इस पोस्ट में मैं भगवान कृष्ण 'जो की भारतीय संस्कृति के एक प्रसिद्ध चरित्र हैं', के बारे में विचार विमर्श करना चाहता हूँ. मैं उनकी वास्तविकता के बारे में आपको बताना चाहता हूँ. उनकी वास्तविक छवि साधारण संसार के मानव के द्वारा जानी गयी छवि से बिलकुल भिन्न है. हर कोई जानता है कि वह १६००८ गोपियों के साथ रास लीला किया करते थे. वास्तव में एक योगी को इस तरह के व्यवहार में लिप्त मानना अनुचित है. मैं वास्तविक तथ्य, जो इस बात के पीछे छिपा है उसे आप के सामने प्रस्तुत करना चाहता हूँ जो कि साधारण आदमी के द्वारा अभी तक जाना नहीं गया है. गोपी शब्द संस्कृत के शब्द 'गोपनीय' जिसका मतलब 'छुपा हुआ' होता है, से लिया गया है. प्यारे मित्रों! क्योंकि वैदिक ऋचाओं के अर्थ साधारण समाज से छिपे होते हैं इसलिए ये मंत्र गोपी कहलाते हैं. वह एक योगी थे और सदा वैदिक मन्त्रों का ही चिंतन किया करते थे. क्या हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि एक योगी कभी भी इन्द्रियों का गुलाम नहीं हो सकता १६००० वेद मन्त्र उनको कंठस्थ थे और वे उनका चिंतन मनन करके उन्ही में मग्न रहते थे। साथ में ८ योग की सिद्धियाँ भी उनको प्राप्त थीं। क्योंकि वह योग सिद्ध आत्मा थे। इन गुप्त विद्याओं के कारण ही कहा जाता है कि वो १६००८ गोपियों के स्वामी थे।
यह मेरी प्रथम पोस्ट हे और इसमें मैंने अपने आप को आप के समक्ष प्रस्तुत किया है मैं शपथ लेता हूँ कि भविष्य में मैं आप के संपर्क में बना रहूँगा और अपनी संस्कृति के महान लोगों के बारे में और भी वास्तविक तथ्य पेश करूँगा.
आपका
अनुभव शर्मा
इस पोस्ट को इंग्लिश मैं पढ़ें.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें