रविवार, 1 जनवरी 2017

माई आश्रम भाग-2

एक रहस्यमयी पेशकश 
भारत की एक विरासत - माई आश्रम, इस्माईलपुर, बिजनौर 
भाग-2
 
 
 
लेखकः डा0 नेतराम सिंह
महात्मा गोपालदास जी ने सपने में ही वचन दिया और एक गाय का सींग इस स्थान पर गाढ़ गए। भ्रमण के 6 माह बाद अपने आश्रम झज्जार (हरियाणा) पहुँचे। एक दरोगा जिसका नाम नरसिंह था वह हरियाणा पुलिस में तैनात था। एक हत्या के केस में रिश्वत खा गया व परेशान रहने लगा। उसने यह गाथा सुनी और कुल मिला कर बात यह कि माई की जीवंत गाथा पढ़कर वैराग्य हो गया। वह गुरु गोपाल दास जी की शरण में पहुँच गया। उनका प्रवचन सुनकर वह उन से बहुत प्रभावित हुआ तथा नौकरी से त्यागपत्र देकर गोपाल दास जी का शिष्य बन गया। जब नरसिंह गोपाल दास जी का शिष्य बन गया तब गुरुदीक्षा देने के बाद गोपालदास जी नरसिंह को इसी (माई आश्रम) में लाये। गाय का सींग दिखा कर स्थान बताया और कहा कि आपको ही यहाँ सेवा करनी है, प्रभु भजन करना है। नरसिंह दास जी ने गुरु वचनों को मान इसी स्थान पर तपो भूमि समझकर तप किया। भरी दोपहर को नंगे पैर धूप में रेत में पड़ा रहना। जो कुआँ हजारों वर्ष का था (महाभारत काल का) उसे उजागर कर फिर से कुआँ बनवाया और पियाऊ बनवायी और पशुओं, चरवाहों व ग्वालों को पानी पिलाते थे। इस प्रकार 20 वर्ष तक यहाँ सेवा की। मंदिर, सुरंग व अंडरग्राउंड बिल्डिंग आदि भी बनवाए। परंतु बड़े दुःख के साथ लिखना पड़ रहा है कि झज्जर में गऊ स्थान पर उनके आसपास बिराल, नसीरपुर, चहला से मदारीपुर, कुलचाना आदि के शिष्य उनके साथ गये। वे बताते थे कि उनके गुरुभाई जब नरसिंह आश्रम झज्जार में बैठे विचार कर रहे थे तभी नरसिंह दास जी ने बताया कि मेरा अन्तिम समय आ गया है। आप सब चले जाओ। देख अपनी भाले तलवार लिए लोग आ रहे हैं। उन्होंने ताबड़ तोड़ महात्मा जी पर वार किया और उनके टुकड़े टुकड़े कर दिये। उनके शिष्य भाग गये।
अन्य महात्मा लटधारी नारायण दास जी महाराज भी यहाँ रहे (२०० साल पहले) जिन्होंने मृत्यु पर्यन्त यहाँ तप व सेवा की। तत्पश्चात गऊ दस जी महाराज व उनके बाद एक अजनबी महात्मा जोधानाथ भी आये। उन्होंने भी यहाँ बहुत सेवा की। पेड़ों को पानी देना एवं पंचवटी का नदी शिखर आदि बनवाये। उन्होंने नूरपुर(बिजनौर) चौराहे पर शिव मंदिर की नींव रख निर्माण कराया इसी समय रहस्यमयी दुर्घटना में उनकी मृत्यू हो गई। उसके बाद मध्यप्रदेश से सुरेशगिरी जी महाराज आये जो बिल्कुल सीधे साधे थे। उन्हें भविष्यवाणी आदि का ज्ञान नहीं था। उन्होंने कोई विशेष वेशभूषा भी नहीं धारण की हुई थी। बिल्कुल साधारण व्यक्ति थे। क्षेत्र वर्तमान चहला निवासी डा0 नेतराम सिंह के बड़े प्रेमी रहे। अर्थात् लेखक को उन के साथ समय बिताने का काफी मौका मिला। उन्होंने चौ0 चमन सिंह, विजय सिंह, राज बाबू, मंत्री जी, डा0 नेतराम सिंह, मा0 बालकरन सिंह आदि के सहयोग से एक कमरा बनवाया उसी में विश्राम करते व वह साधारण कमरा ही उनका मंदिर था। मंदिर की सफाई, पेड़-पौधों की सेवा आदि बड़ा कर्म करते थे। 27 वर्षों तक बड़ी सेवा की। उन्होंने अपनी मृत्यु को 24 घंटे पहले बता दिया था। उनकी मृत्यु का समाचार सुनकर क्षेत्र में शोक की लहर दौड़ गयी बड़ी संख्या में श्रद्धालु लोग आये। और चर्चा की कि इस वन ने एक महात्मा खो दिया।

उनके बाद नरसिंह जी के शिष्य स्वामी धर्मपाल जी, निवासी मीरापुर ने एक वर्ष सेवा की। फिर चन्द्र दास  जी महाराज भी यहाँ रहे। आज एक सरभंगी महात्मा सत्यपाल उर्फ़ बंजारागिरि
जी,  चहला निवासी रहते व सफाई, अर्चना पूजा करते हैं।

कहा जाता है कि यहाँ जो भी मुराद करते हैं वह पूरी हुआ करती है। इस आश्रम से अपनी श्रद्धा से सेवा के द्वारा एक मन की मुराद पूरी हुई जो कि लेखक के स्वयं के पारिवारिक अनुभव पर आधारित भी है। एक बार नोरंग सिंह डा0 नेतराम सिंह(लेखक) के पिता जी अपने पुत्र की गम्भीर हालत में बीमार पुत्र को तांगे से ले जा रहे थे। उसकी हालत बहुत गंभीर थी, और बचने की कोई आशा न थी। इस स्थान पर जब आश्रम इस प्रकार नहीं था। उन्हें एक महात्मा अनायास मिले जिनके शरीर पर वस्त्र भी नहीं थे। बालों से ही सारा शरीर ढका हुआ था। श्री नारंग सिंह ने अपने लाड़ले को उनके चरणों में डाल दिया। माताजी तो देखकर डर गयीं। उन्होंने पुत्र के सिर पर हाथ फेर दिया और ओझल हो गए। अतः फिर वे उसे चाँदपुर को डॉक्टर तक लेकर नहीं गए। क्योंकि वे बहुत गरीब थे। अतः अपने प्रभु पर ही विश्वास कर लिया। देखा तो पुत्र खेलने लगा। और कुछ दिनों में पूर्णतया स्वस्थ हो गया। उस समय पुत्र की आयु 5 वर्ष थी। उनके परिवार वाले आज भी लेखक पर उन्हीं का आशीर्वाद मानते हैं।
 
इस्माईलपुर निवासी भाइयों ने चारों ओर तार सेवा करायी और उनकी मनोकामनाएँ भी पूरी हुईं। उसी समय 2015-2016 में बहुत बड़ा दरवाजा भी बनवाया गया। हजारों की तादाद में दम्पत्तियों के संतान पैदा हुईं जिनके संतान नहीं हुआ करती थी वे लोग आज भी माता व संतान को साथ लेकर यहाँ झंडियाँ चढ़वाया करते हैं। हजारों की संख्या में यहाँ भक्त गण हर सोमवार को आ कर माई के लिए प्रसाद चढ़ाते देखे जाते हैं। ऐसी मान्यता है कि माई आश्रम से अभी तक कोई भी खाली नहीं गया है जिसने जो भी मन्नत माँगी है वह पूर्ण हुई है।


अभी हाल ही में इस जगह का प्रस्ताव, आचार्यकुलम गुरुकुल इस स्थान पर खुलवाने के लिए इस्माइलपुर ग्रामवासियों के द्वारा बाबा रामदेव जी के आश्रम को भेजा गया है। उम्मीद है कि निकट भविष्य में ही यहाँ प्राचीन माई के गर्भ गृह के साथ-साथ आचार्यकुलम गुरुकुलम की नींव भी रखी जायेगी। जहाँ पर दूर दूर के छात्र छात्राएं वैदिक पद्यति से सी0बी0एस0सी0 बोर्ड की आधुनिकतम  शिक्षा लेने में समर्थ होंगे।


आपका अपना 
ब्रह्मचारी अनुभव शर्मा

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