाद से हुआ। रूढ़िवाद से विचारों पर आक्रमण हुआ और विचारों पर आक्रमण करके यहाँ जो सम्पन्न विद्या थी उसे शान्त कर दिया। मुनिवरों! आधुनिक काल का संसार तो अपने विचारों से इतना परिपक्व है कि जो भी यथार्थ वाक्य आता है वह ढलक जाता है, उसमें वह समाहित नहीं होते। इसका क्या कारण है? इसका कारण है कि मानव के द्वारा इतना स्वार्थ है, इतना रूढ़िवाद है रूढ़िवाद से विचारों पर आक्रमण शान्त नहीं कर सकते। आज एक-दूसरे के विचारों पर आक्रमण किया जाता है जैसे मुहम्मद ने यहाँ आकर के विचारों पर आक्रमण किया, बुद्ध ने विचारों पर आक्रमण किया, महावीर ने विचारों पर आक्रमण किया, जिससे यहाँ अनेक मत प्रचलित हो गए। राजाओं ने आकर विचारों पर आक्रमण किए। अकबर ने यहाँ विचारों पर आक्रमण किया जिससे वैदिक संस्कृति शान्त होती चली गई। यहाँ क्या नहीं हुआ? वह पुस्तकालय जिसमें महाराजा अर्जुन और घटोत्कच की वह पुस्तक जिनमें सम्पन्न भौतिक ज्ञान और विज्ञान था वह सब अग्नि के मुख में चला गया। आज उस साहित्य के समाप्त होने से क्या हुआ कि हमारी इस भारत भूमि को छोड़कर अन्य दूसरे राष्ट्रों ने जिन्होंने विज्ञान में कुछ प्रगति की है उन्होंने कहा है कि वेद ऋषियों का एक काव्य है।
जर्मनी की प्रगति वेद से
संस्कृति पर आघात
यवनों ने यहाँ आकर मनुष्यों के विचारों पर आक्रमण किया। क्यों हुआ? इसका कारण है कि यह रूढ़िवाद से हुआ। रूढ़िवाद से विचारों पर आक्रमण हुआ और विचारों पर आक्रमण करके यहाँ जो सम्पन्न विद्या थी उसे शान्त कर दिया। मुनिवरों! आधुनिक काल का संसार तो अपने विचारों से इतना परिपक्व है कि जो भी यथार्थ वाक्य आता है वह ढलक जाता है, उसमें वह समाहित नहीं होते। इसका क्या कारण है? इसका कारण है कि मानव के द्वारा इतना स्वार्थ है, इतना रूढ़िवाद है रूढ़िवाद से विचारों पर आक्रमण शान्त नहीं कर सकते। आज एक-दूसरे के विचारों पर आक्रमण किया जाता है जैसे मुहम्मद ने यहाँ आकर के विचारों पर आक्रमण किया, बुद्ध ने विचारों पर आक्रमण किया, महावीर ने विचारों पर आक्रमण किया, जिससे यहाँ अनेक मत प्रचलित हो गए। राजाओं ने आकर विचारों पर आक्रमण किए। अकबर ने यहाँ विचारों पर आक्रमण किया जिससे वैदिक संस्कृति शान्त होती चली गई। यहाँ क्या नहीं हुआ? वह पुस्तकालय जिसमें महाराजा अर्जुन और घटोत्कच की वह पुस्तक जिनमें सम्पन्न भौतिक ज्ञान और विज्ञान था वह सब अग्नि के मुख में चला गया। आज उस साहित्य के समाप्त होने से क्या हुआ कि हमारी इस भारत भूमि को छोड़कर अन्य दूसरे राष्ट्रों ने जिन्होंने विज्ञान में कुछ प्रगति की है उन्होंने कहा है कि वेद ऋषियों का एक काव्य है।
जर्मनी की प्रगति वेद से
महाराजा परीक्षित के राज्य में महाराजा जन्मेजय द्वारा सर्व यज्ञ कराने के पश्चात् जिसको हम पूर्व काल में जन्मरती कहा करते थे और आधुनिक काल में उसको जर्मनी कहा जाता है, वहाँ जाकर जनमेजय ने अपना एक सूक्ष्म सा राष्ट्र बनाया और वह वहाँ वेद के अनुपम साहित्य को स्थापित किया। उस वेद की विद्या में ही प्राप्त होता है। हमें संसार में कोई ऐसी पुस्तक प्राप्त नहीं होती जहाँ वेद से पुरानी और ऊँची कोई विद्या प्राप्त हो जाये। यह ज्ञान विज्ञा सब प्रकार से संपन्न है।
संदर्भ ग्रंथ -
महाभारत एक दिव्य दृष्टि
(पूज्य ब्रह्मर्षि कृष्णदत्त जी द्वारा प्रकथित प्रवचनों से महाभारत के विषयों का संकलन)
प्रकाशक - वैदिक अनुसंधान समिति (पंजी0), दिल्ली
आपका अपना
ब्रह्मचारी अनुभव आर्यन
संदर्भ ग्रंथ -
महाभारत एक दिव्य दृष्टि
(पूज्य ब्रह्मर्षि कृष्णदत्त जी द्वारा प्रकथित प्रवचनों से महाभारत के विषयों का संकलन)
प्रकाशक - वैदिक अनुसंधान समिति (पंजी0), दिल्ली
आपका अपना
ब्रह्मचारी अनुभव आर्यन
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