शुक्रवार, 31 दिसंबर 2010

मूर्ख कौन है?

बहुत समय पहले एक राजा था. जो अपने दरबारियों के साथ पर्वतों पर भ्रमण करने गया. जब वह एक पर्वत पर खड़ा था तो उसने सोचा कि वह तो इतने बड़े साम्राज्य का स्वामी है और उसके पास एक छड़ी भी नहीं है जो कि सांसारिक शक्ति का प्र तीक होती है. इसलिए जब वह अपने महल में लौटा  तो उसने कारीगरों को एक छड़ी बनाने की आज्ञा दी. मणियाँ, हीरे  और पन्ने जड़ कर लाखों रुपये की एक छड़ी तैयार की गयी.
जब वह उस छड़ी को लेकर घूम रहा था तो उस ने शमशान में एक व्यक्ति को देखा जिसके पास पहनने को कपडे भी नहीं थे. राजा बोला, "चलो तुम मेरे महल में रहना. मैं  तुम्हें खाना व कपडे भी दूंगा," लेकिन उस व्यक्ति के यह कहने पर "मैं  वहां जा कर क्या करूंगा? आप सभी को भी एक दिन यहीं आना है." राजा ने उसे क्रोधवश छड़ी से बहुत मारा. और उस छड़ी को उसकी  तरफ फ़ेंक कर बोला ," अरे मूर्ख! इस छड़ी को रख और इसे किसी अपने से मूर्ख व्यक्ति को देदेना. ये शब्द कह कर राजा अपने महल में वापस आ गया.
वास्तव में वह गरीब दिखने वाला व्यक्ति एक योगी था. कुछ समय बाद उस योगी ने अपने योग बल से जान लिया कि अब राजा की मृत्यु आने वाली है. और वह मृत्यु कि प्रतीक्षा में बिस्तर पर पड़ा हुआ है. वह उस छड़ी को जानबूझ कर अपने साथ ले गया. उसे देख कर राजा ने उस से कहा, "अरे मूर्ख! क्या तुम्हें कोई ऐसा मूर्ख नहीं मिला जिसे तुम यह छड़ी दे सकते?"
"नहीं महाराज! मुझे कोई ऐसा मूर्ख नहीं मिला. मगर आप इस बिस्तर पर क्या कर रहे हो?"
राजा बोला, "अरे महा मूर्ख! क्या तुम्हें नहीं पता कि मैं  एक लम्बी यात्रा पर जा रहा हूँ?"
"आप इस यात्रा पर अपने साथ क्या ले जा रहे हो?"
"अरे मूर्ख! वहां कुछ भी नहीं ले जाया जाता. मैं  अकेला ही जा रहा हूँ."
"क्या तुम्हारे दरबारी तुम्हारी झूंठी प्रशंसा और चापलूसी करने के लिए तुम्हारे साथ नहीं जा रहे हैं?"
"अरे मूर्ख! वे लोग इस यात्रा पर मेरे साथ नहीं जा सकते."
"क्या तुम्हारी सेना वहां लड़ने के लिए साथ नहीं जाएगी?"
"अरे मूर्ख! उनके लिए इस यात्रा पर मेरे साथ जाना संभव नहीं है."
"अब तक जो तुमने इकट्ठा किया है क्या उस खजाने से तुम धन नहीं ले जा रहे हो?"
"अरे मूर्ख! यह हमारे साथ नहीं जाता."
"इतने कठिन श्रम से ये जो तुमने महल खड़े किये हैं, ये तुम्हारे साथ नहीं जायेंगे."
राजा ने वहीँ उत्तर दिया.
"क्या  तुम्हारी  पत्नियाँ तुम्हारी सेवा करने के तुम्हारे साथ नहीं जाएँगी?"
राजा ने वहीँ उत्तर दिया.
"क्या तुम इस यात्रा पर एक चटाई भी अपने साथ नहीं ले जा रहे हो?"
राजा ने वहीँ उत्तर दिया.
अब उस योगी कि बारी थी.
"तुम्हारे पास एक भी वस्तु ऐसी नहीं जिसे तुम साथ ले जा सकते हो. तुमसे तो बहुत अच्छा मैं  हूँ कि मेरे पास ले जाने के लिए ऐसी अर्जित वस्तुएं बहुत हैं. मुझसे मूर्ख तो तुम ही हो. लो अपनी छड़ी अपने पास रखो.
और साधू ने राजा पर उस छड़ी से आक्रमण किया.
सारा परिवेश समझने के बाद राजा ने साधू के चरणों में नमन किया और कहा "अरे महान साधू! मैंने आपको अनेकों बार मूर्ख कहा मगर आपने ने मुझे कभी भी कुछ नहीं कहा. मुझे क्षमा कर दो. मगर अब मैं  क्या करूँ? वे क्या पदार्थ हैं जो मृत्यु पर भी साथ जाते हैं?"
"अब तो तुम मृत्यु को प्राप्त होने जा रहे हो तुम उन पदार्थों को संचित नहीं कर सकते."
प्यारे भाइयों! मैं  आपको बताता हूँ वे पदार्थ क्या हैं? वे हैं - परोपकार के कार्य और भगवान  का चिंतन.

धन्यवाद
आपका
अनुभव शर्मा
इसे इंग्लिश में पढ़ें.

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