शुक्रवार, 29 जून 2018

प्रजातंत्र और साम्यवाद

राष्ट्र में रूढ़िवाद नहीं होता, इसमें साम्य विचार होते हैं , इसमें सभी मानवों को उच्चारण अधिकार होता है, परन्तु जो राष्ट्रद्रोही होता है उसे एक भी वाक्य उच्चारण नहीं करने देना चाहिए।  जो राष्ट्र को दूसरों को देना चाहता  राष्ट्रद्रोही है। 

प्रजातंत्र और साम्यवाद 

साम्यवाद उसको कहते हैं जहाँ कोई अविद्वान नहीं होता।  तब प्रजा साम्यता में परिणत  है।  इसमें मानव के समक्ष केवल अपने कर्त्तव्य का लक्ष्य होता है।  जब सृष्टि का आरम्भ होता है तो उस समय यह सब समाज साम्यवाद की छत्रछाया में रहता है।  उनकी परालब्ध तथा क्रियता उनके साथ साथ रमण करती रहती है।  उनका कोई राजा नहीं होता।  केवल कर्त्तव्य का पालन करते चले जाते हैं।  सब कर्तव्यवाद में संलग्न रहते हैं।  जहाँ कोई व्यक्ति निर्धन प्राणियों को लेकर चलता है तथा स्वयं को ऐश्वर्य में ले जाना चाहता है, उनको साम्यवादी कहना मानवता के लिए बहुत आघात है।  साम्यवाद तो मानव को साम्यता देता है, सबको एक सा बनाता है।  आज जो लोग
अपने को साम्यवादी कहते हैं, उनको साम्यवादी कैसे स्वीकार किया जा सकता है, जब उनमें प्रजा का नेतृत्व करने वाला राजा बना हुआ है। साम्यवाद में कोई राजा नहीं होता, वहाँ तो सभी सेवक होते हैं।  यह निश्चय है कि जो सेवक होता है वहीँ संसार में प्रबल होता है।  साम्यवादियों को यह विचारना चाहिए कि तीन प्रकार के कर्म होते हैं १. क्रियात्मक २. संचित और ३. प्रारब्ध।  ये कर्म तथा प्रारब्ध मानव को ऊँचा भी बनाते हैं तथा तुच्छ भी बनाते हैं।  उसी प्रारब्ध के साथ साथ यह समाज चलता रहता  है।  किन्तु इस प्रारब्ध पर आस्था न रहने के कारण विभिन्न प्रकार के वाद बन करके एक राष्ट्र का दूसरे के साथ संघर्ष होता है, अतः प्रारब्ध पर आस्था होना अनिवार्य है।

जब प्रजा का प्रत्येक प्राणी अपने कर्तव्यवाद में संलग्न हो जाता है और वह यह समझता है कि यह मेरा राष्ट्र है।  जो मानव प्रजा का नेतृत्व करने वाला है, जो प्रजातंत्र के तंत्र को ऊँचा ले जाना चाहता है वह अपने को प्रजा का सेवक स्वीकार कर लेता है और यह समझने लगता है कि मैं प्रजा का सेवक हूँ।  इस प्रकार की भावना आने पर प्रजातंत्र तथा साम्यवाद एक हो जाते हैं।  

साम्यवाद और प्रजातंत्र दोनों में कर्तव्यवाद की आवश्यकता होती है।  प्रजातंत्र तभी ऊँचा बन सकेगा जब प्रजा तथा राजा इतने महान हों कि राजा के राजा के चरित्र का प्रभाव प्रत्येक मानव और देवकन्या पर हो।  इसी प्रकार साम्यवाद तभी ऊँचा बनेगा जब साम्यवादी का चरित्र ऊँचा होगा, मानवता ऊँची होगी तथा उसके मन में सांत्वना होगी और वह केवल ऊँची धरा को लेकर चले, उसकी छत्रछाया में यह संसार संलग्न हो जाता है।  प्रत्येक राष्ट्र उसकी छाया में आ जाता है। 

(अतीत का दिग्दर्शन, ऐतिहासिक खंड, पेज : २९-३१ )

आपका 
ब्रह्मचारी अनुभव शर्मा 

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