हमारी पूर्वज नारियां
तथा
आधुनिक नारियों के कर्त्तव्य व अधिकार
Part 1
हमारी आदर्श पूर्वज नारियों में माता गार्गी, माता मदालसा, सती सावित्री, माता सीता, माता कौशल्या, माता अनुसूया, माता कुंती, माता द्रौपदी, माता अरुंधति आदि का नाम शीर्ष पर रहा है। पुराने समय में अनेकों महान नारियां व ऋषिकाएँ समय समय पर प्रभु भक्त रही हैं।
हमारी आदर्श पूर्वज नारियों में माता गार्गी, माता मदालसा, सती सावित्री, माता सीता, माता कौशल्या, माता अनुसूया, माता कुंती, माता द्रौपदी, माता अरुंधति आदि का नाम शीर्ष पर रहा है। पुराने समय में अनेकों महान नारियां व ऋषिकाएँ समय समय पर प्रभु भक्त रही हैं।
मीराबाई,
झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई, महादेवी वर्मा, इंदिरा गांधी, प्रतिभा पाटिल व
किरण बेदी जैसी महान नारियां हमारे देश भारत का गौरव व राष्ट्र की
अग्रगामी आदर्श नारियां रही हैं तथा अब भी हैं।
जब
शरीर में, भोजन के पाचन के बाद रस, रक्त, माँस , मेद , अस्थि, मज्जा तथा
शुक्र आदि सात धातुएं बना करती हैं तो ब्रह्मचर्य की उर्ध्व गति होने पर व
उसके शरीर में खपने पर 'ओज' का निर्माण पुरुषों में हुआ करता है जिससे वात
-पित्त-कफ़ दोष सम होने से स्वस्थता व बल आदि प्राप्त होते हैं। परन्तु
नारी में सप्तम धातु के पाचन पर 'तेज' बना करता है। जिस तेज के कारण उनमे
सहनशीलता, वाणी में मृदुता, सुंदरता व विशेष आकर्षण वाला गुण प्रकट होता
है। ये गुण हमारी माताओं, बहनों एवं पुत्रियों की ही धरोहर हैं। नारी किसी
भी प्रकार की हो समाज व परिवार के लिए एक अमूल्य रत्न हैं। इन्हीं को ही
वैदिक साहित्य में लक्ष्मी का दर्जा दिया गया है। और यदि इनकी पूजा अर्थात
आदर, सत्कार व समय समय पर वस्त्राभूषण, अन्न आदि पदार्थों से इनकी सेवा की
जाया करे तो ये प्रत्युपकारी के लिए व समाज व राष्ट्र के लिए अत्यधिक
कल्याणकारी हुआ करती हैं। कहा भी है -
'यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः'
जहाँ
नारियों की पूजा अर्थात सेवा एवं सत्कार हुआ करता है वहां साक्षात देवता
अर्थात विद्वान, वैज्ञानिक व महान मनुष्यों का तथा ऐश्वर्य, कीर्ति,
सदाचार आदि गुणों व परम कल्याण आदि का वास होता है।
स्त्रियां
समाज, राष्ट्र व साक्षात परमात्मा की भी धरोहर हैं / ये तीन कुलों का जीवन
बनाने में सक्षम होती हैं। बाबा रामदेव जी एक भजन में कहते हैं -
'चन्दन है इस देश की माटी, तपो भूमि हर ग्राम है।
हर बाला देवी की प्रतिमा, बच्चा बच्चा राम है। '
और वैसे भी नारी राष्ट्र का आधार हुआ करती है। कहते हैं -
'माता ही गुरु सबसे पहली जो प्यार का पाठ पढ़ाती है। '
नारी ही हमारी माता के रूप में है। हमारे समस्त ऋषि मुनियों, वैज्ञानिकों, कवियों, इंजीनियरों, गणितज्ञों, दार्शनिकों, साधुओं व साक्षात भगवान राम व भगवान कृष्ण आदि को भी माताओं ने ही जन्म दिया है तथा उन्हें बचपन में ही मधुरता, सदाचार व चरित्र और कर्त्तव्य का ऐसा ऊँचा पाठ पढ़ाया कि वे इस प्रकार के बने। माता ही हमारी पूजनीय, सत्कारणीय , श्रद्धा व मधुर वाणी की देवी, सबसे प्रथम गुरु हैं।
संतान को जन्म देना व उनका पालन पोषण व शिक्षा स्त्रियां ही कर सकती हैं क्योंकि वे जननी, मधुर भाषिणी व अत्यंत सहनशील होती हैं।
आजकल नारियों को डांस करना कोई कल्चरल एक्टिविटी नहीं और न ही कोई ये संस्कृति के लक्षण हैं। यह तो मात्र नारी जीवन के साथ एक घिनौना मज़ाक है।
पूर्व नारी माता मदालसा ऐसी हुयी थीं जिन्होंने मात्र पांच संतानों में से प्रारम्भ के तीन ५ वर्ष की छोटी आयु में ही सन्यासी व तपस्वी बना दिए थे जो ऋषि दालभ्य, प्रव्हाण व शिलक नाम से प्रसिद्द हुए थे। क्योंकि ये रानी थीं अतः अपने राजा पति के अनुरोध पर पाँचवाँ पुत्र राजा के रूप में उत्पन्न किया जिसने बहुत लम्बी अवधि तक राज्य भोगा तथा अंत में वैरागी हो संन्यास भी ले लिया। ऐसी थीं माता मदालसा।
हमारी पुत्रियों के आदर्श हेमा मालिनी, श्री देवी, जूही चावला या करिश्मा कपूर न होकर अपनी पूर्वज नारियां होनी चाहिएं। यहीं हमारा धर्म है और ये ही संस्कृति। प्रत्येक नारी को वैदिक, औपनिषदिक, वैज्ञानिक व योग की शिक्षा के साथ साथ गणित व सदाचार की शिक्षा तथा पूर्वज आदर्श नारियों का भी ज्ञान कराना चाहिए।
समस्त भारत देश की माताओं, बहनों व पुत्रियों को नमन करता हुआ में आज अपनी लेखनी यहीं शांत कर रहा हूँ।
Part 2
देवियाँ, देवकन्याएँ, स्त्रियां या नारियां तीन प्रकार की पायी जाती हैं। एक वे जो माता, पिता तथा गुरु के आदेशों व मन के अनुकूल ही अपने कर्म किया करती हैं। दूसरी जो इनके आदेशों व सलाह के द्वारा अपना जीवन बनाती हैं। तीसरे प्रकार की नारियां माता, पिता, गुरु, विद्वान व सदाचारी तथा सत्यवादी अतिथि या पति (यदि विवाहित हैं तो ) इन पांच के ही आदेश, मनोभाव आदि के द्वारा न चलकर स्वेच्छा पूर्वक अपने मन के आदेशों के ही अनुकूल अपना जीवन बनाती हैं। ये देवकन्याएँ स्वेच्छाचारिणी होती हैं।
परन्तु ये तीनो ही प्रकार की देवियाँ समाज, परिवार व कुटुम्बियों की नीव हैं तथा सत्कारणीय होती हैं तथा समाज व राष्ट्र की महान धरोहर तथा राष्ट्र के लिए लाभदायक होती हैं। ये तीनों ही देवी की साक्षात प्रतिमा हैं। अतः सम्मान, रक्षा, प्रतिष्ठा व कर्मानुसार राज्य में अधिकार प्राप्त करने योग्य होती हैं। इन सभी प्रकार की स्त्रियों की सुरक्षा करना हमारे देश भारत का कर्त्तव्य है। अतः हमारे देश में नारी सुरक्षा की गारंटी हेतु क़ानून, विधि संहिता में होना चाहिए जिसको हम 'Law of Protection of Female' नाम दे सकते हैं।
इस क़ानून में सभी नारी जाति के कल्याण हेतु व्यवस्था होनी चाहिए जिससे भ्रूण हत्या, बालिका शिक्षा, विज्ञान की पढ़ाई, आदर्श वैदिक कन्याओं व बहनों के चरित्र का पाठ, नौकरी, विवाह, योग तथा आध्यात्मिक विज्ञान आदि से सम्बंधित गारंटी सरकार उनको दे। तथा गाली गलौंच, लूट, अपहरण, बेइज़्ज़ती, हत्या तथा बलात्कार आदि से सुरक्षित रहने की गारंटी उनको मिले।
आपका अपना
अनुभव शर्मा आर्य
१/२/२०१५ को
आजकल नारियों को डांस करना कोई कल्चरल एक्टिविटी नहीं और न ही कोई ये संस्कृति के लक्षण हैं। यह तो मात्र नारी जीवन के साथ एक घिनौना मज़ाक है।
पूर्व नारी माता मदालसा ऐसी हुयी थीं जिन्होंने मात्र पांच संतानों में से प्रारम्भ के तीन ५ वर्ष की छोटी आयु में ही सन्यासी व तपस्वी बना दिए थे जो ऋषि दालभ्य, प्रव्हाण व शिलक नाम से प्रसिद्द हुए थे। क्योंकि ये रानी थीं अतः अपने राजा पति के अनुरोध पर पाँचवाँ पुत्र राजा के रूप में उत्पन्न किया जिसने बहुत लम्बी अवधि तक राज्य भोगा तथा अंत में वैरागी हो संन्यास भी ले लिया। ऐसी थीं माता मदालसा।
हमारी पुत्रियों के आदर्श हेमा मालिनी, श्री देवी, जूही चावला या करिश्मा कपूर न होकर अपनी पूर्वज नारियां होनी चाहिएं। यहीं हमारा धर्म है और ये ही संस्कृति। प्रत्येक नारी को वैदिक, औपनिषदिक, वैज्ञानिक व योग की शिक्षा के साथ साथ गणित व सदाचार की शिक्षा तथा पूर्वज आदर्श नारियों का भी ज्ञान कराना चाहिए।
समस्त भारत देश की माताओं, बहनों व पुत्रियों को नमन करता हुआ में आज अपनी लेखनी यहीं शांत कर रहा हूँ।
Part 2
देवियाँ, देवकन्याएँ, स्त्रियां या नारियां तीन प्रकार की पायी जाती हैं। एक वे जो माता, पिता तथा गुरु के आदेशों व मन के अनुकूल ही अपने कर्म किया करती हैं। दूसरी जो इनके आदेशों व सलाह के द्वारा अपना जीवन बनाती हैं। तीसरे प्रकार की नारियां माता, पिता, गुरु, विद्वान व सदाचारी तथा सत्यवादी अतिथि या पति (यदि विवाहित हैं तो ) इन पांच के ही आदेश, मनोभाव आदि के द्वारा न चलकर स्वेच्छा पूर्वक अपने मन के आदेशों के ही अनुकूल अपना जीवन बनाती हैं। ये देवकन्याएँ स्वेच्छाचारिणी होती हैं।
परन्तु ये तीनो ही प्रकार की देवियाँ समाज, परिवार व कुटुम्बियों की नीव हैं तथा सत्कारणीय होती हैं तथा समाज व राष्ट्र की महान धरोहर तथा राष्ट्र के लिए लाभदायक होती हैं। ये तीनों ही देवी की साक्षात प्रतिमा हैं। अतः सम्मान, रक्षा, प्रतिष्ठा व कर्मानुसार राज्य में अधिकार प्राप्त करने योग्य होती हैं। इन सभी प्रकार की स्त्रियों की सुरक्षा करना हमारे देश भारत का कर्त्तव्य है। अतः हमारे देश में नारी सुरक्षा की गारंटी हेतु क़ानून, विधि संहिता में होना चाहिए जिसको हम 'Law of Protection of Female' नाम दे सकते हैं।
इस क़ानून में सभी नारी जाति के कल्याण हेतु व्यवस्था होनी चाहिए जिससे भ्रूण हत्या, बालिका शिक्षा, विज्ञान की पढ़ाई, आदर्श वैदिक कन्याओं व बहनों के चरित्र का पाठ, नौकरी, विवाह, योग तथा आध्यात्मिक विज्ञान आदि से सम्बंधित गारंटी सरकार उनको दे। तथा गाली गलौंच, लूट, अपहरण, बेइज़्ज़ती, हत्या तथा बलात्कार आदि से सुरक्षित रहने की गारंटी उनको मिले।
आपका अपना
अनुभव शर्मा आर्य
१/२/२०१५ को
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