गुरुवार, 5 जनवरी 2017

महाभारत काल के बाद का आर्यावर्त : भाग ४

महाभारत काल के बाद का आर्यावर्त : भाग - ४



ईसा मसीह
आगे चल करके यहाँ बहुत से अन्य मत आ गये। देखो ईसामसीह नाम के आ कूदे। वह द्वितीय राष्ट्र में उत्पन्न हुए थे। उन्होंने यहाँ आ करके काशी स्थान में आयुर्वेद की शिक्षा को पान किया। आयुर्वेद का स्वाध्याय करके इस विद्या को जाना कि नेत्रों की दृष्टि से मानव के शरीर विज्ञान को जाना जाता है। काशी में एक विरंडी नाम के आचार्य थे, उनसे उन्होंने आयुर्वेद की शिक्षा पाई और उसमें महान् बन करके इस राष्ट्र से अपने राष्ट्र को चले गए। वहाँ जाकर उन्होंने अपनी विद्या का प्रचार किया और उन्होंने एक निराला मत उत्पन्न किया। उन्होंने अच्छी प्रकार तो समझा नहीं और जाना नहीं परंतु इसी में ही उनका एक महान् मत बन गया। उनके द्वारा क्या विशेषता थी? आयुर्वेद की विद्या को जानने से और योगाभ्यास करने से नेत्रों की दृष्टि द्वारा मानव के अवगुणों को शान्त करने की शक्ति आ जाती है। जब उसमें यह सत्ता आ गई तो वह बड़ा तपस्वी बना और तपस्वी बन करके उन्होंने वहाँ के कुछ व्यक्तिियों का उद्धार किया। परंतु उसको भी इस संसार ने समापत कर दिया। उन्होंने भी एक समाज बनाया और उस समाज में यथार्थ शिक्षा दे करके ये भी चले गये। आगे उनके अनुयाइयों ने उनकी शिक्षा का दुरुपयोग करना प्रारंभ कर दिया, भाइयों बहनों! उन्हें असली रूप में न छोड़ा।

महात्मा ईसा न भी अपनी संस्कृति का अपने चरित्र बल का प्रसार किया। महात्मा ईसा ने भी इस भारत भूमि में शिक्षा पाने के पश्चात् अपने धर्म का प्रसार किया, परन्तु धर्म क्या है यह उन्होंने नहीं विचारा। हम यह उच्चारण कर सकते हैं कि आयुर्वेदाचार्य के नाते उनका पांडित्य बहुत उँचा और पवित्र था। उनका ह्रदय बड़ा निर्मल और स्वच्छ था।

महात्मा ईसा को जब यहुदी नष्ट करने लगे, परन्तु उन्होंने मृत्यु के मुख में जाते हुए कहा कि मुझे नष्ट कर सकते हो, परंतु मेरी जो यथार्थ क्रांति, आत्म विश्वास है उसे छेदन नहीं कर सकते।
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अगली कड़ी में - महात्मा मुहम्मद, गोस्वामी तुलसीदास, महात्मा नानक व महर्षि दयानन्द


आपका अपना 
ब्रह्मचारी अनुभव शर्मा

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