शुक्रवार, 17 फ़रवरी 2017

सत्य व असत्य की परीक्षा

सत्य व असत्य की परीक्षा
अब जो जो पढ़ना-पढ़ाना हो वह-वह अच्छी प्रकार परीक्षा करके होना योग्य है। परीक्षा पाँच प्रकार से होती है-

1- जो-जो ईश्वर के गुण, कर्म, स्वभाव और वेदों से अनुकूल हो वह-वह सत्य और उससे विरुद्ध वह असत्य है।
2- जो जो सृष्टि क्रम से अनुकूल वह-वह सत्य और जो-जो सृष्टि क्रम से विरुद्ध है वह सब असत्य है। जैसे कोई कहे कि बिना माता पिता के योग से लड़का उत्पन्न हुआ ऐसा कथन सृष्टिक्रम से विरुद्ध होने के कारण सर्वथा असत्य है।
3- आप्त अर्थात् धार्मिक विद्धान्, सत्यवादी, निष्कपटियों का संग उपदेश के अनुकूल है वह-वह ग्राह्य और जो-जो विरुद्ध है वह अग्राह्य है।
4- अपने आत्मा की पवित्रता विद्या के अनुकूल अर्थात् जैसे अपने को सुख प्रिय और दुःख अप्रिय है वैसे ही सर्वत्र समझ लेना चाहिए कि मैं भी किसी को दुःख दूँगा तो वह भी अप्रसन्न और प्रसन्न होगा।
5- आठों प्रमाण अर्थात् प्रत्यक्ष, अनुमान, उपमान, शब्द, ऐतिह्य, अर्थापत्ति, सम्भव और अभाव के द्वारा सत्य को जान लेवें।

प्रत्यक्ष - को तो सभी जान लेते हैं अर्थात् यदि कोई बात इंद्रियों से स्पष्ट पता चल रही हो तो वह प्रमाण होती है।
अनुमान - जो प्रत्यक्षपूर्वक अर्थात् जिसका कोई एक देश वा सम्पूर्ण द्रव्य किसी स्थान वा काल में प्रत्यक्ष हुआ हो उसका दूर देश में सहचारी एक देश के प्रत्यक्ष होने से अदृष्ट अवयवी का ज्ञान होने को अनुमान कहते हैं। जैसे बादलों को देख कर वर्षा का अनुमान होता है और जैसे दूर देश में धुंआ उठते देख अग्नि के जलने का ज्ञान होता है आदि आदि।
उपमान - जो प्रसिद्ध प्रत्यक्ष साधर्म्य से साध्य अर्थात् सिद्ध करने योग्य ज्ञान की सिद्धि करने का साधन हो उसको उपमान कहते हैं। जैसे किसी ने किसी भृत्य से कहा कि तू देवदत्त के सदृश विष्णुमित्र को बुला ला। वह बोला कि मैंने उसको कभी नहीं देखा है उसके स्वामी ने कहा कि जैसा यह देवदत्त है वैसा ही वह विष्णुमित्र है। जब वह वहां गया तो देवदत्त के सदृश उसको देख निश्चय कर लिया कि यहीं विष्णुमित्र है, उसको ले आया।
शब्द प्रमाण - जो आप्त अर्थात् पूर्ण विद्धान धर्मात्मा, परोपकार प्रिय, सत्यवादी, पुरुषार्थी, जितेंद्रिय पुरुष जैसा अपने आत्मा में जानता हो और जिससे सुख पाया हो उसी के कथन की इच्छा से प्रेरित सब मनुष्यों के कल्याणार्थ उपदेष्टा हो जिसने पृथिवी से लेके परमेश्वर पर्यन्त ज्ञान प्राप्त होकर उपदेष्टा होता है। जो ऐसे पुरुष और पूर्ण आप्त परमेश्वर के उपदेश वेद हैं, उन्हीं को शब्द प्रमाण जानो।
एतिह्य- इतिहास
अर्थापत्ति- जैसे किसी ने किसी से कहा कि बद्दल के होने से वर्षा और कारण के होने से कार्य उत्पन्न होता है इससे बिना कहे यह दूसरी बात सिद्ध होती है कि बिना कारण कार्य कभी नहीं हो सकता।
संभव- सृष्टि क्रम केे अनुकूल होने वाली बातें ही संभव कहलाती हैं।
अभाव- जैसे किसी ने किसी से कहा कि हाथी ले आ। वह वहां हाथी का अभाव देखकर जहां हाथी था वहां से हाथी ले आया।


(सत्यार्थ प्रकाश - तृतीय समुल्लास से)

आपका अपना
ब्रह्मचारी अनुभव आर्यन्

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