बुधवार, 22 फ़रवरी 2017

करो योग रहो नीरोग

ओ३म्

पेट की अग्नि

हमारे शरीर में जठराग्नि प्रदीप्त होती रहती है यहीं कारण है कि हम एक विशेष समय के बाद पुनः भोजन करने के लिए प्रेरित और बाध्य हुआ करते हैं। यदि हमारे पेट में यह जठराग्नि नहीं होती तो हम भोजन करने के लिए प्रेरित ही नहीं होते और गरीबों की यह समस्या समाप्त हो चुकी होती कि वे लोग अपने बच्चों की पेट की अग्नि शान्त करने के लिए अर्थात् रोजी रोटी के लिए दिन रात श्रम करते हैं।

जठराग्नि के साथ साथ हमारे पेट में सात सप्ताग्नि और पाँच पंचाग्नि भी होती हैं। इस प्रकार कुल 13 अग्नियाँ हमारे पेट में काम कर रही हैं। सप्ताग्नि तो सात धातुओं के पाचन के काम आती हैं और पंचाग्नि पंचमहाभूतों(अग्नि, जल, वायु, पृथ्वी व आकाश) का पाचन करती हैं। इन्हीं तेरह अग्नियों के कारण हमारा जीवन चल रहा है।

जब हम भोजन करते हैं तो भोजन के पाचन के पश्चात् रस नाम धातु बनती है। रस के पाचन के पश्चात् रक्त, रक्त से मांस, मांस से मेद, मेद से अस्थि, अस्थि से मज्जा और मज्जा से शुक्र या रज बना करता है। सप्ताग्नियों के कारण इस प्रकार मानव शरीर में सात धातुओं का निर्माण हुआ करता है अर्थात् (रस, रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा व शुक्र/रज)।

सातवीं धातु की गतियाँ दो प्रकार की होती हैं - ऊर्ध्व व ध्रुव। यदि सातवीं धातु की गति ऊर्ध्व हो जाती है तो यह शुक्र या रज शरीर में खप जाता है। शरीर में खपने पर यह स्त्रियों में तेज का रूप धारण करता है और पुरुषों में ओज का। तेज के कारण स्त्री शरीर में  - सहनशीलता, माधुर्यता, स्वास्थ्य व सुंदरता के गुण, प्रवेश कर जाते हैं। पुरुषों में ओज के कारण पुरुषों का स्वाभाविक गुण - बल, स्वास्थ्य व वाणी में ओज, प्रवेश कर जाते हैं। इस  सप्तम धातु को योगी तो सहज ही शरीर में खपा लेते हैं परंतु इसकी ध्रुव व ऊर्ध्व गति की उपमा चंद्रमा के शुक्ल व कृष्ण पक्षों से भी की जा सकती है। धातुओं की ऊर्ध्व गति के लिए योग करें। मूलबंध, कपालभाति प्राणायाम, ब्रह्मचर्यासन या वज्रासन के साथ साथ शीर्षासन आदि करें। तब आप अपार शक्तियों के स्वामी हो सकते हैं और एक स्त्री तब समाज को वश में रखने के गुण से ओतप्रोत हो सकती है।

करो योग रहो नीरोग  कर लोगे तब शक्ति, समृद्धि, धन, ऐश्वर्य आदि से भी योग

ओ३म्



आपका
अनुभव आर्यन्

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