जब हम यज्ञ करते हैं तो सामग्री अग्नि निगल लेती है, अग्नि को जल निगल लेता है, जल वायु द्वारा , वायु अंतरिक्ष द्वारा निगली जाती है। और तब यह ब्रह्म में स्थित हो जाता है । परमात्मा हमारे यज्ञ व श्रद्धा को स्वीकार करते हैं जब हम यज्ञ करते हैं । हमें परमात्मा के प्रति व उसकी रचना के प्रति बहुत ही गहरी श्रद्धा होनी चाहिए क्योंकि परमात्मा हमारी अन्तर्निहित भावनाओं का भोजन करते हैं ।
संसार में हम इस बारे में चिंतित रहते हैं कि मृत्यु की मृत्यु क्या है? पूर्व में एक ऋषि द्वारा यह कहा गया है कि ब्रह्म मृत्यु की मृत्यु है । कोई ब्रह्मवेत्ता जो यह जानता है कि ब्रह्म मृत्यु की मृत्यु है वह कभी मृत्यु से नहीं डरता । उसके लिए मृत्यु कुछ नहीं होती । वास्तव में अज्ञान में ही मृत्यु होती है । ज्ञान में सदैव जीवन होता है ।
(विचार पूज्यपाद ब्र 0 कृष्ण दत्त जी के प्रवचनो से लिए गए हैं )
आपका
भवानंद आर्य
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