गुरुवार, 6 जनवरी 2011

मनुष्य जीवन के दो पक्ष

एक महीने में दो पक्ष होते हैं - कृष्ण और शुक्ल. कृष्ण पक्ष में चन्द्रमा लगातार दिन प्रतिदिन घटता चला जाता है. और अंत में पूर्णतः अदृश्य हो जाता है. लेकिन पुनः शुक्ल पक्ष आता है और यह बढ़ना शुरू होता है और अंत में पूर्ण कलाओं को प्राप्त कर लेता है. इसी प्रकार मानव के जीवन में भी अन्धकार का काल आता है. परन्तु तब उसे सद्गुणों का मार्ग नहीं त्यागना चाहिए और सभी विसंगतियों को सहना चाहिए जो भी उसके समक्ष आती है. और तब निश्चित रूप से वह दिन भी आयेगा जब उसका अंधकार का काल समाप्त हो जायेगा और वह अपनी सम्पूर्ण प्रतिभा के साथ संसार में चमकेगा.
मैं दो पक्षों के विषय में कह रहा हूँ - अन्धकार का पक्ष और प्रकाश का पक्ष. इस सम्बन्ध में मैं एक कहानी प्रस्तुत करना चाहता हूँ जो त्रेता युग की है जिसे मैंने अपने गुरुदेव ब्रह्मचारी कृष्ण दत्त जी कि पुस्तक में पढ़ा है.
एक बार त्रेता युग में जब राजा रघु का राज्य था, बहुत समय तक वृष्टि नहीं हुई. पृथ्वी सूखने लगी और गर्मी बहुत बढ़ गयी. तथा अकाल पड़ गया. राजा बहुत चिंतित हुए. उसी समय महर्षि उदांग ने साकल्य एकत्रित करना शुरू किया. उनहोंने आवश्यक पदार्थ लगभग १५ दिवस तक एकत्रित किये. और तब उस साकल्य से एक महान यज्ञ करना प्रारंभ किया. ज्यों ही यज्ञ पूर्ण हुआ देवता प्रसन्न हो गए और वृष्टि प्रारंभ हो गयी.
अब ऐसा हुआ कि नेवला(नवल ऋषि) जो कि वनों में रहता था, यज्ञ के पूर्ण होने पर वहां पर आया और अपने शरीर को यज्ञ शेष में डुबाया. परन्तु जल पर्याप्त न होने कि वजह से उसका केवल आधा भाग स्वर्ण का हो पाया. तब नेवले ने अपने दिनों को इस आशा में व्यतीत करना शुरू कर दिया कि किसी और काल में भी ऐसा यज्ञ होगा और उस यज्ञ शेष में डूबने का मौक़ा मिलेगा. जिससे कि उसका शेष आधा भाग भी स्वर्ण का हो जायेगा. इसी आशा में दिन गुज़रते गए और द्वापर युग आ गया. द्वापर में महाराज युधिष्ठिर ने राजसूय यज्ञ किया. यह यज्ञ महान विचित्र था. सभी राजाओं को वहां निमंत्रित किया गया था. उस यज्ञ की महानता का वर्णन करना असंभव है. नेवला भी वहां आया और उसने अपने को यज्ञ शेष में डुबाया. लेकिन उसका शेष भाग स्वर्ण का नहीं हो पाया. तब नेवला दुखी हो गया. महाराज युधिष्ठिर ने कहा, "अरे नेवले! आप दुखी क्यों हैं? नेवले ने उत्तर दिया, "हे महाराज! एक बार उदांग ऋषि ने एक यज्ञ किया था जो कि इतना बड़ा भी नहीं था जैसा कि तुम्हारा है लेकिन फलस्वरूप वृष्टि हुई थी. मैंने वहां यज्ञ शेष में अपने को डूबने का प्रयत्न किया था, लेकिन यज्ञ शेष पर्याप्त न होने के कारण मेरा आधा भाग ही उसमें डूब सका और वह स्वर्ण का हो गया. हे महाराज! आपने इतना बड़ा यज्ञ किया है. मैं यह आशा करता था कि मेरा शेष भाग भी स्वर्ण का हो जायेगा यदि मैं अपना शरीर इस यज्ञ शेष में डुबा लूँ. मैंने ऐसा ही किया, मैंने अपना शरीर इस यज्ञ शेष में डुबाया परन्तु मुझे निराशा ही हाथ आई. मेरा शेष भाग स्वर्ण का न हो सका. मेरे दुःख का यहीं कारण है. मैं यह समझने में असमर्थ हूँ कि यह किस प्रकार का यज्ञ है? जिसने मेरे आधे शेष शरीर को स्वर्ण का न बनाया.
यह सुनकर युधिष्ठिर बहुत व्याकुल हो गए. उनकी चिंता देखकर नेवले ने उनसे पूछा, "हे महाराज! आप व्याकुल क्यों हैं?" युधिष्ठिर ने उत्तर दिया, "मेरी चिंता का कारण यह है कि मैंने इतना बड़ा यज्ञ किया है लेकिन यह आपके शेष आधे भाग को स्वर्ण का न कर सका. इसलिए यह प्रतीत होता है कि मेरा यज्ञ निष्फल है." उसी समय महाराज कृष्ण जो १६ कलाओं के ज्ञाता थे, बोले "अरे नेवले! शांत रहो. अभी अन्धकार का काल आने वाला है. जब हर तरह का अज्ञान संसार में छा  जायेगा. मानव प्रगति समाप्त हो जाएगी. उस समय तुम्हारा ये आधा भाग भी जो स्वर्ण का है एसा नहीं रहेगा."
जो कुछ भी कृष्ण जी ने तब कहा था वह सत्य हो रहा है. कुछ लोग कहते हैं कि इस काल में कर्म करने की आवश्यकता नहीं है. कोई कहता है कि वह कृष्ण का अवतार है. कोई अन्य कहता है कि वह मुक्त आत्मा है. परन्तु ये सभी कथन इस संसार को भ्रमित कर रहे हैं. कृष्ण जी वेद की १६ हज़ार ऋचाओं के साथ विनोद किया करते थे. लेकिन लोग कहते हैं कि उनके पास १६ हज़ार पत्नियाँ थीं. लेकिन उनका उन मन्त्रों पर पूर्ण आधिपत्य था और वे एकांत में उन्हीं का चिंतन किया करते थे.
कलयुग नाम का यह युग अज्ञान का काल है जहाँ पर अध्यात्मिक प्रकाश लोगों के द्वारा अच्छी प्रकार जाना नहीं गया है. बहुत से लोगों को अन्य लोग इसके भ्रम में ग़लत राह पर ले जाते हैं क्योंकि सही मायने में योग के बारे में अधिकतर लोग नहीं जानते.
हमीं आज वेद की शिक्षा पर विचार करना चाहिए कि किस प्रकार ये शिक्षाएं मानव का हर तरह से (all round ) उत्थान करती हैं. हमें पता होना चाहिए कि मानवोत्थान इन्हीं शिक्षाओं पर आधारित है. इन शिक्षाओं के दो भाग हैं - आध्यात्मिक और भौतिक. जब आदमी इन दोनों को लेकर चलता है तब ही वह अपने जीवन के लक्ष्य को प्राप्त कर लेता है.

धन्यवाद
अनुभव शर्मा

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