गुरुवार, 6 जनवरी 2011

कुछ प्रेरक विचार

हे रक्षक! सत्यस्वरूप! चेतन स्वरुप! आनंद स्वरुप! प्राण स्वरुप! दुःख हर्ता! सुख दाता परमात्मा! हम आपके उन रूपों को स्वीकार करते हैं जो ये हैं- आत्मा के प्रकाशक, वैज्ञानिक  प्रकाश से युक्त, ग्रहण करने योग्य, शुद्ध स्वरुप, जो हमारी सभी आवश्यकताओं को पूर्ण करता है. ये सभी रूप हमारी बुद्धि को सत्कर्मों में प्रेरित करें

जिस प्रकार सूर्य पृथ्वी को प्रकाश, ऊष्मा व प्रसन्नता आदि देकर उसको धारण कर रहा है. जैसे अध्यापक अपने शिष्य(वेदों में उन्हें पुत्र भी कहा है) को भिन्न भिन्न विषयों का ज्ञान व प्रसन्नता देकर उनको धारण कर रहा है. शासक और  नेता को अपनी प्रजा के लिए ऐसा ही होना चाहिए, सारी वेद वाणियाँ यहीं प्रतिपादित करती हैं.

दो सुनहरे पंखों के पक्षी साथ साथ रहने वाले मित्रों के समान एक ही वृक्ष का आश्रय लिए हुए हैं. जिनमे से एक उसके फलों (सुख ओर दुःख रूपी) को स्वाद लेकर खा रहा है तथा दूसरा उसको मात्र साक्षी भाव से देख रहा है. पहला तो आत्मा है और  दूसरा भगवान है और  उस वृक्ष का मतलब यह जगत है. (यह हमारी वास्तविक दशा है जो कि  भगवान ने वेदों में स्वतः बताई है).

जो हमारे भ्राता  के सामान सुखदायक, हमारे समस्त कार्यों का पूर्ण करने वाला, जो हमारे समस्त नाम, स्थान व पूर्व जन्मों को जानता  है. जिस मोक्ष प्रदाता भगवान में मोक्ष को प्राप्त होकर विद्वान लोग स्वेच्छा पूर्वक विचरते हैं. वह परमात्मा हमारा राजा, आचार्य व न्यायधीश है. हमें उसकी शुभ कर्मों के द्वारा भक्ति करने में सदैव तत्पर रहना चाहिए.

सत्य के पात्र का मुख एक स्वर्ण की चमकीली भित्ति से ढका है. हे प्रभु! कृपा करके वह भित्ति हटा दीजिए जिससे हम वास्तविकता को समंझने की क्षमता पा सकें ओर केवल धन की चमक की  ओर न भागें. हमें अपनी आत्मा के तीर को वैराग्य या इन्द्रियजन्य सुख से दूर रहकर तेज करना चाहिए. तथा हे प्यारे! तब सत्य को पाने के लिए लक्ष्य बांध उस वाण को छोड़ दे जिससे की वह सीधा उस भित्ति को बेध सत्य को पा ले.

हे भगवान! आप महान हो. आप हमें सभी सुख देते हो. आप पवित्र ओर हमारे भाई हो. उस व्यक्ति के दुःख जो आपके पास आता है, समाप्त हो जाते हैं. कृपा करके हमें हरेक दुष्कर्म व दुर्व्यसन से बचाइए और हमें श्रेष्ठ वस्तुएं, कर्म और गुण प्राप्त कराइये.

भगवान कहते हैं कि मैं विभिन्न विचित्र प्रभावशाली क्रियाएं हर जगह लगातार दिया करता हूँ. आत्मशासक, संयमीं व विचारवान पुरुष उसे ज्ञान पूर्वक प्राप्त करें.

विशेष छुपा रहस्य - G  (जेनेरेटर   - बनाने वाला) ब्रह्मा
O  (ओपरेटर   - चलाने  वाला) विष्णु
D (डेस्ट्रोयर    - विनाश करने वाला) महेश, शिव.
यह GOD शब्द हमारी हिन्दू संस्कृति से मिल रहा है.

भगवान हर जगह उपस्थित है और यह जगत परिवर्तनीय है. इसलिए हमें इस संसार की वस्तुओं को कुछ न कुछ देकर ही ग्रहण करना चाहिए. लालच नहीं करना चहिए क्योंकि न तो शासक ही और न ही प्रजा इस पृथ्वी धन की वास्तविक स्वामी है. सोचो यह किसका है? ......... उत्तर है भगवान का.

ये विचार वेद मन्त्रों से लिए गए हैं. मुझे आशा है कि आप लोग इसे पढ़ कर आनंद प्राप्त करेंगे.

धन्यवाद
अनुभव शर्मा
इस पोस्ट को इंग्लिश में पढ़ें.

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