परमात्मा सदा अदृश्य है,
वह है लेकिन अदृष्ट है ।
कोई भी सूक्ष्मदर्शी आत्मा को ही नहीं देख सकता ,
तो फिर परमात्मा को देखना कैसे सम्भव है?
वह है वायुवत, आकाशवत।
जिसे अनुभव तो हैं कर सकते पर देख नहीं सकते।
जानते उसे हैं समाधिस्थ बुद्धि से।
यही तथ्य है मेरा मत ।
उसकी प्रतिमा बन नहीं सकती ।
न वह मानव रूप में कभी जन्म लेता।
वह अपने समस्त काम पूरे खुद है कर सकता,
जैसे रावण या कंस को मारना,
बिना जन्म लिए या मृत्यु को पाए
क्योंकि वह है सर्वशक्तिमान।
आदरणीय मैं आपको हूँ प्रेम करता।
आप माँ दुर्गा हो, आप माँ काली हो,
आप पिता राम हो, आप पिता कृष्ण हो,
आप पिता शिव हो, आप पिता ब्रह्मा हो।
भगवान कृष्ण , भगवान राम, भगवान् ब्रह्मा, भगवान् शिव,
और मेरे गुरु थे बहुत ही ऊँचे लेकिन,
तुम राम हो क्योंकि हो सर्वव्यापी।
तुम कृष्ण हो क्योंकि हो महायोगी ।
तुम ब्रह्मा हो क्योंकि तुमने है ब्रह्माण्ड बनाया ।
आपका मुख्य निज नाम ॐ है क्योंकि आप हमारे लिए हो करते सब कुछ।
ओ प्यारे पिता मैं आपको हूँ प्रेम करता ।
मैं हूँ लेना चाहता आपके कुछ गुण ।
और मैं प्राप्त कर लूँगा निश्चित
यदि चाहो आप,
वरन कोई भी मेरी मदद नहीं कर सकता
यदि चाहो नहीं आप ।
मेरा है नहीं कोई
क्योंकि आप चाहते हो ऐसा ही ।
परन्तु पृथ्वी मेरी है।
अग्नि मेरी है।
वायु मेरी है।
आकाश मेरा है।
जल मेरा है।
जो मैं माँगूँगा आपसे मिलेगा मुझे , मैं जानता हूँ।
ओ प्यारे पिता!
ओ महानतम कवि! जिसने सबसे बड़ी कविता वेद है बनाया,
मैं भी एक छोटा कवि बनना हूँ चाहता।
मैं जानता हूँ कि आप सब कुछ हैं समझते जो मैं चाहता हूँ!
इसलिए कृपया मुझे वो सब दो,
जो मेरी हैं आवश्यकताएँ।
परन्तु मुझे ऐसा बना देना प्रभु!
कि मुझे अवसर मिले ही नहीं,
कोई बुरा कर्म करने का !
मूल कविता पढ़ें , अंग्रेजी में
आपका
भवानंद आर्य "अनुभव"
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