रविवार, 27 नवंबर 2016

गीता सार

कर्म शक्ति से ऋषियों ने अपना जनम संवारा है।
मानव चोला मिला तुम्हें कोई गुण तुम्हारा है।


अज्ञानता का जग में फैला अँधेरा।
मोह माया ने मानव को घेरा।
स्वयं को भी न पहचान आया।
परमानन्द का न देखा सवेरा।

अपना अपना रट ये भ्रम तुम्हारा है।
कर्म शक्ति से ऋषियों ने अपना जनम संवारा है।

यहाँ जो होता है अच्छा ही होता है।
वैसा ही फल पाता है जो जैसा बोता है।
अपना किसे समझता है तू किसको रोता है।
प्रभु इच्छा से जीव यहाँ आता है और जाता है।
जिसको तुम मृत्यु कहते हो वह जन्म दुबारा है।
कर्म शक्ति से ऋषियों ने अपना जनम संवारा है।


तू न लाया साथ कुछ जग में न कुछ तूने दिया।
जो दिया उसने दिया जो लिया उससे लिया।
मिथ्या राम भय सिवा तूने अभागे क्या किया।
कुछ समय भी ध्यान उस परमात्मा को न किया।
जो हर समय हर हाल में तेरा सहारा है।
कर्म शक्ति से ऋषियों ने अपना जनम संवारा है।

इस नश्वर संसार में है कर्म की प्रधानता।
कर्म पूजा है तेरी, कर्म तेरी साधना।
अच्छे कर्मों से ही होगी शुद्ध तेरी आत्मा।
वह दयामय सब करेंगे पूरी तेरी कामना।
सन्मार्ग से प्रेरित प्राणी प्रभु को प्यारा है।
कर्म शक्ति से ऋषियों ने अपना जनम संवारा है।

नर में नारायण छुपा हुआ यह जान अपने आप में।
परम शक्ति का पुत्र ही तू जान अपने आप को।
काया माया में भरमाना छोड़ दे संताप को।
जिसका है उसको ही अर्पण कर दे अपने आप को।
भव सागर से तरने का ये ही एक सहारा है।
कर्म शक्ति से ऋषियों ने अपना जनम संवारा है।

सृष्टि में होता परिवर्तन दिन रात देखा है।
मेरा-मेरा करता है जो ये तो तेरा धोखा है।
आज जो तेरा अपना है कल ग़ैर का होता है।

तन मिट्टी बन जायेगा जिसको मल -मल धोता है।
अब तो ये स्पष्ट हुवा कुछ नहीं हमारा है।
ये संसार प्रभु का है और प्रभु हमारा है।
कर्म शक्ति से ऋषियों ने अपना जनम संवारा है।

मैं इस बड़े महान परिपूर्ण पुरुष को आदित्य जैसे स्वयंप्रकाश स्वरुप वाला अज्ञान व अन्धकार से परे मानता हूँ। उसको ही जानकर मनुष्य मृत्यु का अतिक्रमण करता है। अभीष्ट तक पहुँचने के लिए और कोई मार्ग नहीं है।

द्वारा :
विश्वपाल सिंह त्यागी
भा०ज० पा नेता
ग्राम नायक नंगला
8650209774




आपका
ब्रह्मचारी अनुभव शर्मा

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