सोचने की बात यह है कि ये देश दुनियां के सबसे संपन्न देश माने जाते हैं. और ये ही महाकर्ज में डूबे हैं. और ये कर्ज का पैसा थोडा नहीं है. तो आखिर इन्हें यह कर्ज दे कोंन रहा है? जबकि विश्व के सभी देश भी कर्ज में ही डूबे हुए हैं. तो क्या ये असीम कर्ज का पैसा चाँद या मंगल से आया है? दुनिया के शीर्ष अर्थ शास्त्रियों व संस्थाओं की बात मानें तो ये कर्ज का पैसा काले धन का ही है. और पूरी दुनिया में जितना भी कला धन है उसमें आधा तो भारत का ही है. एक और मजे की बात यह है के इनमें शीर्ष १० देश भी तीन महीने में लगभग ११५ लाख करोड़ रुपये ओर कर्ज ले लेते हैं. यूरो एरिया भी तीन महीने में ५७ लाख करोड़ से अधिक का कर्ज ले लेटा है. दूसरे अन्य देशों का भी कर्ज हर महीने बढ़ ही रहा है. आखिर ये पैसा आ कहाँ से रहा है? क्या आसमान से टपक रहा है? इसकी गहराई में जाने से यह पता चलता है कि हमारे देश के किसान, मजदूर, माध्यम वर्ग के व्यापारी, शिक्षक, सैनिकों आदि ने जो पैसा मेहनत करके कमाया ओर टेक्स के रूप में सरकार को दिया उसी हमारी खून पसीने की कमाई को इन भ्रष्टाचारियों ने लूटकर विदेशों में भेज दिया. ओर इसी कारन हमारे देश का ८४ करोड़ लोगों का एक बड़ा वर्ग गरीबी रेखा के निचे जीवन यापन करने को मजबूर है. भूखे , फटे हाल, बेघर व बेसहारा इन लोगों के बच्चों की तो ओर भी दयनीय स्थिती है. पर आश्चर्य की बात यह है कि हमारी मेहनत की कमाई से विदेशी लोग अय्याशी कर रहे हैं. ओर हमारे ऊपर ही शासन कर रहे हैं. यह बात प्रत्येक भारत वासी को बड़ी गंभीरता से सोचनी होगी कि आखिर ये सभी अमीर देश इतना कर्ज कहाँ से ला रहे हैं? कहीं ये हमारे खून पसीने की गाढ़ी कमाई का पैसा तो नहीं? और यदि है तो इसको वापस कैसे लाया जाये? या यूँ ही अन्याय को सहन कर बच्चों सहित भूखे मर जाएँ?
उपरोक्त आंकड़ों से स्पष्ट है कि विश्व के १५ देशों ने २०११ के पहले तीन महीने की अवधि में १२४ लाख करोड़ का नया विदेशी कर्ज लिया है. इस प्रकार ये देश एक वर्ष की अवधि में लगभग ५०० लाख करोड़ का नया विदेशी कर्ज ले लेते हैं. विश्व के शीर्ष अर्थशास्त्री भी इस तथ्य को प्रमाणित करते हैं कि अमेरिका जैसे विकसित देशों द्वारा लिया गया विदेशी कर्ज वास्तव में भारत जैसे प्राकृतिक संसाधन संपन्न देशों का ही धन है. जो काले धन के रूप में विदेशी कर्ज के तौर पर देश से बाहर चला गया है. विदेशी ऋण के रूप में देश से बाहर गया यह काला धन स्थायी रूप से किसी एक देश में नहीं ठहरता बल्कि अगले नए देश में गतिशील रहता है. भारत का स्विटज़रलैंड के बैंकों में जमा काला धन अब दुबई, सिंगापुर व मोरिशस आदि देशों में जा रहा है. यह भी कम रोचक बात नहीं है कि कुल मिलकर विश्व के सभी देशों की जी0 डी0 पी0 (सकल घरेलु उत्पाद) का जितना आकार है लगभग उतना ही विश्व के सभी देशों पर विदेशी ऋण है. वर्तमान में विश्व के सभी देशों की जी0 डी0 पी० लगभग ६२ ट्रीलियोन डॉलर की हैं. जबकि विश्व के सभी देशों पर कुल मिलाकर लगभग इतना ही बहरी या विदेशी ऋण है.
इस प्रकार लगभग इस ३ हजार लाख करोड़ रुपये में से भारत का ४०० लाख करोड़ से अधिक काला धन तथा देश की आतंरिक व्यवस्था में भी लगभग १०० लाख करोड़ रुपये काला धन विद्यमान है. इससे बड़ी दुखद घटना, आश्चर्य, अन्याय और क्या होगा? की भारत व एशिया के अन्य देशों के काले धन से यूरोप के देश विकास व विलासिता करें तथा भारत व एशिया के लोग भूखे मरें. यह कितनी शर्म, आश्चर्य व अन्याय पूर्ण बात है. यह पाप तुरंत बंद होना चाहिए. भारत में ग़रीबी के कारण भूख व कुपोषण से मरने वालों की संख्या 'ग्लोबल हंटर रिपोर्ट' के अनुसार १ मिनट में १३, एक घंटे में ८८३ तथा एक दिन में २० हज़ार है.
आपका
अनुभव शर्मा
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