ओ३म्
ब्र० अनुभव शर्मा
आर्य समाज इस्माइलपुर
यदि आप ईमानदार हैं तो ईमानदारी का सबूत देना भी आवश्यक है वरना देशभक्त व सत्यवादी लोग भी आप  पर शक करने लगते हैं और झूठे लोगों का बोलबाला हो जाता है जो उन लोगों को फिर बड़ा कष्ट दिया करते हैं।  तथ्य है कि संसार में तो सत्य और झूठ साथ साथ चला ही करता है और सत्य को पहचानना सरल नहीं है।  अच्छे अच्छे धोखा का जाते हैं।  परन्तु बिना सत्य को पहचाने कोई यदि किसी पुरुषार्थी के लिए कोई भी दुर्वचन कहता है तो उसके खुद के पुण्य नष्ट हो जाते हैं।  यह हमारे ऋषि मुनि कहते हैं। 
बात आर्य समाज इस्माइलपुर के भवन निर्माण की है।  यह भवन साक्षात परमात्मा की कृपा का फल है। इस कार्य में सबसे अधिक शारीरिक  सहयोग मुझ अनुभव शर्मा का ही रहा है इस बात से शायद कोई अनभिज्ञ नहीं है इस्माइलपुर में।
सौ बात सुनार की और एक लुहार की।  इस भवन को बनाने में राज के रूप में सबसे अधिक काम हरवीर सिंह राज व पप्पू राज ने किया है।  हरवीर का कहना है कि यह आर्यसमाज की कुल बिल्डिंग लगभग 16 -17  लाख की खड़ी है।  मेरी माताजी ने जब हिसाब बताया तो लगभग 10 लाख रुपये से कुछ कम दान आकर इस बिल्डिंग में लगा है।  भला 16 - 17 लाख की बिल्डिंग मात्र लगभग दस लाख में तैयार हो गई।  ऐसा इसलिए क्योंकि मुझे भी यह अधिकार नहीं था कि अगर कोई सामान भवन निर्माण का मंगवाना है और दो हज़ार का खर्च है तो दो हज़ार ही खर्चे के लिए मिला करते थे अधिक नहीं ।  मोटरसाइकिल की नोकिंग और पैट्रोल का खर्च मेरा अपना ही रहता था। 
और भाइयों बहनों दान इकट्ठा करने में समय,  किराये आदि को रुपये में जोड़ा जाए  तो इस दस लाख को इकट्ठा करने में हम लोगों का कितना योगदान व खर्च और रहा होगा यह अंदाज आप लोग खुद लगा लेवें।
सारा हिसाब रसीद नम्बरों के साथ साथ रजिस्टर में मेरी माताजी ने लिखा हुआ है।  सन् 2013 से 2019 तक का सारा दान व खर्च रजिस्टर में है और जिज्ञासु के लिए हर वक़्त उपलब्ध है।  माताजी सदा कहा करती हैं कि जो चाहे उसको ही हिसाब दिखा सकती हूँ।  परंतु जिन्होंने समय समय पर हिसाब देखा है वे मानते हैं कि इस हिसाब में तो एक रुपये की गड़बड़ भी नहीं हो सकती।  अधिकतर सभी खर्चों की रसीद भी चिपकाई हुई हैं।
ऊपर से मेरी माताजी खुद 25000 (पच्चीस हजार) रुपये महीने की पेंशन भी पाती हैं और वे एक ईमानदार सरकारी टीचर रही हैं ।  उन्होंने कोई कभी भी किसी प्रकार का कोई भी घपला किया ही नहीं।  पहली बात तो हम वैदिक संस्कृति व धर्म के हेतु से इस संस्था से जुड़े हैं और भला परमात्मा के लिए दान में आए धन को कोई मूर्ख या गरीबी में त्रस्त व्यक्ति ही अपने लिए खर्च करता है और इन दोनों में से हम हैं ही नहीं। 
पहली बात हिसाब माताजी के हाथ में है जो कि पूर्ण ईमानदारी से खर्चा करवाई हैं।  इसलिए ही 10 लाख लगभग के दान में 16 -17 लाख का भवन तैयार हो गया है।  ऊपर से लगभग 70,000 रुपये खुद माताजी ने भी इस भवन में अपने पेंशन के पैसों से लगाए हैं।
धिक्कार है उनकी अज्ञानता को जो कहते हैं कि तुम सब पैसे खा गए (आर्य समाज को लूट कर खा गए) जबकि सत्य ये है कि नाम और शोहरत के भूखे पदाधिकारी गण हमारी मेहनत का फल और सामाजिक इज़्ज़त दोनों को लूट कर खाना चाहते रहे हैं। 
मेरी मेहनत शारीरिक है व अन्य भी भाइयों की शारीरिक मेहनत इसमें शामिल है। लेकिन हर रविवार के यज्ञ में औसतन लगभग 120 रूपये की  सामग्री व गोले आदि का खर्च अपनी कम्प्यूटर शाप से करता रहा हूँ और कोई दक्षिणा भी नहीं लेता इसीलिए उस जुड़े पैसे से जो यज्ञ में आया करते थे पंडित जी वाले,  18000 रुपये भी इसी भवन निर्माण में लगा दिए गए हैं।  ये दक्षिणा के पैसे महिला यज्ञ साधिका समिति के नाम से महिलाओं पर जमा होते थे और जब ज़रूरत पड़ी तो भवन निर्माण में लगा दिए गए।  समय समय पर डैक, माइक, लाउडस्पीकर, बैटरी, झाड़ू  आदि अनेक कामों से सम्बंधित खर्च भी शामिल कर लें तो यह खर्च भी या तो मैं वहन करता हूँ या यज्ञ की दक्षिणा से खर्च हो जाया करता है।  और हाँ महिला यज्ञ साधिका समिति का पैसा मेरे पास जमा नहीं उस के लिए कोई और ही महिला चुनी जाती हैं।
आर्य समाज के काम से जब भी हम बिजनौर, चांदपुर, और अन्य गाँव में जाते हैं तो कभी पांच रुपये भी आजतक आर्य समाज के कोष से खर्च नहीं किया चाहे वो दोपहर का हो भोजन हो या पानी, चाय आदि। यह सब खर्च हम अपने पर्स से खुद वहन करते हैं।
किसी और के हाथ में यह हिसाब होता तो बीस - पच्चीस लाख इकठ्ठा करके और तब यह भवन 16 -17 लाख का बनाते। तो सभी पाठक गण कृपया बताएं कि सभी धार्मिक संस्थाओं में ऐसा ही हो रहा है कि नहीं।
परन्तु मैं सत्यवादी इंसान हूँ और लगभग २० वर्षों से गायत्री मन्त्र का जप किया करता हूँ और दैनिक यज्ञ भी किया करता था नित्य। परमात्मा का परम भक्त हूँ। और पेशे से कंप्यूटर शॉप का मालिक और एक टीचर हूँ। मैं खुद भी काफी कमा लेता हूँ। मैं क्यों बेईमानी करके धर्म संस्था का ऋणी बन जाऊँ। हम आर्य हैं और कम से कम धर्म का पैसा खाएंगे नहीं अपितु धर्म के लिए हमारा तन, मन और धन है।
जो सत्य था वो बता दिया। आगे पाठकों की इच्छा जो चाहें कमेंट करें क्यूंकि इस विषय में सभी स्वतन्त्र हैं कि कोई क्या विचारे किसी के विषय में /
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः।
आर्य समाज के काम से जब भी हम बिजनौर, चांदपुर, और अन्य गाँव में जाते हैं तो कभी पांच रुपये भी आजतक आर्य समाज के कोष से खर्च नहीं किया चाहे वो दोपहर का हो भोजन हो या पानी, चाय आदि। यह सब खर्च हम अपने पर्स से खुद वहन करते हैं।
किसी और के हाथ में यह हिसाब होता तो बीस - पच्चीस लाख इकठ्ठा करके और तब यह भवन 16 -17 लाख का बनाते। तो सभी पाठक गण कृपया बताएं कि सभी धार्मिक संस्थाओं में ऐसा ही हो रहा है कि नहीं।
परन्तु मैं सत्यवादी इंसान हूँ और लगभग २० वर्षों से गायत्री मन्त्र का जप किया करता हूँ और दैनिक यज्ञ भी किया करता था नित्य। परमात्मा का परम भक्त हूँ। और पेशे से कंप्यूटर शॉप का मालिक और एक टीचर हूँ। मैं खुद भी काफी कमा लेता हूँ। मैं क्यों बेईमानी करके धर्म संस्था का ऋणी बन जाऊँ। हम आर्य हैं और कम से कम धर्म का पैसा खाएंगे नहीं अपितु धर्म के लिए हमारा तन, मन और धन है।
जो सत्य था वो बता दिया। आगे पाठकों की इच्छा जो चाहें कमेंट करें क्यूंकि इस विषय में सभी स्वतन्त्र हैं कि कोई क्या विचारे किसी के विषय में /
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें