बुधवार, 19 फ़रवरी 2014

मोह

ॐ 
संसार में पांच तरह की चीज़ें होती हैं काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार जिनकी वजह से हमारा जीवन आसानी से कट जाता है । परन्तु जो इन पांच पर नियंत्रण करता है वह भगवान कृष्ण की तरह महा योगी बन जाता है । यह एक विचित्र अनुभव है जो मैं आप के साथ बाँट रहा हूँ । हम जानते हैं कि विचार व भावनाएं हमारे ह्रदय से बनती हैं । वास्तव में हमारे शरीर में दो स्थानों पर मन होता है ।  एक हृदय में व दूसरा मस्तिष्क में । मन प्रकृति का सबसे सूक्ष्म कण है और यह दस इंद्रियों के बाद ग्यारहवीं इन्द्री माना जाता हैं । यह मानव को दिया एक अनमोल तोहफा है । जब विचारने  से इसमें कम्पन होता है तो तरंगे बनती हैं । जिसके बारे में हम सोचते हैं वे तरंगे उसही की ओर जाती हैं । इसलिए यदि हम किसी के बारे में प्रेम, मोह रखते हैं, वह निश्चित ही उसका प्रभाव महसूस करता है । हमें मस्तिष्क में रखना चाहिए कि यह अमूल्य तोहफा जीवों को परमात्मा के द्वारा, अपनी उदारता के कारण दिया गया होता है। परमात्मा सर्वव्यापी व सर्वज्ञ है परन्तु हम मानव ऐसे नहीं हैं । हमारी क्षमता व स्थान निश्चित है क्योंकि हम एकदेशी हैं । लेकिन इस मन की सहायता  से हम अपने को दूर के लोगों व स्थानों से जोड़ सकते हैं । यहीं वजह है कि इस मन की सहायता से योगी सितारों आदि पर घूमा करते हैं और किसी भी दूर देश की बात का पता तुरंत लगा लेते हैं ।

 अब मैं इस बारे में अपना विचार उदघाटित कर रहा हूँ । पहले कही गयी बातें महापुरुषों के तथ्यों के आधार पर कही गयी हैं । मेरा अपना कथन यह है कि किसी के प्रति प्रेम दूसरे द्वारा भी महसूस किया जाता है यदि हम वास्तव में दूसरे के प्रति रखते हैं ।  परन्तु यह मोह भविष्य में बहुत दुःख देता हैं क्योंकि प्रेम का फल दुःख होता है ।
 इसलिए प्यारे पाठकों प्रेम का आनंद लें लेकिन यह ना  भूलें कि तुम्हें भी इसका दुःख रूपी फल भोगना पड़ेगा यह निश्चित है ।

आपका
भवानंद आर्य "अनुभव"

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