तीन प्रकार की वाणियाँ होती हैं जो कि कुतर्क से खंडन करने योग्य नहीं हैं-
इडा - स्तुति, प्रशंसा करने वाली
मही - पठन पाठन की प्रेरणा देने वाली
सरस्वती - ज्ञान, विज्ञान प्रकट करने वाली
चार बुद्धियाँ होती हैं-
बुद्धि - साधारण तर्क वितर्क व निर्णयात्मक बुद्धि
मेधा - वैज्ञानिक बुद्धि
ऋतम्भरा - परमात्मा के अस्तित्व से सुगठित बुद्धि
प्रज्ञा - ऋषि मुनियों वाली बुद्धि जो कि आध्यात्मिकवाद व भौतिकवाद तथा सामाजिक ज्ञान सभी से तथा भूत, भविष्यत व वर्तमान के व्यवहारों से भी युक्त होती है।
दस प्राण होते हैं-
प्राण - श्वाँस लेना
अपान - श्वाँस छोड़ना तथा मलों को दूर करना आदि
व्यान - अन्नपानादि भीतर खेंचना, कंठस्थित
उदान - ह्रदयस्थित, मृत्यु समय जन्म जन्मांतरों के संस्कार इसी में प्रवेश कर जाते हैं।
समान - भोजन, वायु आदि का परिसंचरण
देवदत्त - उपपप्राण
धनंजय - उपपप्राण
कूम - उपपप्राण
कृकल - उपपप्राण
नाग - उपपप्राण
चार वेद होते हैं-
ऋग्वेद - ज्ञानकांड - अग्नि ऋषि द्वारा
यजुर्वेद - कर्मकांड - वायु ऋषि द्वारा
सामवेद - उपासना कांड - आदित्य ऋषि द्वारा
अथर्ववेद - विज्ञान कांड - अंगिरा ऋषि द्वारा
आठ चक्र होते हैं-
चक्र स्थान
मूलाधार चक्र - उपस्थ के निकट
नाभि चक्र - नाभि
ह्रदय चक्र - ह्रदय
कंठ चक्र - कंठ
नासिका चक्र - नासिका
आज्ञा चक्र - मस्तक
सहस्रार चक्र - ब्रह्मरंध्र के नीचे
पुष्प चक्र - रीढ़ की हड्डी में
नव द्वार होते हैं-
द्वार द्वारों के ऋषि
दो चक्षु - जमदग्नि, विश्वामित्र
दो नासिका रंध्र - अश्विनी कुमार
दो श्रोत्र - वशिष्ठ, भारद्वाज
एक मुख - अत्रि
उपस्थ - ब्रह्मा
पायु - विष्णु
प्रकृति में तीन गुण होते हैं-
सत्व - ज्ञान प्रेम व आनंद
रज - अनुशासन तथा उत्पत्ति विनाश
तम - अज्ञान
पाँच तत्व होते हैं-
अग्नि - दाह, तेज या प्रकाश
जल - तरलता व शीतलता
वायु - वेग व स्पर्श
पृथ्वी - गंध व गुरुत्व
आकाश - स्थान व शब्द
आपका
ब्रह्मचारी अनुभव आर्यन
इडा - स्तुति, प्रशंसा करने वाली
मही - पठन पाठन की प्रेरणा देने वाली
सरस्वती - ज्ञान, विज्ञान प्रकट करने वाली
चार बुद्धियाँ होती हैं-
बुद्धि - साधारण तर्क वितर्क व निर्णयात्मक बुद्धि
मेधा - वैज्ञानिक बुद्धि
ऋतम्भरा - परमात्मा के अस्तित्व से सुगठित बुद्धि
प्रज्ञा - ऋषि मुनियों वाली बुद्धि जो कि आध्यात्मिकवाद व भौतिकवाद तथा सामाजिक ज्ञान सभी से तथा भूत, भविष्यत व वर्तमान के व्यवहारों से भी युक्त होती है।
दस प्राण होते हैं-
प्राण - श्वाँस लेना
अपान - श्वाँस छोड़ना तथा मलों को दूर करना आदि
व्यान - अन्नपानादि भीतर खेंचना, कंठस्थित
उदान - ह्रदयस्थित, मृत्यु समय जन्म जन्मांतरों के संस्कार इसी में प्रवेश कर जाते हैं।
समान - भोजन, वायु आदि का परिसंचरण
देवदत्त - उपपप्राण
धनंजय - उपपप्राण
कूम - उपपप्राण
कृकल - उपपप्राण
नाग - उपपप्राण
चार वेद होते हैं-
ऋग्वेद - ज्ञानकांड - अग्नि ऋषि द्वारा
यजुर्वेद - कर्मकांड - वायु ऋषि द्वारा
सामवेद - उपासना कांड - आदित्य ऋषि द्वारा
अथर्ववेद - विज्ञान कांड - अंगिरा ऋषि द्वारा
आठ चक्र होते हैं-
चक्र स्थान
मूलाधार चक्र - उपस्थ के निकट
नाभि चक्र - नाभि
ह्रदय चक्र - ह्रदय
कंठ चक्र - कंठ
नासिका चक्र - नासिका
आज्ञा चक्र - मस्तक
सहस्रार चक्र - ब्रह्मरंध्र के नीचे
पुष्प चक्र - रीढ़ की हड्डी में
नव द्वार होते हैं-
द्वार द्वारों के ऋषि
दो चक्षु - जमदग्नि, विश्वामित्र
दो नासिका रंध्र - अश्विनी कुमार
दो श्रोत्र - वशिष्ठ, भारद्वाज
एक मुख - अत्रि
उपस्थ - ब्रह्मा
पायु - विष्णु
प्रकृति में तीन गुण होते हैं-
सत्व - ज्ञान प्रेम व आनंद
रज - अनुशासन तथा उत्पत्ति विनाश
तम - अज्ञान
पाँच तत्व होते हैं-
अग्नि - दाह, तेज या प्रकाश
जल - तरलता व शीतलता
वायु - वेग व स्पर्श
पृथ्वी - गंध व गुरुत्व
आकाश - स्थान व शब्द
आपका
ब्रह्मचारी अनुभव आर्यन
Om
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