शनिवार, 16 जून 2018

स्वर्ग एवं नरक का अस्तित्व

आदि ब्रह्मा जी द्वारा अपने शिष्यों को उपदेशित संध्या में 21 मन्त्र हैं जो मानव को ओर अधिक देवता बना देती है।  यही संन्ध्या स्वामी दयानन्द सरस्वती जी ने ब्रह्म यज्ञ के रूप में संस्कार विधि में दी है।  उसी में एक मन्त्र है -

ॐ भूः। ॐ भुवः।  ॐ स्वः।  ॐ महः।  ॐ जनः।  ॐ तपः।  ॐ सत्यम्। 

इस मन्त्र में सात स्वर्गों का जिक्र है - भू लोक, भुव लोक, स्व लोक, मह लोक, जन लोक, तप लोक और सत्यम लोक। ये लोक सात प्रकार के स्वर्ग हैं।  पूर्व से उत्तरोत्तर ऊँची श्रेणी के स्वर्ग हैं।  भू लोक पृथ्वी को कहते हैं अतः यह सिद्ध हुआ पृथ्वी प्रथम चरण का स्वर्ग है व इसी प्रकार ऊपर से ऊपर छः स्वर्ग और हैं।  स्वर्ग का अर्थ है कि  जहाँ दुःख बहुत कम व सुख और आनन्द अधिक हो।  

जिस प्रकार ये सात स्वर्ग हैं इसी प्रकार नीचे की ओर सात प्रकार के नरक भी हैं  - अतल , वितल , रसातल, कुम्भी पाक आदि। यहाँ पर सूर्य प्रकाश व ज्ञान रूपी प्रकाश बहुत कम होने के कारण दुःख अधिक होता है।  हम यह विचार सकते हैं कि प्रकृति, मानव विज्ञान यंत्र, मानव निर्मित पदार्थ, मानव व्यहार, समाज, लोक लोकान्तरों आदि को देख व सांसारिक सुख दुःख को देख यदि हम व्याकुल होते हैं तो यह मात्र ज्ञान की कमी के कारण है।  यदि मानव पर ज्ञान हो तो प्राकृतिक घटनाएं, सामाजिक व पारिवारिक घटनाएँ देख कर जिनपर उसका वश न हो, दुःख नहीं होगा। 

अर्थात जिन लोकों में ज्ञान रूपी प्रकाश कम होता है वहाँ क्लेश, कलह, दुःख अधिक से अधिकतर होता जायेगा  कुम्भीपाक नरक सबसे दुखदायी व क्लेश कारी नरक होता है।  वहाँ की प्राकृतिक घटनाएं, सामाजिक व पारिवारिक घटनाएँ  असह्य होती हैं, ज्ञान की सूक्ष्मता के कारण और भी असहनीय हो जाती हैं। 

यजुर्वेद के 40 वें अध्याय में एक मन्त्र में कहा है -

ॐ अन्धन्तमः प्रविशन्ति येSविद्या मुपासते .... ।

अर्थात वे मानव मरे पीछे अन्धकार से आवृत्त (ज्ञान व सूर्य प्रकाश से क्षीण ) लोकों में प्रवेश हो जन्म पाते हैं जो ज्ञान की अवहेलना कर अविद्या (कर्म व उपासना को अविद्या कहा क्योंकि इसमें ज्ञान विशेष नहीं होता) को भजते हैं।  यहाँ नरक का संकेत है। 

इसी ऋचा में आगे कहा है कि जो अविद्या (कर्म और उपासना) अवहेलना करके केवल ज्ञान (निरे पुस्तकीय पंडित है)  को भजते हैं वे उससे भी भयंकर अन्धकार से आवृत्त लोकों में प्रवेश करते हैं अर्थात और भी निचले नरक में जाते हैं। 

परन्तु इस नरक से बचने का तो एक ही उपाय है वह यजुर्वेद में अगली ही ऋचा में दिया है, परमात्मा स्वतः कहते है -
कर्म, उपासना व ज्ञान का सही स्वरुप जान कर्म व उपासना से मृत्यु को तर जाते हैं तथा ज्ञान से अमृत अर्थात मोक्ष को प्राप्त करते हैं। 


आपका 
ब्र० अनुभव शर्मा 


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