प्राण विद्या के विशेषज्ञ अंगद
(पूज्य पाद गुरुदेव ब्रह्मचारी कृष्ण दत्त जी के प्रवचनों से )
हनुमान तो प्राण विद्या के विशेषज्ञ थे ही, यही विद्या बाली के पुत्र अंगद पर पहुंची। राम ने अंगद से कहा कि हे अंगद! रावण के द्वार जाओ। कुछ सुलह हो जाए, उनके और हमारे विचारों में एकता आ जाए, जाओ तुम उनको शिक्षा दो।
अब अंगद रावण की सभा में पहुंचे तो वहाँ नाना वैज्ञानिक भी विराजमान थे, राजा रावण और उनके सर्व पुत्र विराजमान थे। रावण ने कहा कि आओ! तुम्हारा आगमन कैसे हुआ? अंगद ने कहा कि प्रभु मैं इसलिए आया हूँ कि राम और तुम्हारे दोनों के विचारों में एकता आ जाए। तुम्हारे यहाँ संस्कृति के प्रसार में अभाव आ गया है, अब मैं उस अभाव को शांत करने आया हूँ। चरित्र की स्थापना करना राजा का कर्त्तव्य होता है, तुम्हारे राष्ट्र में चरित्र हीनता आ गयी है, तुम्हारा राष्ट्र उत्तम प्रतीत नहीं हो रहा है इसलिए मैं आज यहाँ आया हूँ। रावण ने कहा यह तो तुम्हारा विचार यथार्थ है परन्तु मेरे यहाँ क्या सूक्ष्मता है?
अब अंगद बोले तुम्हारे यहाँ चरित्र की सूक्ष्मता है। राजा के राष्ट्र में जब चरित्र नहीं होता तो संस्कृति का विनाश हो जाता है। संस्कृति का विनाश नहीं होना चाहिए, संस्कृति का उत्थान करना है। संस्कृति यहीं कहती है कि मानव के आचार व्यव्हार को सुन्दर बनाया जाए, महत्ता में लाया जाए, एक दूसरे की पुत्री की रक्षा होनी चाहिए। वह राजा के राष्ट्र की पद्धति कहलाती है। रावण ने पूछा क्या मेरे राष्ट्र में विज्ञानं नहीं? अंगद बोले कि हे रावण! तुम्हारे राष्ट्र में विज्ञानं है परन्तु विज्ञान का क्या बनता है? एक मंगल की यात्रा कर रहा है परन्तु मंगल की यात्रा का क्या बनेगा, जब तुम्हारे राष्ट्र में अग्निकांड हो रहे हैं। हे रावण! तुम सूर्य मंडल कि यात्रा कर रहे हो, उस सूर्य की यात्रा करने से क्या बनेगा, जब तुम्हारे राष्ट्र में एक कन्या का जीवन सुरक्षित नहीं। तुम्हारे राष्ट्र का क्या बनेगा? रावण ने कहा यह तुम क्या उच्चारण कर रहे हो, तुम अपने पिता की परंपरा शांत कर गए हो। अंगद ने कहा कदापि नहीं, में इसलिए आया हूँ कि तुम्हारे राष्ट्र और अयोध्या दोनों का समन्वय हो जाए।
इसपर रावण मौन हो गया। नरायान्तक बोले कि भगवन! इसको विचारा जाए, यह दूत है, यह क्या कहता है? अंगद बोले यदि भगवन! राम से तुम अपने विचारों का समन्वय कर लोगे तो राम माता सीता को लेकर चले जाएंगे। रावण ने कहा कि यह क्या उच्चारण कर रहा है? मैं धृष्ट नहीं हूँ। अंगद बोले यहीं धृष्टता है संसार में, किसी दूसरे की कन्या को हरण करके लाना एक महान धृष्टता है। तुम्हारी यह धृष्टता है कि राजा होकर भी परस्त्रीगामी बन गए हो। जो राजा किसी स्त्री का अपमान करता है उस राजा के राष्ट्र में अग्नि काण्ड हो जाते हैं।
रावण ने कहा कि यह कटु उच्चारण कर रहा है। अंगद ने कहा कि मैं तुम्हें प्राण की एक क्रिया निश्चित कर रहा हूँ, यदि चरित्र की उज्ज्वलता है तो मेरा यह पग है इस योग को यदि तुम एक क्षण भी अपने स्थान से दूर कर दोगे तो मैं उस समय में माता सीता को त्याग करके राम को अयोध्या ले जाउंगा।
यही उनकी प्राण की क्रिया थी। सर्व प्राण को एक पग में ले गए और उदान -प्राण, व्यान और अपान तीनों को मिलान कर के नाग की पुट लगा कर के, चारों प्राणों का मिलान हो कर के प्राण भी उसमें पुष्ट हो गया तो वह शरीर विशाल बन गया। राज सभा में कोई ऐसा बलिष्ठ नहीं था जो उसके पग को एक क्षण भर भी अपनी स्थिति से दूर कर सके। अंगद का पग जब जब एक क्षण भर दूर नहीं हुआ तो रावण उस समय स्वतः चला परन्तु रावण के आते ही उन्होंने कहा कि यह अधिराज है, अधिराजों से पग उठवाना सुन्दर नहीं है। उन्होंने अपने पग को अपनी स्थली में नियुक्त कर दिया और कहा कि हे रावण! तुम्हें मेरे चरणों को स्पर्श करना निरर्थक है। यदि तुम राम के चरणों को स्पर्श करो तो तुम्हारा कल्याण हो सकता है, तुम्हारे विचारों का समन्वय हो जाएगा।
रावण मौन होकर अपने स्थल पर विराजमान हो गया। नरायान्तक ने कहा कि हे पिता! जिस राजा की सेना में प्राण के ऐसे ऐसे विशषज्ञ हों, ऐसी सेना को हम विजय नहीं कर सकेंगे। हम तो प्राणों को केवल विज्ञान में ही लाना जानते हैं परन्तु यह प्राणों को शिराओं में लाना जानता है। जो शिराओं में प्राणों को लाना जानता है, हे पितृ ! उस सेना को संसार में कोई भी विजय नहीं कर सकता।
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आपका अपना
भवानंद आर्य 'अनुभव'
यही उनकी प्राण की क्रिया थी। सर्व प्राण को एक पग में ले गए और उदान -प्राण, व्यान और अपान तीनों को मिलान कर के नाग की पुट लगा कर के, चारों प्राणों का मिलान हो कर के प्राण भी उसमें पुष्ट हो गया तो वह शरीर विशाल बन गया। राज सभा में कोई ऐसा बलिष्ठ नहीं था जो उसके पग को एक क्षण भर भी अपनी स्थिति से दूर कर सके। अंगद का पग जब जब एक क्षण भर दूर नहीं हुआ तो रावण उस समय स्वतः चला परन्तु रावण के आते ही उन्होंने कहा कि यह अधिराज है, अधिराजों से पग उठवाना सुन्दर नहीं है। उन्होंने अपने पग को अपनी स्थली में नियुक्त कर दिया और कहा कि हे रावण! तुम्हें मेरे चरणों को स्पर्श करना निरर्थक है। यदि तुम राम के चरणों को स्पर्श करो तो तुम्हारा कल्याण हो सकता है, तुम्हारे विचारों का समन्वय हो जाएगा।
रावण मौन होकर अपने स्थल पर विराजमान हो गया। नरायान्तक ने कहा कि हे पिता! जिस राजा की सेना में प्राण के ऐसे ऐसे विशषज्ञ हों, ऐसी सेना को हम विजय नहीं कर सकेंगे। हम तो प्राणों को केवल विज्ञान में ही लाना जानते हैं परन्तु यह प्राणों को शिराओं में लाना जानता है। जो शिराओं में प्राणों को लाना जानता है, हे पितृ ! उस सेना को संसार में कोई भी विजय नहीं कर सकता।
वैज्ञानिक राजा जामवंत
जामवंत
को आज रीछ की संज्ञा दी जाती है परन्तु वह तो महान वैज्ञानिक थे। समुद्र
के तटों पर वह विज्ञान के एक मचान को निर्मित करते रहते थे , जिस मचान के
द्वारा समुद्र में ऐसे यंत्रों को निर्धारित करते रहते थे कि जिनसे समुद्र
के पदार्थों का ज्ञान हो जाता था। उनके यंत्र उर्ध्व में आते थे।
उन्होंने और भी नाना यंत्रों का निर्माण किया था, वह राजा थे। राजा रावण
ने इन सबके राज्यों को अपने अधीन बना लिया था। जामवंत ने युद्ध में राम की सहायता की थी। उन्होंने राम को ऐसा यंत्र प्रदान किया जो विषैले परमाणुओं को अपने में निगल जाता था।इस पोस्ट को अंग्रेजी में पढ़ें
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भवानंद आर्य 'अनुभव'
ravan ravan hai
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