कुछ ऐसे तथ्य भी होते हैं जो हमारे तर्क से परे होते हैं. और उन्हें खोजने की आवश्यकता होती है. वास्तव में मृत्यु के बारे में हम जैसा सोचते हैं वह उससे भिन्न पदार्थ है.
जैसा हम जानते हैं कि इस संसार में हर किसी के लिए मृत्यु आवश्यक है, हम फिर भी इस बात से भागने कि कोशिश करते हैं. और अपने को काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार में व्यस्त रखते हैं. हम अपनी आने वाली मृत्यु के विषय में नहीं विचारते. यदि हम मृत्यु को विजय करना चाहें तो यह भी संभव है. क्या आप इस तथ्य को जानते हैं? मैं आपको इसके बारे में कुछ बताऊंगा.
वास्तव में वैज्ञानिक और योगियों के लिए मृत्यु भयावह नहीं होती. एक ऋषि ने कहा है कि अज्ञान में मृत्यु और ज्ञान में सदैव जीवन है. यह ज्ञान कुछ कम मात्र में मैं आपको देने का प्रयास करूंगा.
माना एक मानव मरता है. जैसा हम जानते हैं कि शरीर पांच तत्वों से मिलकर बना होता है - जल, वायु, अग्नि, आकाश और पृथ्वी. मृत्यु के बाद भी इन पञ्चतत्वों का शरीर देखा जा सकता है. हम यह नहीं कह सकते कि शरीर मर गया. शरीर नहीं मरा बल्कि इसने कार्य करना बंद कर दिया है. जीव विज्ञान के अनुसार शरीर के सारे अंग वैसे ही दिखाई देते हैं. लेकिन यहाँ पर हमारे विद्वान कहते हैं कि शरीर इसलिए कार्य नहीं कर रहा क्योंकि आत्मा ने इसे छोड़ दिया है. जब हम शरीर के बारे में सोचते हैं तो यह शरीर, भोजन जो इसने लिया था, तथा अन्य सहायक पदार्थ जैसे प्रकाश, ऊष्मा, वायु व जल कि मदद से बना था. और अब वे सारे परमाणु वैसे के वैसे ही शरीर में उपस्थित हैं. और जैसा कि परमाणु सिद्धांत के अनुसार कहा गया है कि परमाणु न तो नष्ट होता है और न ही बनाया जा सकता है, उस आत्मा को छोड़कर सभी परमाणु उपस्थित भी रहते हैं.
अब क्योंकि आत्मा अमर है. क्योंकि यह स्वयं भगवान ने वेद में कहा है. यह शरीर को त्याग कर अन्य स्थान को गमन करती है. लेकिन वह आत्मा भी वह आदमी नहीं रह जाती.
यदि हम आत्मा के अस्तित्व को स्पष्ट रूप से समझते हैं तो हम यह नहीं कह सकते कि वह मर गयी. तो ए पाठकों! मुझे बताओ कि कौन मरा?
वास्तव में इस शरीर को त्यागने के बाद आत्मा उन स्थानों और जन्मों में जाती है जहाँ पर परमात्मा ने निश्चित किया है और यह निश्चय उसी आत्मा के पूर्व कर्मों के अनुसार होता है. उसे किसी दूसरे स्थान पर जाना ही पड़ता है. इसलिए यह मृत्यु स्थान और शरीर का परिवर्तन है. और जब योग के द्वारा, हमें पता चलता है कि हम अपने पूर्व कर्मों के अनुसार जन्म लिया करते हैं तो हमें मृत्यु का भय नहीं रहता.
किसी एक स्थान पर रहने का समय निश्चित होता है और जब समय समाप्त हो जाता है तो आत्मा शरीर को त्याग देती है. इसलिए हमें मृत्यु से नहीं डरना चाहिए. क्योंकि यह हमें समय से पहले नहीं आयेगी. इसलिए हमें अपने अच्छे कार्यों और उपासना आदि निर्भय होकर करनी चाहिए. जैसा कि सरदार भगत सिंह ने किया. वह और बहुत से अन्य लोगों ने अपनी भारत माता की स्वतंत्रता के लिए जीवन दान देदिया. वह भी इस बात को जानते थे वरना कौन अपना जीवन दूसरों के लिए उत्सर्ग करता है.
हमारी पुस्तकें इस तथ्य की व्याख्या करती हैं. बहुत से तथ्य उपनिषदों में इस विषय में लिखे हैं. और मृत्यु को अज्ञान में बताया गया है. इसलिए चलो अपने सत्य ज्ञान की वृद्धि करे.
हम इन तथ्यों को योग समाधी में भी साक्षात् कर सकते है.
धन्यवाद
अनुभव शर्मा
इस पोस्ट को इंग्लिश में पढ़ें.
जैसा हम जानते हैं कि इस संसार में हर किसी के लिए मृत्यु आवश्यक है, हम फिर भी इस बात से भागने कि कोशिश करते हैं. और अपने को काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार में व्यस्त रखते हैं. हम अपनी आने वाली मृत्यु के विषय में नहीं विचारते. यदि हम मृत्यु को विजय करना चाहें तो यह भी संभव है. क्या आप इस तथ्य को जानते हैं? मैं आपको इसके बारे में कुछ बताऊंगा.
वास्तव में वैज्ञानिक और योगियों के लिए मृत्यु भयावह नहीं होती. एक ऋषि ने कहा है कि अज्ञान में मृत्यु और ज्ञान में सदैव जीवन है. यह ज्ञान कुछ कम मात्र में मैं आपको देने का प्रयास करूंगा.
माना एक मानव मरता है. जैसा हम जानते हैं कि शरीर पांच तत्वों से मिलकर बना होता है - जल, वायु, अग्नि, आकाश और पृथ्वी. मृत्यु के बाद भी इन पञ्चतत्वों का शरीर देखा जा सकता है. हम यह नहीं कह सकते कि शरीर मर गया. शरीर नहीं मरा बल्कि इसने कार्य करना बंद कर दिया है. जीव विज्ञान के अनुसार शरीर के सारे अंग वैसे ही दिखाई देते हैं. लेकिन यहाँ पर हमारे विद्वान कहते हैं कि शरीर इसलिए कार्य नहीं कर रहा क्योंकि आत्मा ने इसे छोड़ दिया है. जब हम शरीर के बारे में सोचते हैं तो यह शरीर, भोजन जो इसने लिया था, तथा अन्य सहायक पदार्थ जैसे प्रकाश, ऊष्मा, वायु व जल कि मदद से बना था. और अब वे सारे परमाणु वैसे के वैसे ही शरीर में उपस्थित हैं. और जैसा कि परमाणु सिद्धांत के अनुसार कहा गया है कि परमाणु न तो नष्ट होता है और न ही बनाया जा सकता है, उस आत्मा को छोड़कर सभी परमाणु उपस्थित भी रहते हैं.
अब क्योंकि आत्मा अमर है. क्योंकि यह स्वयं भगवान ने वेद में कहा है. यह शरीर को त्याग कर अन्य स्थान को गमन करती है. लेकिन वह आत्मा भी वह आदमी नहीं रह जाती.
यदि हम आत्मा के अस्तित्व को स्पष्ट रूप से समझते हैं तो हम यह नहीं कह सकते कि वह मर गयी. तो ए पाठकों! मुझे बताओ कि कौन मरा?
वास्तव में इस शरीर को त्यागने के बाद आत्मा उन स्थानों और जन्मों में जाती है जहाँ पर परमात्मा ने निश्चित किया है और यह निश्चय उसी आत्मा के पूर्व कर्मों के अनुसार होता है. उसे किसी दूसरे स्थान पर जाना ही पड़ता है. इसलिए यह मृत्यु स्थान और शरीर का परिवर्तन है. और जब योग के द्वारा, हमें पता चलता है कि हम अपने पूर्व कर्मों के अनुसार जन्म लिया करते हैं तो हमें मृत्यु का भय नहीं रहता.
किसी एक स्थान पर रहने का समय निश्चित होता है और जब समय समाप्त हो जाता है तो आत्मा शरीर को त्याग देती है. इसलिए हमें मृत्यु से नहीं डरना चाहिए. क्योंकि यह हमें समय से पहले नहीं आयेगी. इसलिए हमें अपने अच्छे कार्यों और उपासना आदि निर्भय होकर करनी चाहिए. जैसा कि सरदार भगत सिंह ने किया. वह और बहुत से अन्य लोगों ने अपनी भारत माता की स्वतंत्रता के लिए जीवन दान देदिया. वह भी इस बात को जानते थे वरना कौन अपना जीवन दूसरों के लिए उत्सर्ग करता है.
हमारी पुस्तकें इस तथ्य की व्याख्या करती हैं. बहुत से तथ्य उपनिषदों में इस विषय में लिखे हैं. और मृत्यु को अज्ञान में बताया गया है. इसलिए चलो अपने सत्य ज्ञान की वृद्धि करे.
हम इन तथ्यों को योग समाधी में भी साक्षात् कर सकते है.
धन्यवाद
अनुभव शर्मा
इस पोस्ट को इंग्लिश में पढ़ें.
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