गुरुवार, 13 जनवरी 2011

संध्या तृतीय

संध्या वह समय है जब दिन और रात्रि का मिलान होता है. यह दिन में दो बार आती है।
अब इस तृतीय भाग में मैं आपको यजुर्वेद के चार मन्त्रों की व्याख्या बता रहा हूँ. इन मन्त्रों की सहायता से हम परमात्मा के साथ निकटता का अनुभव करते हैं इसी कारण इन मन्त्रों को उपस्थान मन्त्र कहते हैं.
उपस्थान मन्त्र
ॐ उद्वयं तमसस्परि  स्वः पश्यंत उत्तरं. देवं देवत्रा सूर्यमगन्म ज्योतिरुत्तमम् ।15
हे प्रभो आप अज्ञान और अंधकार से परे प्रकाश स्वरुप प्रलय के पश्चात् रहने वाले दिव्य गुणों के साथ सर्वत्र विद्यमान देव चराचर के आत्मा हैं. आपको जानकार हम आपके उत्तम ज्योति स्वरुप को सत्य से प्राप्त होवें।
ॐ उदुत्यम्  जातवेदसं देवं वहन्ति केतवः दृशे विश्वाय सूय् र्यम् ।16
हे जगदीश्वर! उस आप सकल एश्वर्य के उत्पादक जीव आत्मा के प्रकाश हैं. आपकी दिव्यगुण युक्त महिमा को दिखाने के लिए संसार के समस्त पदार्थ पताका का कार्य करते हैं. जिस प्रकार झंडियाँ मार्ग दिखाती हैं. उसी प्रकार सृष्टि नियम, वेद श्रुति निश्चय से भली प्रकार जनाते हैं, प्रतीति कराते हैं.
ॐ चित्रं देवानामुद्गादनीकम्  चक्षुर्मित्रस्य वरुणस्याग्ने: आ प्रा द्यावा पृथ्वी अन्तरिक्षम्  सूर्य आत्मा जगतस्तस्  थुशश्च स्वाहा।17
हे स्वामिन आप विद्वानों और योगाभ्यासियों के ह्रदय में सदा प्रकाशित रहने वाले हैं. आप हमारे हृदयों में यथावत प्रकाशित रहें. आप दिव्य पदार्थों के बल हैं. इसलिए राग द्वेष रहित मनुष्य का, सूर्य लोक का, प्राण का वर अर्थात श्रेष्ठ गुण कर्मों में वर्तमान का, अपान का, व्यान का, अग्नि का, विद्या का  दर्शक अथवा प्रकाशक है. द्योलोक, पृथ्वी लोक, अंतरिक्ष लोकों को बना के धारण और रक्षण करने वाले हैं. भगवन! आप चेतन जगत और जड़ जगत के उत्पादक और अंतर्यामी हैं. हे प्रभो! वेद वाणी ने स्वः(स्व वागाह इति व) ऐसा कहा है. हम मन, वचन और कर्म से सत्य को धारण करें.
हे प्रभु आप अदृश्य चेतना हैं, आप सभी लोक लोकांतरों के स्वामी हैं।   आपकी स्तुति, प्रार्थना व उपासना के बिना हम कभी भी धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को प्राप्त नहीं हो सकते अतः हे प्रभु आप हमें अपनी स्तुति प्रार्थना और उपासना के मार्ग पर चलाईये।  ऐसी हम पर कृपा कीजिये।
ॐ तच्चक्षुर्देवहितं पुरास्ताच्छुक्रमुच्चरत पश्येम शरदः शतं जीवेम शरदः शतं शृणुयाम् शरदः शतं प्रबवाम शरदः शतं अदीनाः  स्याम शरदः शतं भूयश्च शरदः शतात् ।।18
हे भगवन! आप नेत्र के तुल्य सब के दृश्य अनादि काल से विद्वानों और संसार के हितार्थ शुद्ध ज्योति रूप वर्तमान हैं. आप चेतन ब्रह्म को हम सौ शरद ऋतु पर्यंत देखें, सौ शरद ऋतु पर्यंत जीवें, सौ शरद ऋतु पर्यंत वेद, शास्त्र और मंगल वचनों को सुनें, सौ शरद ऋतु पर्यंत वेदादि पढावें और सत्य का व्याख्यान करें, सौ शरद ऋतु पर्यंत आयु भर पराधीन न हों।  यदि सौ शरद ऋतुओं से भी अधिक आयु हो तो इसी प्रकार विचरें।


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अगली पोस्ट में फिर मिलते हैं.

धन्यवाद
अनुभव शर्मा

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