बुधवार, 5 जनवरी 2011

भगवान के दर्शन कैसे हों?

योग के द्वारा हम भगवान के दर्शन कर सकते हैं. पहले मुझे शरीर के आठ चक्रों के बारे में कुछ बताना है. पहला मूलाधार नाम का चक्र हमारे शरीर में जननेंद्रिय के समीप होता है. दूसरा नाभि चक्र, नाभि के समीप होता है. तीसरा हृदय चक्र हमारे हृदय के समीप होता है. चौथा चक्र हमारे गले में कंठ चक्र नाम से होता है. पांचवां  चक्र हमारे नाक के स्थान पर नासिका चक्र नाम से होता है. छटा चक्र हमारे मस्तक में आज्ञा चक्र नाम से होता है. सातवां चक्र ब्रह्म रंध्र के नीचे होता है. जो ब्रह्म रंध्र हमारे शरीर में सबसे ऊपर खोपड़ी में स्थित होता है. आठवां चक्र हमारी रीढ़ में स्थित होता है जिसे पुष्प चक्र कहते हैं. हमारे शरीर में नौ रंध्र है जिन्हें हर कोई गिन सकता है.
हमारे शरीर में दस इन्द्रियां होती हैं जो कार्य करती हैं. पांच ज्ञानेन्द्रियाँ और पांच कर्मेन्द्रियाँ. मैं आपको बता रहा हूँ कि वे क्या हैं? पांच ज्ञानेन्द्रियाँ - १. त्वचा जिससे स्पर्श होता है. २. ऑंखें जिससे देखा जाता है. ३. नाक जिससे सूंघते हैं. ४. कान जो सुनते हैं. ५. जीभ जो स्वाद लेती है. अब अगली पांच कर्मेन्द्रियाँ ये हैं - १. हाथ २. पैर ३. मुंह जो खाता  है. ४. उपस्थ ५. गुदा. अब अगर हम योगी बनना चाहते हैं तो हमें अपनी ज्ञान और कर्म इन्द्रियों को संयमित करना होता है. अब मैं आपको अष्टांग योग के बारे में  बताऊंगा - इसमें हमें आठ प्रकार के कार्य पूरे करने होते हैं. पहला यम, फिर नियम, आसान, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधी. यम के बाद नियम आता है. जिसमें ये हिस्से हैं - शौच (सफाई और शुद्धि), संतोष(संतुष्ट रहना), तप (कठिन कार्यों को करना), ईश्वर प्रणिधान (भगवान का चिंतन), स्वाध्याय(अध्ययन). जब हम इन यम और नियमों को पार करते हुए आगे बढ़ते हैं तब हमें व्यायाम, आसान, प्राणायाम, धारणा (लक्ष्य को बंधना), ध्यान (एक लक्ष्य पर मन को बांध लेना) और समाधी(भगवान के साथ एक रस हो जाना) में क्रमशः आगे बढ़ना चाहिए. इस समाधी में हम ऐसी बहुत सी चीज़ें सीख सकते हैं जो कि सामान्य अवस्था में नहीं पता चल सकतीं. 
अब हम अपने प्राण व मन को एकाग्र करने योग्य हो जाते हैं. जिसके द्वारा एक यान बनता है. अब धीरे धीरे इस यान को (जिसमें आत्मा विराजमान है) मूलाधार से ऊपर के चक्रों में ले जाया जाता है. अंत में जब यह यान पुष्प चक्र में पहुँचता है तो हम परम पिता के दर्शन कर लेते हैं.

धन्यवाद
अनुभव शर्मा

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