परमात्मा ने ये जो हमारे शरीर रूपी यंत्र का निर्माण किया है यह बहुत ही विचित्रताओं से संपन्न हैं। कहा है -
हर शरीर मंदिर सा पावन हर मानव उपकारी है।
इन शरीर रूपी यंत्रों में प्रभु ने दस इन्द्रियां, मन, बुद्धि, चित्त व अहंकार को स्थान दिया और साथ साथ हमारी जीवात्मा का शरण स्थल बनाया है।
प्रश्न ये उठता है कि अध्यात्म क्या है? इन्हीं दस इन्द्रियां, मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार, जीवात्मा व परमात्मा का ज्ञान, विज्ञान ही आध्यात्मिक विज्ञान है मित्रों!
इस पोस्ट में मैं इस मन के द्वारा की जाने वाली वैज्ञानिक विचित्रताओं से एक प्रकार की अद्भुत कार्य प्रणाली के विषय में कुछ विचार विनिमय कर रहा हूँ।
कहा है मन के द्वारा हम मोह वश , काम वश , क्रोधवश, लोभवश या अहंकार वश होकर जिस विशेष व्यक्ति के विषय में विचारते हैं वह विचार तरंग रूप होकर उसी विशेष व्यक्ति पर प्रहार करते हैं। अब मैं वैज्ञानिक विधि से समझाता हूँ -
प्रकृति का सबसे सूक्ष्म कण मन है
जब मन से विचारते हैं तो यह कम्पन करता है
A vibrating body produces waves - Physics
अतः जब मन से विचारते हैं तो तरंगें उत्पन्न होंगीं और यह प्रभु का नियम है कि जिस अमुक के विषय में विचारेगे वह तरंगें वहां तक जायेंगीं। इस तरह से विचारने मात्र से ही हमारी ओर से तरंगों का प्रवाह अपने लक्षय तक पहुँच जाता है। है ना प्रभु की सृष्टि रचना विद्या की एक अमूल्य विशेषता ?
इस प्रकार की एक मोही व्यक्ति को मोह की तरंगें नित्य प्राप्त होती रहती हैं क्योंकि जब वह मोह की तरंगें नाना प्राणियों पर उत्सर्ग करता है पायेगा भी। कहा है कि मोह इकतरफा नहीं होता उसका कारण यहीं विज्ञान है। क्योंकि प्रभु का ये अद्भुत जगत वैज्ञानिक दृष्टि से सर्वोच्च है।
माना एक युवा कन्या है वह मोह की तरंगें नाना साथ के पुरुषों पर उत्सर्ग किया करती है। क्यूंकि माता का स्वभाव ही मोही होता है। अब कोई पुरुष यदि उस कन्या से मोह करने लगे तो मोह स्वाभाविक रूप से तीव्र हो जाएगा किन्तु प्रभाव यह होगा कि दोनों की उन्मादी प्रवृत्ति जागरूक हो जाएगी और कुछ समय के पश्चात उन्हें वास्तविकता का पता चलेगा तो वह मोह ही घृणा का रूप धारण कर लेगा क्यूंकि कोई स्त्री या कोई पुरुष किसी एक की सम्पदा नहीं होती और न ही ऐसा है कि वो कन्या सिर्फ उसी को चाहती हो तो फिर उस पुरुष का मोह करना महा मूर्खता है। स्वामी दयानंद जी भी कहते है -
मलमय स्त्रियादिकों में आसक्ति रखना मूर्खों का कार्य है।
और मोही पुरुष को राग के दंड से भी गुज़रना \होगा यह प्रभु का न्याय रूप दंड सभी मोहियों, रागियों मिलता है।
लेकिन संसार में मोह न हो तो संसार ही न चले अतः अति मोह कभी न करें। हल्का मोह होना चाहिए और साथ में कर्त्तव्य भाव से कर्म हों।
आपका
भवानन्द आर्य 'अनुभव शर्मा'
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