शनिवार, 8 जनवरी 2011

अतिथि देवो भव

जब एक मानव बिना किसी पूर्व सूचना के आता है तो उसको अतिथि कहते हैं. और हमारे साहित्य में अतिथि को देवता कहते हैं. एक अतिथि जो अध्यात्मिक ज्ञान से युक्त, सत्यवादी, सबका हित चाहने वाला, विद्वान व योगी हो, जब हमारे घर आये तो हमें उसका मधुर वाणी, भोजन और उसकी पसंद के विभिन्न पदार्थों से सत्कार करना चाहिए. हमें इन पदार्थों से उसे प्रसन्न करना चाहिए. उसके पश्चात हमें उससे वार्तालाप करके धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का ज्ञान प्राप्त करना चाहिए. और उसके उपदेश के अनुसार हमें अपने आचरण और कर्मों को बनाना चाहिए. एक राजा और अन्य गृहस्थी भी इस प्रकार के सत्कार प्राप्त करने योग्य होता है. एक अतिथि देवता कहलाता है. (देवता उसे कहते हैं जो कुछ दिया करता है) क्योंकि वह हमारे घर पर आने के पश्चात हमें प्रसन्नता, तरह तरह का ज्ञान व विभिन्न पदार्थ आदि दिया करता है इसलिए हम उसे देवता कहते हैं.
अब हमें अच्छी प्रकार समझ लेना चाहिए कि हरेक अतिथि देवता नहीं होता. वह आदमी जो कुतर्की हो, सत्य ज्ञान का खंडन करने वाला हो, जिसका व्यवहार वेद और संविधान के अनुकूल न हो, झूंठा, जो बिल्ली की भांति हो जो कि अपना पेट भरने के लिए दांव लगाकर झट से चूहे को पकड़ लेती है, सत्कार पाने योग्य नहीं होते. हमें उनका अपनी वाणी मात्र से भी सत्कार नहीं करना चाहिए. हमें उन्हें कुछ भी नहीं देना चाहिए. और न ही उनसे मधुर वचन बोलने उचित हैं. क्योंकि अगर हम उनकी सेवा करते हैं और सोचते हैं कि वह अतिथि देव है तो हम अपनी उन्नति उसके बुरे जीवन से प्रभावित होकर खो सकते हैं. ये लोग उलटे कार्य किया करते हैं और अन्य लोगों को भी यहीं प्रेरणा दिया करते हैं. इसलिए इस तरह के लोग सत्कार प्राप्त करने के योग्य नहीं होते हैं. ऐसे लोग पाखंडी कहलाते हैं. हमें निम्नलिखित श्लोक को देखना चाहिए जो कि मनु स्मृति से लिया गया है. -
पाखंडिनो विक्रमस्थान वैडाल वृत्तिकान शठान. हेतुकान वाक़ वृत्तींश्च वान्ग मात्रेणपि नार्चयेत..

वास्तव में जिनका सत्कार नहीं किया जाता उनको कटु शब्द भी नहीं बोलने चाहिएं क्योंकि यदि हम उनपर क्रोध करते हैं तो उनका भविष्य में सुधार संभव नहीं है. इसलिए हमें मीठे शब्द ही हर किसी से बोलने चाहिएं. इसलिए ऐसा कहा है - 'समय के अनुकूल कर्म करना चाहिए' भगवान कृष्ण ने यह वाक्य अपने जीवन में सत्य कर के दिखाया है.

अब जब हम दूसरा पहलू देखते हैं तो हम समझ जाते हैं कि सेवा कभी व्यर्थ नहीं जाती. और स्त्रियों का तो यह बल भी है. अब मैं भगवान मनु महाराज जो हमारे सर्व प्रथम राजा थे, के बारे में एक कहानी लिख रहा हूँ-

एक बार राजा मनु प्रातः काल नदी में स्नान करने गए. जब उन्होंने स्नान के लिए अपना पात्र नदी में डुबाया तो जल के साथ एक मछली(बच्चा मछली) पात्र में आ गयी. मनु ने उसे देखा. वह अन्य बड़ी मछलिओं से काफी डरी हुई थी. उसने मनु से उन बड़ी मछलिओं से रक्षा करने की प्रार्थना की. उसने कहा कि वे उसे निगल जाएँगी (वास्तव में मनु एक योगी भी थे. और योगी अन्य जीवों की भाषा समझ सकता है. आयुर्वेद में ऐसी औषधियां भी हैं जिनके सेवन से अन्य प्राणियों की भाषा समझ में आने लगती है) अब मनु उसको अपने महल में ले गए. और उसके लिए तालाब बनाया. उसमें स्वच्छ जल भरवा कर उसे उसमें छोड़ दिया. कुछ समय पश्चात जब वह प्रबल और पर्याप्त बड़ी हो गयी तो उसको फिर से नदी में छुडवा दिया. जब वह समुद्र की और जा रही थी तो उसने भगवान मनु से कहा "हे राजन! आप बहुत दयालु राजा हो. जब आप को आवश्यकता होगी तब मैं भी आपकी सहायता अवश्य करूंगी. और उसने भविष्य वाणी की कि कुछ समय पश्चात जल प्लवन आयेगा. और सारी पृथ्वी जल मग्न हो जाएगी. तब मैं आप के पास आऊंगी . और मैं भी आपका जीवन इसी प्रकार बचाऊँगी जैसे आपने मेरी रक्षा की है. कुछ वर्ष बाद जल प्लवन आया. जैसा कि मछली ने वायदा किया था वह मनु के पास आ गयी. मनु ने अपने और अन्य कुछ जीवों के लिए एक बड़ी नौका तैयार कर रखी थी. उस समय पृथ्वी पर कहीं भी स्थल शेष न रहा. सिर्फ पर्वत ही शरणस्थल बन सकते थे. अब तक वह मछली बहुत बड़ी हो गयी थी. वह मनु के जहाज को ऊँची पहाड़ियों पर ले गयी. और मनु और उसके साथियों की रक्षा की. मनु जी ने कहा है, "आज तुम दूसरों की रक्षा करो, वे तुम्हारी बुरे समय में अवश्य ही रक्षा करेंगे." इसलिए हर आदमी को हर किसी की रक्षा करनी चाहिए. हम नहीं जानते कि कौन हमारे बुरे समय में हमारी सहायता करेगा.
इसी प्रकार सेवा करने से मानव का बल बढ़ता है. हम जो भी कार्य करते हैं वह निष्फल नहीं जाता. इसलिए हमें कुछ न कुछ धनात्मक करना ही चाहिए. और अपना समय व्यर्थ नष्ट नहीं करना चाहिए.
कुछ दुष्ट लोगों दो छोड़ कर हमें सभी से मधुर वचन बोलने चाहिएं.

मैंने उर्दू साहित्य भी पढ़ा है. इसमें लगभग यहीं कहानी कुछ अंतर के साथ पाई जाती है. इस साहित्य में यह कहानी 'नूह की कश्ती' नाम से पाई जाती है.

धन्यवाद
अनुभव शर्मा

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