जब नारद मुनि को ब्रह्मचर्य की महत्ता बताई गयी तो उन्होंने पुनः प्रश्न किया "महाराज! मैं यह जानना चाहता हूँ कि ब्रह्मचर्य से बढ़कर भी कोई पदार्थ है?"
अन्न
नारद द्वारा इस प्रकार पूछने पर सनत कुमार ने कहा, "हे नारद! अन्न ब्रह्मचर्य से बढ़कर है. अन्न और इस वनस्पति जगत की याचना करो. अन्न हमें ओज और ब्रह्मचर्य प्रदान करता है. अन्न हमारे लिए अमूल्य पदार्थ है. सदा अन्न की याचना करनी चाहिए.
नारद मुनि ने कहा, "क्या अन्न ही सबसे ऊँचा है?"
कामधेनु(पृथ्वी माता)
महर्षि सनत कुमार बोले, "नहीं नारद! पृथ्वी अन्न से भी बड़ी है. पृथ्वी की याचना करो. वह हमारी माता है. हमारी दो प्रकार की माताएं होती हैं. एक तो भौतिक माता जो हमारी जननी है. और दूसरी पृथ्वी माता है. (जो हमें गर्भाशय से मृत्यु पर्यंत पालती है) जब हम भौतिक माता के गर्भाशय से पृथक होते हैं, हम पृथ्वी माता के गर्भाशय में प्रविष्ट हो जाते हैं. जिस प्रकार माता के गर्भ में हम भोजन प्राप्त करते हैं और लोरियों द्वारा पोषण प्राप्त करते हैं, हम विभिन्न वनस्पतियों दे द्वारा माता पृथ्वी के गर्भ में भोजन प्राप्त करते हैं. वह हमारा पालन करती है. उसे धेनु कहते हैं(कामधेनु एक ऐसी गाय है जो ऋषि वशिष्ठ से सम्बंधित थी और सम्पूर्ण कामना पूर्ण कर देती थी.) इस पृथ्वी को अन्य बहुत से नामों से पुकारा गया है. हे नारद! यह पृथ्वी हमारी माता है. हम इसके गर्भ में रहते हैं. हमें पृथ्वी की याचना करनी चाहिए. हमें उसे वैज्ञानिक खोजों के द्वारा जानना चाहिए. यह पृथ्वी इतनी भोली है कि यदि कोई वैज्ञानिक बनना चाहता है तो इसके लिए वैज्ञानिक बनना संभव है. यह अध्यात्मिक वैज्ञानिक को शांति प्रदान करती है. और भौतिक वैज्ञानिक को ज्ञान. हे माता पृथ्वी! तुम निश्चित ही कामधेनु जो. तुम हमारी इच्छाओं को पूर्ण करती हो. तुम देवी हो. वेदों ने तुम्हें इस नाम से पुकारा है.
जो लोग पृथ्वी के गर्भ से रत्नों को प्राप्त करना चाहते हैं, उन्हें वह रत्न प्रदान करती है. जिस महान पदार्थ की मानव खोज करता है वह उसे पा लेता है. हे माता पृथ्वी! हम विद्युत् उर्जा की खोज करते हैं. तुम हमें यह देने में बहुत उदार हो. हम एक अनुशासित समाज के बारे में विचारते हैं तुम हमें पवित्र राष्ट्र प्रदान कर देती हो.
हे पृथ्वी! हम निश्चय आप के गर्भ में हैं. अपनी जननी माँ के गर्भ से हम आपके गर्भ में प्रविष्ट हो जाते हैं. जहाँ हम इस महान संसार सागर को पवित्र कर्म करते हुए पार किया करते हैं.
पृथ्वी के बारे में ऐसा सुनने के बाद नारद मुनि ने सनत कुमार से पूछा, " भगवन ! में यह जानना चाहता हूँ कि पृथ्वी से बड़ा भी कुछ है?"
अग्नि तत्व
सनत कुमार ने उत्तर दिया, "पृथ्वी से बड़ा यह अग्नि तत्व है. जो कि सारे ब्रह्माण्ड को चला रहा है. जिसने सारे कायनात में चेतना का प्रसार कर रखा है. अग्नि तत्व के कारण वर्षा होती है. जिससे हर प्रकार का अन्न पैदा होता है. जब यह समुद्र पर कार्य करती है तो वाष्प बनती है. जिससे बादल बनते हैं. जो वर्षा का कारण होते हैं. वर्षा से वनस्पति जगत उत्पन्न होता है. जिससे हमें ब्रह्मचर्य प्राप्त होता है. जब ब्रह्मचर्य को सुरक्षित और पवित्र बनाया जाता है तो स्मृति तीव्र होती है. जब स्मृति तीव्र होती है तो अंतःकरण पवित्र और शुद्ध होता है. जिससे बुद्धि में पवित्रता आती है. और फिर मन भी पवित्र होता है. जब मन शुद्ध होता है तो वाणी पवित्र बन जाती है. और जब वाणी यथार्थ होती है तो हम इस संसार की जानकारी करने में सक्षम हो जाते हैं.
इसके पश्चात नारद ने पूछा, "भगवन! इस अग्नि तत्व से बड़ा क्या है?"
आकाश(अंतरिक्ष)
सनत कुमार बोले, "हे नारद ! अंतरिक्ष अग्नि से महान है. हम जो भी शब्द उच्चारण करते हैं वह इस अंतरिक्ष में विचरण करते रहते हैं. अंतरिक्ष से इनको लिया जाता है और अपनी बुद्धि के अनुसार इनको ग्रहण किया जाता है. मेधा बुद्धि का सम्बन्ध अंतरिक्ष से होता है. अंतरिक्ष हमारी बुद्धि को बढ़ने वाला है. यह हमारे भीतर जीवन को प्रबल करता है. इसी से वायु को गति मिलती है. इसी में अग्नि भी विद्यमान रहती है.
इस पर नारद मुनि ने पूछा, "भगवन! अंतरिक्ष से बड़ा क्या हो सकता है?"
अम्बर
सनत कुमार बोले, "हे नारद! यह अम्बर अंतरिक्ष से बड़ा है. देखो कितने सारे मंडल जैसे चन्द्र मंडल, सूर्य मंडल, ध्रुव मंडल, सप्तर्षि मंडल, भू, भुवः, स्वः, महः, जनः, तपः और सत्यम मंडल. इसी प्रकार ऐसे मंडल जो आरुणी, अगस्त्य और अचंग आदि नामों से जाने जाते हैं. सभी इस अम्बर के भीतर समाहित हैं. और उसका प्रभाव अपने अपने लोकों में रखते हैं.
नारद मुनि तब बोले, "भगवन! इस अम्बर से ऊँचा क्या है?"
प्राण
सनत कुमार ने कहा, "हे नारद! प्राण अम्बर से ऊँचा है. यह प्राण समस्त जीवों में व्याप्त है. प्राण ही संसार को चला रहा है. यह आत्मा के सानिध्य में गमन करते हैं. ये प्राण सारी प्रकृति में व्याप्त हैं. हे नारद! तुम प्राणों की याचना करो. ये प्राण तुम्हें शांति प्रदान करेंगे.
परमात्मा(सर्वश्रेष्ठ और सर्वोच्च)
प्राणों तक जानने के पश्चात नारद मुनि शांत हो गए और अब वह आत्मिक शांति को प्राप्त होने लगे. तब सनत कुमार बोले, "हे नारद! प्राणों से बड़ा भी एक पदार्थ है और वह सर्वोच्च परमात्मा है. वह ही है जो प्राणों का प्राण है. और जो हमारी आत्मा का प्रेरक है. हे नारद! यदि तुम अध्यात्मिक शांति चाहते हो तो तुम उसकी शरण में जाओ.
नारद मुनि शान्ति को प्राप्त हो गए. और आश्चर्य करने लगे कि उन्होंने कितनी प्रेरणा उस मुनि से प्राप्त की जिन्होंने उन्हें अध्यात्मिक और भौतिक वाद से सम्बंधित इतनी सारी जानकारी दी.
इसलिए प्यारे पाठकों! यह नारद मुनि और सनत कुमार के संवाद का अंत हो गया है. यह संवाद भौतिक और अध्यात्मिक वाद दोनों ही क्षेत्र में बहुत प्रेरणा प्रद है. अगले ब्लॉग पोस्ट में पुनः मिलते हैं.
धन्यवाद
अनुभव शर्मा
इस पोस्ट को इंग्लिश में पढ़ें.
अन्न
नारद द्वारा इस प्रकार पूछने पर सनत कुमार ने कहा, "हे नारद! अन्न ब्रह्मचर्य से बढ़कर है. अन्न और इस वनस्पति जगत की याचना करो. अन्न हमें ओज और ब्रह्मचर्य प्रदान करता है. अन्न हमारे लिए अमूल्य पदार्थ है. सदा अन्न की याचना करनी चाहिए.
नारद मुनि ने कहा, "क्या अन्न ही सबसे ऊँचा है?"
कामधेनु(पृथ्वी माता)
महर्षि सनत कुमार बोले, "नहीं नारद! पृथ्वी अन्न से भी बड़ी है. पृथ्वी की याचना करो. वह हमारी माता है. हमारी दो प्रकार की माताएं होती हैं. एक तो भौतिक माता जो हमारी जननी है. और दूसरी पृथ्वी माता है. (जो हमें गर्भाशय से मृत्यु पर्यंत पालती है) जब हम भौतिक माता के गर्भाशय से पृथक होते हैं, हम पृथ्वी माता के गर्भाशय में प्रविष्ट हो जाते हैं. जिस प्रकार माता के गर्भ में हम भोजन प्राप्त करते हैं और लोरियों द्वारा पोषण प्राप्त करते हैं, हम विभिन्न वनस्पतियों दे द्वारा माता पृथ्वी के गर्भ में भोजन प्राप्त करते हैं. वह हमारा पालन करती है. उसे धेनु कहते हैं(कामधेनु एक ऐसी गाय है जो ऋषि वशिष्ठ से सम्बंधित थी और सम्पूर्ण कामना पूर्ण कर देती थी.) इस पृथ्वी को अन्य बहुत से नामों से पुकारा गया है. हे नारद! यह पृथ्वी हमारी माता है. हम इसके गर्भ में रहते हैं. हमें पृथ्वी की याचना करनी चाहिए. हमें उसे वैज्ञानिक खोजों के द्वारा जानना चाहिए. यह पृथ्वी इतनी भोली है कि यदि कोई वैज्ञानिक बनना चाहता है तो इसके लिए वैज्ञानिक बनना संभव है. यह अध्यात्मिक वैज्ञानिक को शांति प्रदान करती है. और भौतिक वैज्ञानिक को ज्ञान. हे माता पृथ्वी! तुम निश्चित ही कामधेनु जो. तुम हमारी इच्छाओं को पूर्ण करती हो. तुम देवी हो. वेदों ने तुम्हें इस नाम से पुकारा है.
जो लोग पृथ्वी के गर्भ से रत्नों को प्राप्त करना चाहते हैं, उन्हें वह रत्न प्रदान करती है. जिस महान पदार्थ की मानव खोज करता है वह उसे पा लेता है. हे माता पृथ्वी! हम विद्युत् उर्जा की खोज करते हैं. तुम हमें यह देने में बहुत उदार हो. हम एक अनुशासित समाज के बारे में विचारते हैं तुम हमें पवित्र राष्ट्र प्रदान कर देती हो.
हे पृथ्वी! हम निश्चय आप के गर्भ में हैं. अपनी जननी माँ के गर्भ से हम आपके गर्भ में प्रविष्ट हो जाते हैं. जहाँ हम इस महान संसार सागर को पवित्र कर्म करते हुए पार किया करते हैं.
पृथ्वी के बारे में ऐसा सुनने के बाद नारद मुनि ने सनत कुमार से पूछा, " भगवन ! में यह जानना चाहता हूँ कि पृथ्वी से बड़ा भी कुछ है?"
अग्नि तत्व
सनत कुमार ने उत्तर दिया, "पृथ्वी से बड़ा यह अग्नि तत्व है. जो कि सारे ब्रह्माण्ड को चला रहा है. जिसने सारे कायनात में चेतना का प्रसार कर रखा है. अग्नि तत्व के कारण वर्षा होती है. जिससे हर प्रकार का अन्न पैदा होता है. जब यह समुद्र पर कार्य करती है तो वाष्प बनती है. जिससे बादल बनते हैं. जो वर्षा का कारण होते हैं. वर्षा से वनस्पति जगत उत्पन्न होता है. जिससे हमें ब्रह्मचर्य प्राप्त होता है. जब ब्रह्मचर्य को सुरक्षित और पवित्र बनाया जाता है तो स्मृति तीव्र होती है. जब स्मृति तीव्र होती है तो अंतःकरण पवित्र और शुद्ध होता है. जिससे बुद्धि में पवित्रता आती है. और फिर मन भी पवित्र होता है. जब मन शुद्ध होता है तो वाणी पवित्र बन जाती है. और जब वाणी यथार्थ होती है तो हम इस संसार की जानकारी करने में सक्षम हो जाते हैं.
इसके पश्चात नारद ने पूछा, "भगवन! इस अग्नि तत्व से बड़ा क्या है?"
आकाश(अंतरिक्ष)
सनत कुमार बोले, "हे नारद ! अंतरिक्ष अग्नि से महान है. हम जो भी शब्द उच्चारण करते हैं वह इस अंतरिक्ष में विचरण करते रहते हैं. अंतरिक्ष से इनको लिया जाता है और अपनी बुद्धि के अनुसार इनको ग्रहण किया जाता है. मेधा बुद्धि का सम्बन्ध अंतरिक्ष से होता है. अंतरिक्ष हमारी बुद्धि को बढ़ने वाला है. यह हमारे भीतर जीवन को प्रबल करता है. इसी से वायु को गति मिलती है. इसी में अग्नि भी विद्यमान रहती है.
इस पर नारद मुनि ने पूछा, "भगवन! अंतरिक्ष से बड़ा क्या हो सकता है?"
अम्बर
सनत कुमार बोले, "हे नारद! यह अम्बर अंतरिक्ष से बड़ा है. देखो कितने सारे मंडल जैसे चन्द्र मंडल, सूर्य मंडल, ध्रुव मंडल, सप्तर्षि मंडल, भू, भुवः, स्वः, महः, जनः, तपः और सत्यम मंडल. इसी प्रकार ऐसे मंडल जो आरुणी, अगस्त्य और अचंग आदि नामों से जाने जाते हैं. सभी इस अम्बर के भीतर समाहित हैं. और उसका प्रभाव अपने अपने लोकों में रखते हैं.
नारद मुनि तब बोले, "भगवन! इस अम्बर से ऊँचा क्या है?"
प्राण
सनत कुमार ने कहा, "हे नारद! प्राण अम्बर से ऊँचा है. यह प्राण समस्त जीवों में व्याप्त है. प्राण ही संसार को चला रहा है. यह आत्मा के सानिध्य में गमन करते हैं. ये प्राण सारी प्रकृति में व्याप्त हैं. हे नारद! तुम प्राणों की याचना करो. ये प्राण तुम्हें शांति प्रदान करेंगे.
परमात्मा(सर्वश्रेष्ठ और सर्वोच्च)
प्राणों तक जानने के पश्चात नारद मुनि शांत हो गए और अब वह आत्मिक शांति को प्राप्त होने लगे. तब सनत कुमार बोले, "हे नारद! प्राणों से बड़ा भी एक पदार्थ है और वह सर्वोच्च परमात्मा है. वह ही है जो प्राणों का प्राण है. और जो हमारी आत्मा का प्रेरक है. हे नारद! यदि तुम अध्यात्मिक शांति चाहते हो तो तुम उसकी शरण में जाओ.
नारद मुनि शान्ति को प्राप्त हो गए. और आश्चर्य करने लगे कि उन्होंने कितनी प्रेरणा उस मुनि से प्राप्त की जिन्होंने उन्हें अध्यात्मिक और भौतिक वाद से सम्बंधित इतनी सारी जानकारी दी.
इसलिए प्यारे पाठकों! यह नारद मुनि और सनत कुमार के संवाद का अंत हो गया है. यह संवाद भौतिक और अध्यात्मिक वाद दोनों ही क्षेत्र में बहुत प्रेरणा प्रद है. अगले ब्लॉग पोस्ट में पुनः मिलते हैं.
धन्यवाद
अनुभव शर्मा
इस पोस्ट को इंग्लिश में पढ़ें.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें