मंगलवार, 13 फ़रवरी 2018

त्रेता काल का दंड विधान (प्राइम मिनिस्टर जी को सन्देश)

ओ३म् 


भगवान राम चंद्र जी द्वारा दिया एक दण्ड 


हमारे कानून दा व प्राइम मिनिस्टर जी के लिए यह एक उदाहरण प्रस्तुत किया जा रहा है कि कोई भी अपराधी बिना दंड के दिए, मात्र क्षमा न किया जाए।  अपराधी को दंड दिया ही जाना चाहिए। 


तमोगुणी तप 

तो भगवान् राम का जीवन बड़ा प्रिय और भव्यता में रमण करता रहता था।  परन्तु जब मैं आधुनिक काल के राष्ट्र या माता पिता को दृष्टिपात करता हूँ तो मेरा अंतरात्मा बड़ा आश्चर्य युक्त होता है।  मुझे ऐसा स्मरण आ रहा है मानो भगवान् राम के काल में एक तपस्वी तप करने लगा और वह मानो तमोगुणी तप था।  किसी का अनिष्ट करने के लिए वह कुछ तप कर रहे थे।  राम ने अपने तीखे बाणों से उसे नष्ट कर दिया।  तीखे शस्त्रों से उस पर प्रहार कर दिया।  देखो, ब्रह्मवेत्ताओं में एक बड़ा त्राहि-त्राहि हो गई , कि मानो ऐसा कैसे हुआ? राम के समीप पहुंचे, उन्होंने कहा कि जिस राजा के राष्ट्र में दूसरों का अनिष्ट करने वाले अथवा तपस्वी व तपस्या का ह्रास होता हो उस राजा के राष्ट्र में, तो भगवान् राम ने मानो देखो, उसको त्रास, उसको मृत्यु दंड दिया। 

तो परिणाम यह है कि आज हमारे विचारों का, आज मैं विशेष चर्चा न देता हुआ पूज्यपाद गुरुदेव तो सर्वत्र जानते हैं आधुनिक काल के राष्ट्र की चर्चाएं कि राजा ही मानो देखो, दूसरों का अनिष्ट करने वाले हों तो यह राष्ट्र कैसे स्थिर रह सकेगा देखो, राजा के राष्ट्र में हिंसा होती हो, ईश्वर वाद के ऊपर हिंसा होती हो प्रायः मानो देखो, यह कर्त्तव्य माना गया है।  हमारे यहां यह सिद्धांत है कि राजा को प्रजा की रक्षा करने के लिए आततायी को दंड देना चाहिए और मानो देखो, महापुरुषों की शुद्धता की रक्षा करनी चाहिए। 



ब्रह्मचारी कृष्णदत्त जी महाराज (पूर्व श्रृंगी ऋषि)  के प्रवचन से 
पुस्तक : त्रेता कालीन विज्ञान 
पेज ५३ 
वैदिक अनुसंधान समिति(रजि 0), दिल्ली 




आपका 
ब्रह्मचारी अनुभव शर्मा 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

free counters

फ़ॉलोअर