सोमवार, 10 मार्च 2014

उसके लिए कोई भक्त अदृश्य नहीं है

परमपिता परमात्मा कहते हैं कि "मेरे लिए कोई भक्त अदृश्य या दूर नहीं है और मैं भी उसके लिए अदृश्य या दूर नहीं हूँ। "
'न मे भक्तः प्रणश्यति'  भगवत गीता में भगवान कृष्ण जी ने परम पिता के दूत के रूप में कहा है। इसलिए यदि हम  परमात्मा के भक्त हो जाते हैं तो वे हमारे लिए उपलब्ध भी हो जाते हैं। परमात्मा के भक्त होने का सुख कहा नहीं जा सकता। जब हम इस संसार के बंधक होते हैं केवल एक ही रास्ता - भक्ति ऐसा है जिससे हमें अतीव आनंद प्राप्त होता है।  यह अति आनंद हम मुक्ति में भी प्राप्त किया करते हैं। 
यदि हम किसी में श्रद्धा या विश्वास रखते हैं तो हमें संदेह कभी नहीं रखना चाहिए जैसा कि कहा भी है-
संदेहात्मा विनश्यति - एक व्यक्ति जो संदेह किया करता है वह नष्ट हो जाता है। 
हमें संदेह नहीं करना चाहिए क्योंकि इस विचारधारा का प्रभाव जब दूसरे पर पड़ता है तो बदले में हमे नकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है।  इसलिए हमें अगर अपने को उन्नत बनाना है तो पहले ही खोज लेने के बाद हमें श्रद्धा बनाये रखनी चाहिए और संदेह को कोई स्थान नहीं देना चाहिए। 
परमात्मा, व्यक्तियों व वस्तुओं के बारे में हमें पहले ही खोज करलेनी चाहिए और उसके बाद किसी प्रकार का संदेह मन में नहीं आने देना चाहिए।  केवल तभी हम अपनी श्रद्धा व आवश्यकताओं में सफल हो पाएंगे। 
अब मैं  परमात्मा से वार्तालाप का एक उदाहरण पोस्ट "Kalp Vriksha " से ले रहा हूँ -

जब परमात्मा ने यह ब्रह्माण्ड बनाया सभी आत्माओं और देवताओं ने कहा , "हे प्रभु! आपने ये जगत किस प्रकार का बनाया है?" तो परमात्मा ने उत्तर दिया , "ये संसार मैंने कल्पवृक्ष की भांति बनाया है। जो भी कल्पना तुम आज  करोगे वह ही भविष्य में  होगा और वहीं वस्तु तुम्हें प्राप्त हो जायेगी।  लेकिन कल्पना यथार्थ होनी चाहिए तथा संकल्प महान, सदबुद्धि से पूर्ण होना चाहिए। ताकि जिससे मानव जीवन पवित्र बन जाए। "

सम्बंधित पोस्ट : कल्प वृक्ष (अंग्रेजी में )


आपका अपना 
भवानंद आर्य

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