बुधवार, 21 दिसंबर 2011

एक मंत्र

ॐ स नो बन्धुर्जनिता स विधाता धामानि वेद भुवनानि विश्वा.
यत्र देवा अमृत मानशानास्त्रितीये धामन्न ध्यै रयंत..

जो परमात्मा अपने भ्राता के समान सुखदायक अपने समस्त कार्यों का पूर्ण करने वाला समस्त नाम स्थान व जन्मों को जानता है जिस मोक्ष स्वरुप परमात्मा में मोक्ष को प्राप्त हो के विद्वान् लोग स्वेच्छा पूर्वक विचरते हैं वह परमात्मा अपना न्याय धीश, गुरु व राजा है. ऐसे परमात्मा की शुभ कर्मों के द्वारा भक्ति अर्थात उसकी आज्ञा पालन में हम लोक सदैव तत्पर रहें.

आपका
अनुभव शर्मा 

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