शनिवार, 22 फ़रवरी 2014

पत्नी के बारे में चिन्ता

जब हम घर से बाहर होते हैं तब हमें ऐसे बहुत से लोग मिलते हैं जो कि आकर्षण व मोह का कारण  बनते हैं लेकिन यदि हम यह कहें कि हम एक विशेष पत्नी या प्रेमिका को प्रेम करते हैं तो यह सत्य नहीं है। 

वास्तविक आदर्श प्रेम सीता राम जी का और रुक्मिणी कृष्ण जी का कहा जा सकता है । यदि हम अपनी पत्नी माता रुक्मिणी या माता सीता जैसी चाहते हैं तो हमें सबसे पहले अपने को भगवान कृष्ण या भगवान राम बनाना होगा । तब हमें मनचाही पत्नी मिल पायेगी । 

 हममें  से अधिकतर किसी एक विशेष के प्रति पूरा प्रेम नहीं रखते । क्योंकि जब हम अपने भूतकाल को देखते हैं, बहुत सी स्त्रियां हमारे जीवन में मन, वाणी व कर्म में  रही होती हैं । अब माना हम एक स्त्री को प्रेम करते हैं तो तुम यह कैसे कह सकते हो कि तुम्हारा प्रेम राम सीता या रुक्मिणी(सत्यभामा) कृष्ण की तरह है जिन्होंने अपने पूरे  जीवन में  केवल एक स्त्री को ही चाहा । यद्यपि मैं यह कह सकता हूँ कि इस समय आप ऐसे ही प्रेम करते होंगे जैसे राम जी ने माता सीता को चाहा था । लेकिन तुम यह कैसे कह सकते हो कि अब से कुछ महीने या वर्ष बाद वह तुम्हें ऐसे ही चाहेगी? क्या यह सम्भव नहीं है कि वह किसी और को भी तुम्हारे साथ साथ इसी प्रकार ही चाहे? इसलिए मैं कहता हूँ कि प्रेम एक आंशिक अहसास है जो कि बहुत लम्बी अवधि या अनंत समय तक नहीं चल सकता ।

माना आपकी पत्नी या प्रेमिका बस में  सफ़र कर रही है तो तुम उसको कैसे रोक पाओगे कि वह अपने सह यात्री के प्रति कोई कामुक भाव न रखे ।

इसलिए प्यारे मित्रों, पाठकों मैं इस बारे मैं धनात्मक सोचता हूँ और मैं कहता हूँ कि हम सभी परमात्मा के प्यारे पुत्र पुत्रियाँ  हैं और हमें काम, क्रोध, लोभ, मोह व अहंकार रूपी मधु चटाया जा रहा है । और हम  सभी को मुक्ति के पथ पर आगे को बढ़ना है। तो चलो उस मुक्ति का भी प्रयास करें जहाँ  कोई सांसारिक दुःख नहीं होता ।
प्रसन्नता के साथ साथ दुःख से भरे इस संसार में हम  योगी बनें और अपने प्रेमी की शुभ कामनाओं को पूर्ण करें । चलो अपने प्रेमी का वफादार सेवक बनें । यह तभी सम्भव है जब हम योगी बनेंगे । यह यौगिक क्रान्ति का समय चल रहा है । इसलिए चलो योग के मार्ग को पकड़ें । हमें मन में रखना चाहिए कि हमें दूसरों की रक्षा करनी चाहिए तभी हमारी भी रक्षा हो पायेगी वर्ना हमारी रक्षा करने वाला कोई भी नहीं मिलपाएगा।

हमें यह भी  ध्यान रखना चाहिए कि हमें शरीर भी वस्त्र की भांति मिला हुआ है जिसको एक दिन नष्ट होना है । इसलिए प्रेम भी बहुत अधिक समय तक नहीं हो सकता । हाँ परमात्मा का प्रेम सदैव रहता है ।

योग का मतलब 'अप्राप्त की प्राप्ति ' है जो कि गीता में बताया गया है।

सम्बंधित पोस्ट
१. मोह

इस पोस्ट को अंग्रेजी में पढ़ें

आपका
भवानंद आर्य 'अनुभव'

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