एक बौद्ध श्रमण :-
भारत के सनातनी बुद्धिजीवी वर्ग को तीन M से बड़ी नफरत है-
मार्क्स
उत्तर:
यह सनातनी भाइयों को नहीं आप का इशारा कहीं आर्य समाजियों के लिए तो नहीं?
मैक्समूलर एक वेद भाष्य कार संस्कृत का विद्वान हुआ है उसने वेदों की व्याख्या अंड बरंड कर दी, महाभाष्य का उसे ज्ञान न था अतः उसकी व्याख्या हम आर्यों के लिए प्रामाणिक नहीं।
मैकाले की शिक्षा पद्धति भारत को नौकरी करना व बोस के हुकम बजा लाना तो सिखाती है परन्तु चरित्र लेश भी न दे पाई। नए युवक युवती इसी समस्या से त्रस्त हैं व चरित्रवान बन अपने पैरों पर खड़े होने से वंचित हैं।
मार्क्स की विचार धारा तो अच्छी है परन्तु जिस रूस की यह उपज थी वहाँ भी इनके विचारों से रूसी भाई सहमत नहीं तो हमें सहमति क्यों। क्या हमारे देश में विचारकों की कमी रही है कभी - शंकराचार्य, स्वामी दयानन्द, कबीर, महात्मा बुद्ध, नानक, सुभाष चन्द्र बोस, स्वामी रामदेव जी, ब्रह्मचारी कृष्ण दत्त जी जैसे हज़ारों विचारक, समाज सुधारक हमारे यहाँ हुए हैं तो इनकी बातें ही मान हम क्यों चलें।
यह तो वहीं बात हुई कि के पास का Delicious भोजन त्याग कर १०० किमी० दूर भोजन करने जाने का विचारें।
-ब्रह्मचारी अनुभव आर्यन्
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